फिसलन क्या है

Slippage Meaning In Hindi
सरल उदाहरणों और परिभाषाओं के साथ Slippage का वास्तविक अर्थ जानें।.
संज्ञा
Slippage
ˈslɪpɪdʒ
परिभाषाएं
Definitions
1 . फिसलने या डूबने की क्रिया या भाव।
1 . the action or process of slipping or subsiding.
उदाहरण
Examples
1 . दरारों और पर्चियों पर £16m खर्च किया गया था।
1 . £16 million has been spent on cracks and slippage
2 . जेट लैग के बारे में क्या?
2 . what about time slippage ?
3 . जेट लैग फिसलन क्या है के बारे में क्या?
3 . what about the time slippage ?
4 . फिसलन े से रोकने के लिए स्टीयरिंग व्हील पर सिलना;
4 . stitched to the steering wheel to avoid slippage ;
5 . फिसलन और आदेश निष्पादन को फिर से उद्धृत करें।
5 . requote slippage and order execution.
6 . औसत व्यापारियों के लिए उपयुक्त जहां निष्पादन का समय और फिसलन महत्वपूर्ण नहीं है।
6 . suitable for average traders where execution time and slippage are not important.
7 . सामान्य प्रसार के प्रतिशत के रूप में औसत शुद्ध फिसलन ,%।
7 . average net slippage as percentage share of typical spread,%.
8 . सकारात्मक फिसलन क्या है?
8 . what is positive slippage ?
9 . कुछ फिसलन की अनुमति दें, लेकिन लगातार फिसलन नहीं।
9 . allow for some slippage - but not constant slippage .
10 . फिसलन भी संभव है, खासकर जब एक सत्र ओवरलैप होता है।
10 . slippage is also possible, in particular when a session overlaps.
11 . समय के अंतर के कारण।
11 . because of the time slippage .
12 . कम शोर, कोई फिसलन नहीं।
12 . low noises, no slippage .
13 . शीर्ष पर कोई फिसलन नहीं होनी चाहिए।
13 . there should be no slippage at the top.
14 . सीमा आदेश के साथ कोई फिसलन नहीं है।
14 . there is no slippage with limit orders.
15 . नतीजा यह है कि आप कम अंतराल और कम स्किडिंग का अनुभव करते हैं।
15 . the result is that you experience less of a delay and less slippage .
16 . (पाउडर संपर्क नेटवर्क के लाभ के साथ), स्लाइडिंग प्रभाव।
16 . (powder फिसलन क्या है contact with the advantage of network), the slippage effect.
Similar Words
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फिसलन भरी सड़कों पर ऐसे आपको बचाएगा कार में लगा ये ख़ास सिस्टम
नई दिल्ली : बारिश और सर्दियों के मौसम में सड़क पर काफी फिसलन होती है दरअसल सर्दियों के मौसम में कोहरे ही नमी की वजह से सड़कें काफी फिसलन भरी हो जाती है और कई बार ब्रेक लगाने के बावजूद आपकी कार एक बार में रुकती नहीं है। ऐसे में आप एक्सीडेंट की चपेट में आ सकते हैं। ऐसे में अगर आपकी कार में एक ख़ास सेफ्टी सिस्टम लगा हो तो आप बड़ी आसानी से सड़क पर सेफ रह सकते हैं।
ABS
ABS ( एंटी लॉकिंग ब्रेकिंग सिस्टम ) की खासियत ये है कि ये आपकी कार को स्टेबल रखने का काम करता है। इस सिस्टम की बदौलत आप तेज गति में होने पर अचानक से ब्रेक भी मार देते हैं तो आपकी कार सड़क से फिसलन क्या है भटकती नहीं है तो चलिए जानते हैं कि इस सिस्टम की खासियत क्या है।
खासियत
आपको बता दें कि ABS दो यूनिट्स से मिलकर बना होता है। इसमें एक पार्ट होता है सेंसर वहीं दूसरा पार्ट होता है कंट्रोलर। आपकी कार में लगे ABS के सेंसर का काम होता है कि ये ड्राइवर की सभी गतिविधियों पर नजर रखता है। जब आप ब्रेक लगाते हैं तो ये सेंसर ब्रेक लगाने की पावर वगैरह को माप लेता है और उसी हिसाब से कंट्रोलर को सिग्नल भेजता है और कंट्रोलर संयमित तरीके से कार में ब्रेक अप्लाई करता है।
Himachal By Election: कहीं भारी न पड़े तेल की फिसलन, जानिए क्या बन रहे हैं समीकरण
Himachal By Election मंडी संसदीय उपचुनाव में महंगे खाद्य तेल की फिसलन किस पर भारी पड़ेगी जनता 30 अक्टूबर को इस बात पर मुहर लगाएगी। उपचुनाव प्रचार में खाद्य तेल का मुद्दा पूरी तरह छाया रहा। इस बार पिछड़े व दुर्गम क्षेत्रों से रोचक नतीजे देखने को मिलेंगे।
मंडी, हंसराज सैनी। Himachal By Election, मंडी संसदीय उपचुनाव में महंगे खाद्य तेल की फिसलन किस पर भारी पड़ेगी जनता 30 अक्टूबर को इस बात पर मुहर लगाएगी। उपचुनाव प्रचार में खाद्य तेल का मुद्दा पूरी तरह छाया रहा। इस बार पिछड़े व दुर्गम क्षेत्रों से रोचक नतीजे देखने को मिलेंगे। सत्ता पक्ष के लिए यह सेमीफाइनल उतना आसान नहीं दिख रहा, जितना माना जा रहा था। 2019 की तरह मुकाबला एकतरफा नहीं है। नतीजा चाहे जो मर्जी हो, कांग्रेस ने जिस मकसद से प्रतिभा सिंह को उपचुनाव के दंगल में उतारा था उसमें फिलहाल पार्टी कामयाब होती दिख रही है। उपचुनाव से पहले कई धड़ों में बंटी कांग्रेस एकसूत्र में नजर आई।
कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेता तक प्रचार के दौरान प्रतिभा सिंह के साथ खड़े दिखे। करीब ढाई साल पहले हुए लोकसभा चुनाव में मुकाबला एकतरफा रहा था। भाजपा ने कांग्रेस को चारों खाने चित किया था। कांग्रेस संसदीय क्षेत्र के 17 हलकों से एक में भी बढ़त नहीं ले पाई थी। इस बार फिजा बदली-बदली सी है। कांग्रेस ने सभी 17 हलकों में चुनावी सभाएं कर लोगों का समर्थन जुटाने की कोशिश की, लेकिन उम्मीद की किरण पिछड़े व दुर्गम क्षेत्र ही रहे। कांग्रेस ने भरमौर, लाहुल-स्पीति, किन्नौर, आनी, बंजार, रामपुर, करसोग में पूरी ताकत झोंक रखी। कुल्लू जिले के चारों हलकों से कांग्रेस को चमत्कार की उम्मीद है।
श्रद्धांजलि व कारगिल युद्ध से शुरू हुआ चुनाव प्रचार कुछ दिन अवश्य भटका। कारगिल युद्ध पर बयान से कांग्रेस को नुकसान भी हुआ। गलती का अहसास होते ही कांग्रेस ने महंगाई व बेरोजगारी का ब्रह्मास्त्र चला दिया। इसके आगे सत्ताधारी दल बेबस नजर आया। पेट्रोल, डीजल व सरसों के तेल की माला जपकर कांग्रेस काफी हद तक मतदाताओं को यह समझाने में सफल रही कि तेल सच में खेल बिगाड़ सकता है। जिन बड़े मुद्दों पर दोनों दल हर चुनाव में राजनीतिक रोटियां सेंकते थे वे पूरी तरह गौण नजर आए। कहीं भी द्रंग नमक संयंत्र, भुभु व जलोड़ी जोल टनल की बात सुनने को नहीं मिली। अंदरखाते सत्ताधारी दल के लोग भी यह मान रहे हैं कि तेल कहीं खेल न बिगाड़ दें। भाजपा की उम्मीद यहां मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पर टिकी है और कांग्रेस को तेल में रोशनी की किरण नजर आ रही है।
फिसलन क्या है
कच्चे तेल की कीमतों में कमी से सभी प्रसन्न नजर आ रहे हैं। लेकिन इससे मिलने वाले तमाम लाभों के बीच इसके कुछ नकारात्मक असर भी हो सकते हैं। तस्वीर के दूसरे रुख से रूबरू करा रहे हैं आकाश प्रकाश
हर कोई कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उसके सकारात्मक प्रभाव का जश्न मनाता नजर आ रहा है। जून के मध्य से अब तक कीमतों में 40 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है और ब्रेंट क्रूड फिसलन क्या है की कीमत 66 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे जा चुकी है। कई विश्वसनीय टीकाकारों का कहना है कि वर्ष 2015 के मध्य तक कीमतें घटकर 50-55 डॉलर प्रति बैरल तक आ सकती हैं। कीमतें उस स्तर पर कब तक रहेंगी इस बात का केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीति पर इसका गहरा असर होगा।
क्या वास्तव में यह घटना वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए उतनी ही सकारात्मक है जितना कि हर कोई यकीन कर रहा है? क्या इसका फायदा हमें भारी भरकम कर कटौती और तमाम अन्य रियायतों के रूप में देखने को मिलेगा? तेल कीमतों में आने वाली कमी दरअसल तेल उत्पादक से उपभोक्ता को खरीद शक्ति का हस्तांतरण है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के नजरिये से देखा जाए तो इससे कोई अतिरिक्त संपदा नहीं निर्मित हो रही है। सकारात्मक बात यह है कि तेल उत्पादकों से आयातकों और ग्राहकों की ओर होने वाला यह हस्तांतरण खपत में बढ़ावा लाने वाला साबित होना चाहिए। तेल कीमतों में 40 डॉलर प्रति बैरल की कमी का मतलब है सालाना 13 खरब डॉलर का हस्तांतरण।
यह बात व्यापक तौर पर स्वीकार की जा रही है कि इससे वैश्विक जीडीपी में भारी इजाफा होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि आयात करने वालों में उपभोग की प्रवृत्ति तेल उत्पादकों की खर्च की प्रवृत्ति से कहीं ज्यादा है। बाजार इसलिए भी उत्साहित है क्योंकि तेल आयातकों में यूरोपीय संघ, चीन, भारत और यहां तक कि अमेरिका भी शामिल है। ये सभी देश वैश्विक वित्तीय बाजारों के लिए रूस, वेनेजुएला, ईरान और नाइजीरिया (घटती कीमतों से सबसे अधिक प्रभावित देश) की तुलना में अधिक मायने रखते हैं। वैश्विक वृद्घि के लिए यह अल्पकालिक समर्थन है क्योंकि जब उपभोक्ता खर्च करेंगे और खपत बढ़ेगी तो वैश्विक बचत में गिरावट आएगी। लंबी अवधि में वित्तीय बाजारों और ब्याज दरों पर उसका नकारात्मक असर देखने को मिल सकता है। ऐसा भी नहीं है कि तेल उत्पादक केवल तेल से आने वाले राजस्व पर निर्भर हों, उन्होंने कुछ वित्तीय परिसंपत्तियों में भी फिसलन क्या है निवेश किया है। खपत बढऩे पर यह निवेश प्रभावित होने लगेगा।
वैश्विक वित्तीय बाजारों पर इसके अन्य प्रभाव भी होंगे जिनमें से सभी सकारात्मक नहीं हैं। कोई भी इस बात पर ध्यान नहीं दे रहा है कि तेल कीमतों में इस तेज गिरावट के बाद इन्वेंट्री और नकदी की स्थिति पर इसके प्रभाव पर किसी का ध्यान नहीं है। मान लीजिए कि पूरी दुनिया हर रोज 9.2 करोड़ बैरल कच्चे तेल की खपत करती है और 100 दिन का माल इकठ्ठा करके रखती है। जब तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल थी तब 920 अरब डॉलर की राशि इन्वेंट्री में फंसी हुई थी। जाहिर है इसमें दूसरे फिसलन क्या है का धन लगा था। अब अगर तेल कीमतें घटकर 60 डॉलर प्रति बैरल हो जाती हैं तो इन्वेंटरी के लिए महज 552 अरब डॉलर की राशि की आवश्यकता होगी। ऐसे में वैश्विक वित्तीय तंत्र में करीब 400 अरब डॉलर की नकदी आएगी। यह बात सकारात्मक है और इससे वैश्विक वित्तीय बाजारों को मदद मिलेगी।
बहरहाल, किसी न किसी को तो मौजूदा इन्वेंटरीज पर इन 400 करोड़ रुपयों का नुकसान भी उठाना पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि अन्य उत्पादों की कीमतों में तेजी से समायोजन होगा। कुछ इन्वेंटरी सॉवरिन रिजर्व में होंगी ऐसे में उनको होने वाला घाटा राष्ट्रीय खाते में जाएगा। बहरहाल इसका असर पूरी पेट्रोलियम उत्पाद शृंखला पर पड़ेगा। यह अभी पता नहीं है कि यह घाटा दरअसल कहां नजर आएगा। कुछ चौंकाने वाली घटनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। पिछली बार तेल कीमतों में बड़ी गिरावट सन 1985 में देखने को मिली थी और उस वक्त अमेरिका के टैक्सस की अधिकांश बैंकिंग व्यवस्था इससे प्रभावित हुई थी। उस घटना को सोवियत संघ के विघटन की उत्प्रेरक घटना भी माना जाता है। जाहिर है 400 अरब डॉलर की राशि किसी भी व्यवस्था को दबाव में डाल सकती है।
पिछले कुछ सालों के दौरान हमने देखा है कि ओपेक से बाहर भी बड़े पैमाने पर तेल उत्पादन शुरू हुआ है। उत्तरी अमेरिका की शेल गैस और टार सैंड इसमें प्रमुख हैं। इनमें से कई परिसंपत्तियां 60-65 डॉलर प्रति बैरल से कम की दर पर अव्यावहारिक हैं और ऐसे में यह सवाल उठता है कि इस तेज उत्पादन को वित्त कहां से मिला? जाहिर है कि उत्पादक उत्पादन अथवा खनन के लिए खुद पर्याप्त नकदी नहीं जुटा पा रहे थे। ऐसे में संभव है कि यह कर्ज हो या फिर उच्च प्रतिफल वाला बॉन्ड अथवा बैंकों से लिया गया कर्ज। साफ देखा जाए तो 60 डॉलर की दर पर इस कर्ज की भरपाई नहीं की जा सकती है। यह बात उच्च प्रतिफल वाले बाजार को पहले ही चिंता में डाल चुकी है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बाजार में ऊर्जा की उच्चतम हिस्सेदारी थी।
अगर घाटा ज्यादा होता है तो यह पूरी दुनिया में और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में अपना असर डालेगा। इतना ही नहीं अगर जिम्मेदारी बैंकों पर आती है तो हालात और कठिन हो सकते हैं। बैंकों द्वारा दिए गए ऋण पर होने वाला घाटा उनके पूंजी आधार को खत्म कर सकता है और उनकी आय को प्रभावित कर सकता है। ऐसा होने पर उनकी ऋण देने की क्षमता और इच्छाशक्ति दोनों प्रभावित होंगी। अगर बैंक कर्ज देना नहीं चाहें तो जाहिर है आर्थिक सुधार पर उसका असर होगा।
तेल कीमतों में गिरावट का एक और नकारात्मक प्रभाव है अपेक्षाकृत आकर्षक वैकल्पिक और नवीकरणीय ऊर्जा पर इसका असर। दरअसल तेल कीमतों में कमी दुनिया को तेजी से कार्बन उत्सर्जन की ओर ले जाएगी। ऐसा तब हो रहा है जबकि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में हम ग्रिड समता हासिल करने की ओर बढ़ रहे थे।
मुद्रा अपस्फीति से जूझ रही दुनिया में कच्चे तेल की कम कीमतें केंद्रीय बैंकों के लिए मददगार नहीं साबित होंगी। मुख्य मुद्रास्फीति पर इनकी वजह से पहले की कमजोर मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों में और अधिक खिंचाव आएगा। ऐसे में केंद्रीय बैंकों के लिए हालात और अधिक मुश्किल हो जाएंगे। मुझे गलत मत समझिए। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट और 110 डॉलर प्रति बैरल तक की कीमत तो हर किसी को स्वीकार्य है। इस गिरावट ने भारत को वह राहत भी दी है जो हमें अपनी राजकोषीय स्थिति दुरुस्त करने के लिए चाहिए। मुद्दा यह है कि कोई भी चीज मुफ्त में नहीं मिलती है और इसलिए हमें वैश्विक जिंस बाजार में अचानक और तेज गति से हुई इस हलचल के नकारात्मक परिणामों को दरकिनार नहीं करना चाहिए। तमाम लोग हैं जिनमें से कुछ को इससे लाभ होगा तो कुछ को हानि। ऐसे में हमें सारी परिस्थिति पर समग्रता से विचार करना होगा।