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सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है

सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है
एक विविध संघीय जनतंत्र होने के बावजूद बीते छः वर्षों में पूरे भारत के लिए सीमलेस, सम्मिलित एवं पारदर्शी व्यवस्थाएँ तैयार करने पर बल दिया गया है। जहाँ पहले भारत में अप्रत्यक्ष कर ढाँचे का एक बहुत बड़ा जाल फैला हुआ था, वहीं अब जीएसटी के रूप में केवल एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली पूरे देश के व्यापार संस्कृति का एक हिस्सा बन चुकी है।

Speculation क्या है? हिंदी में

पेकुलेशन क्या है? हिंदी में [What is Speculation? In Hindi]

वित्त, सट्टेबाजी, या सट्टा व्यापार की दुनिया में, सट्टा एक वित्तीय लेनदेन को अंजाम देने के कार्य को संदर्भित करता है जिसमें मूल्य खोने का काफी जोखिम होता है, लेकिन एक महत्वपूर्ण लाभ या अन्य बड़े हित की उम्मीद को भी बरकरार रखता है। आशावाद के लिए, हानि का जोखिम एक महत्वपूर्ण लाभ या अन्य पुरस्कारों की संभावना से ऑफसेट से अधिक है। एक सट्टा निवेश चुनने वाला निवेशक कीमत में उतार-चढ़ाव पर ध्यान दे सकता है। जबकि किसी निवेश से संबंधित जोखिम अधिक होता है, आमतौर पर निवेशक लंबी अवधि के निवेश की तुलना में बाजार मूल्य में बदलाव के आधार पर उस निवेश के लिए वापसी करने से अधिक चिंतित होता है।

यदि सट्टा निवेश में विदेशी मुद्रा की खरीद शामिल है, तो इसे मुद्रा सट्टा कहा जाता है। ऐसे परिदृश्य में, एक निवेशक उस मुद्रा को बाद में एक सराहनीय दर पर बेचने के प्रयास में मुद्रा खरीदता है, जैसा कि एक निवेशक एक विदेशी निवेश के वित्तपोषण के लिए या एक आयात के लिए भुगतान करने के लिए मुद्रा खरीदने का विरोध करता है। बहुत कम होगा। पर्याप्त लाभ की संभावना के बिना, अटकलों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहन। सट्टा और साधारण निवेश के बीच अंतर करना कभी-कभी मुश्किल हो सकता है। यह बाजार के खिलाड़ी को यह निर्धारित करने की आवश्यकता है कि क्या सट्टा या निवेश उन चरों पर निर्भर करता है जो परिसंपत्ति के मूल्य, होल्डिंग अवधि की अनुमानित लंबाई और/या एक्सपोजर में जोड़े गए उत्तोलन की मात्रा को निर्धारित करते हैं।

अटकलें कैसे काम करती हैं? [How do speculations work? In Hindi]

उदाहरण के लिए, अचल संपत्ति निवेश और अटकलों के बीच की रेखा को धुंधला कर सकती है जब इसे किराए पर लेने के इरादे से संपत्ति खरीदते हैं। हालांकि यह निवेश के रूप में योग्य होगा, कम से कम डाउन पेमेंट के साथ एक से अधिक कॉन्डोमिनियम खरीदना उन्हें लाभ पर जल्दी से पुनर्विक्रय करने के उद्देश्य से निस्संदेह सट्टा माना जाएगा।

Speculation क्या है? हिंदी में

सट्टेबाज बाजार की तरलता प्रदान कर सकते हैं और बोली-पूछने के प्रसार को कम कर सकते हैं, जिससे उत्पादकों को मूल्य जोखिम को कुशलता से हेज करने में सक्षम बनाया जा सकता है। सट्टा शॉर्ट-सेलिंग भी बड़े पैमाने पर तेजी को रोक सकता है और सफल परिणामों के खिलाफ सट्टेबाजी के माध्यम से परिसंपत्ति मूल्य बुलबुले के गठन को रोक सकता है।

म्यूचुअल फंड और हेज फंड अक्सर विदेशी मुद्रा बाजारों के साथ-साथ बांड और शेयर बाजारों में सट्टा लगाते हैं।

शेयर बाजार में अटकलें [Speculation in the Stock Market]

शेयर बाजार में अत्यधिक जोखिम वाले शेयरों को सट्टा स्टॉक के रूप में जाना जाता है। सट्टा स्टॉक अपने साथ जुड़े उच्च जोखिम की भरपाई के लिए संभावित रूप से उच्च रिटर्न प्रदान करते हैं। बहुत कम शेयर कीमतों वाले पेनी स्टॉक सट्टा शेयरों का एक उदाहरण हैं। कुछ शेयर बाजार सट्टेबाज दिन के व्यापारी होते हैं जो व्यापारिक दिन के भीतर होने वाले स्टॉक की कीमतों में इंट्राडे उतार-चढ़ाव से लाभ की तलाश करते हैं।

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, सट्टेबाज सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अप्रमाणित कंपनियों में निवेश करने के इच्छुक हैं, उन कंपनियों को इक्विटी फंडिंग प्रदान करते हैं जो उन्हें अपनी बाजार पहुंच को बढ़ाने और विस्तारित करने में सक्षम बनाती हैं।

मुद्रा बाजार में अटकलें [Speculation in the Currency Market]

विदेशी मुद्रा विनिमय (विदेशी मुद्रा) बाजार सट्टेबाजों के साथ लोकप्रिय है क्योंकि इस तथ्य के कारण मुद्राओं के बीच विनिमय दरों में लगातार उतार-चढ़ाव होता है, दोनों एक इंट्राडे और लंबी अवधि के आधार पर। व्यापार के लिए उपलब्ध कई अलग-अलग मुद्रा जोड़े के कारण मुद्रा बाजार लगातार व्यापारिक अवसर प्रदान करता है।

उदाहरण के लिए, अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर दुनिया भर में एक दर्जन से अधिक अन्य मुद्राओं के सापेक्ष कारोबार की जा सकती है। सबसे अधिक कारोबार वाली मुद्रा जोड़े में EUR/USD (यूरो बनाम डॉलर), GBP/USD (ब्रिटिश पाउंड बनाम डॉलर), और USD/JPY (डॉलर बनाम जापानी येन) हैं।

विदेशी मुद्रा व्यापार सट्टेबाजों के साथ भी लोकप्रिय है क्योंकि उच्च मात्रा में उत्तोलन उपलब्ध है, जिससे व्यापारियों के लिए केवल थोड़ी मात्रा में व्यापारिक पूंजी का उपयोग करके पर्याप्त लाभ उत्पन्न करना आसान हो जाता है।

भारत में तेजी से बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार के क्या हैं कारण ?

एक विविध संघीय जनतंत्र होने के बावजूद बीते छः वर्षों में पूरे भारत के लिए सीमलेस, सम्मिलित एवं पारदर्शी व्यवस्थाएँ तैयार करने पर बल दिया गया है। जहाँ पहले भारत में अप्रत्यक्ष कर ढाँचे का एक बहुत बड़ा जाल फैला हुआ था, वहीं अब जीएसटी के रूप में केवल एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली पूरे देश के व्यापार संस्कृति का एक हिस्सा बन चुकी है।

आपको याद होगा, दिनांक 25 सितम्बर 2019 को न्यूयॉर्क में ब्लूम्बर्ग वैश्विक व्यापार फ़ोरम 2019 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विदेशी निवेशकों को निमंत्रण देते हुए कहा था कि वे भारत में अपने निवेश को बढ़ाएँ क्योंकि विकास ही आज भारत की सबसे बड़ी प्राथमिकता है। आज भारत की जनता उस सरकार के साथ खड़ी है जो व्यवसाय का माहौल सुधारने के लिए बड़े से बड़े और कड़े से कड़े फ़ैसले लेने में पीछे नहीं रहती है।

आज भारत में एक ऐसी सरकार है जो व्यापार जगत का सम्मान करती है। आज भारत एक अद्वितीय स्थिति में आकर खड़ा हो गया है। देश में तेज़ गति से विकास हो रहा है, ग़रीबी में कमी आ रही है, लोगों की क्रय शक्ति बढ़ रही है जिससे विभिन्न वस्तुओं की माँग में वृद्धि दृष्टिगोचर है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विदेशी निवेशकों को दिए गए उक्त वर्णित निमंत्रण का असर बहुत ही प्रभावशाली रहा है। इसके चलते, दिनांक 5 जून, 2020 को समाप्त सप्ताह के दौरान भारत ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की है।

भारतीय इतिहास में पहली बार देश में विदेशी मुद्रा भंडार ने 500 बिलियन (50,000 करोड़) अमेरिकी डॉलर के आँकड़े को पार करते हुए 501.70 बिलियन (50,170 करोड़) अमेरिकी डॉलर के स्तर सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है को छुआ है।

देश के लिए यह हर्ष का विषय ही होना चाहिए कि जब पूरे विश्व में कोरोना महामारी का प्रकोप छाया हुआ है ऐसी स्थिति में भी विदेशी निवेशकों का भारत पर विश्वास बना हुआ है। मार्च 2020 के बाद से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 2400 करोड़ अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्ज हुई है।

सांकेतिक चित्र (साभार : Daijiworld)

भारत सरकार द्वारा विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए उठाए गए क़दम

पहली चीज, भारत में कारपोरेट कर में भारी कमी की गई है। निवेश के प्रोत्साहन के लिए यह एक बहुत क्रांतिकारी क़दम है और इस फ़ैसले के बाद विश्व व्यापार जगत के सभी धुरंधर भारत के इस फ़ैसले को एक एतिहासिक क़दम मान रहे हैं। इसके अलावा भी भारत सरकार द्वारा देश में व्यापार को आसान बनाने के लिए कई फ़ैसले लिए गए हैं, जैसे 50 से ज़्यादा ऐसे क़ानूनों को समाप्त कर दिया गया है जो विकास के कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रहे थे।

एक विविध संघीय जनतंत्र होने के बावजूद बीते छः वर्षों में पूरे भारत के लिए सीमलेस, सम्मिलित एवं पारदर्शी व्यवस्थाएँ तैयार करने पर बल दिया गया है। जहाँ पहले भारत में अप्रत्यक्ष कर ढाँचे का एक बहुत बड़ा जाल फैला हुआ था, वहीं अब जीएसटी के रूप में केवल एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली पूरे देश के व्यापार संस्कृति का एक हिस्सा बन चुकी है।

इसी तरह ही दिवालियापन की समस्या से निपटने के लिए इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंक्रप्सी कोड लागू किया गया है, जिससे बैकों को चूककर्ता बकायादारों से निपटने में आसानी हो गई है। कर प्रणाली से जुड़े क़ानूनों और ईक्विटी निवेश पर कर को वैश्विक कर प्रणाली के बराबर लाने के लिए देश में ज़रूरी सुधार निरंतर हो रहे हैं।

कर प्रणाली में सुधार के अलावा देश में दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशी योजना को भी बहुत कम समय में लागू कर लिया गया है। क़रीब 37 करोड़ लोगों को बीते 5-6 सालों में बैंकों से पहली बार जोड़ा गया है। आज भारत के क़रीब क़रीब हर नागरिक के पास यूनिक आईडी है, मोबाइल फ़ोन है, बैंक अकाउंट है, जिसके कारण लक्षित सेवाओं को प्रदान करने में तेज़ी आई है। धनराशि का रिसाव बंद हुआ है और पारदर्शिता कई गुना बड़ी है।

नए सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है भारत में अविनियमन, डीरेग्युलेशन और व्यापार में परेशनियाँ ख़त्म करने की मुहिम चलाई गई है। साथ ही, विमानन, बीमा एवं मीडिया जैसे कई क्षेत्र, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिए गए हैं।

साभार : Times of India

आर्थिक सुधारों को लागू करने के कारण देश वैश्विक कारोबारी रैंकिंग में आगे बढ़ता जा रहा है। ये रैंकिंग अपने आप नहीं सुधरती है। भारत ने बिलकुल ज़मीनी स्तर पर जाकर व्यवस्थाओं में सुधार किया है। नियमों को आसान बनाया है। उदाहरण के तौर पर यह बताया जा सकता है कि देश में पहले बिजली कनेक्शन लेने के लिए उद्योगों को कई महीनों का समय लग जाता था, परंतु अब कुछ दिनों के भीतर बिजली कनेक्शन मिलने लगा है।

इसी तरह कम्पनी के रेजिस्ट्रेशन के लिए पहले कई हफ़्तों का समय लग जाता था। परंतु, अब कुछ ही घंटो में कम्पनी का रजिस्ट्रेशन हो जाता है। ब्लूम्बर्ग की एक रिपोर्ट में भी भारत में आ रहे बदलाव की तस्वीर पेश की गई है। ब्लूम्बर्ग के नेशन ब्राण्ड 2018 सर्वे में भारत को निवेश के लिहाज़ से पूरे एशिया में पहला स्थान दिया गया है।

10 में से 7 संकेतकों – राजनैतिक स्थिरता, मुद्रा स्थिरता, उच्च गुणवत्ता के उत्पाद, भ्रष्टाचार विरोधी माहौल, उत्पादों की कम लागत, सामरिक स्थिति और आईपीआर के प्रति आदर की भावना – इन सभी में भारत नम्बर एक रहा है। बाक़ी संकेतकों में भी भारत की स्थिति काफ़ी ऊपर रही है।

उक्त वर्णित कारणों के चलते ही, बीते 5 सालों में भारत में 286 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है। ये बीते 20 साल में भारत में हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का आधा है। अमेरिका ने भी जितना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बीते दशकों में भारत में किया है उसका 50 प्रतिशत सिर्फ़ पिछले चार सालों के दौरान हुआ है।

और, ये निवेश तब हुआ है जब पूरी दुनिया में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्तर लगातार कम हो रहा है। आज विदेशी निवेशकों का भारत पर भरोसा बढ़ा है और वो लंबे समय के लिए निवेश कर रहे हैं, जिसके चलते भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार लगातार बढ़ता जा रहा है।

विदेशी मुद्रा भंडार का देश में उपयोग कैसे हो

इस मुद्दे को कई बार उठाया जाता रहा है कि देश में यदि पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है तो विदेशी मुद्रा में ऋणों की वृद्धि नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि विदेशी मुद्रा में ऋणों पर ब्याज की दर अधिक होती है जबकि विदेशी मुद्रा भंडार के विदेशी सरकारों द्वारा जारी बांड्ज़ में निवेश पर ब्याज की दर तुलनात्मक रूप से बहुत ही कम होती है।

किंतु यहाँ इस तथ्य पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि विदेशी मुद्रा भंडार को उच्च स्तर पर बनाए रखने के कई अन्य महत्वपूर्ण कारण हैं, यथा, देश में तरलता की स्थिति बनाए रखना, अप्रत्याशित कारणों से निर्मित हुई विपरीत स्थिति में देश की अर्थव्यवस्था का बचाव करना, विदेशी निवेशकों में विश्वास की भावना बनाए रखना, आदि।

विदेशी मुद्रा भंडार के संचयन एवं प्रबंधन का मुख्य ध्येय ही देश की अर्थव्यवस्था में तरलता एवं सुरक्षा की स्थिति बनाए रखना है। विदेशी मुद्रा भंडार से किए गए समस्त निवेश उच्चतम साख गुणवत्ता के साथ सामान्यतः अल्प अवधि के होते हैं। इस कारण से विदेशी मुद्रा भंडार पर ब्याज की दर एवं ऋणों पर ब्याज की दर में अंतर स्वाभाविक रूप से पाया जाता है। हाँ, जब विदेशी मुद्रा भंडार के स्तर को बनाए रखने के लिए यदि ऋण लिया जा रहा हो तो इस मुद्दे पर गम्भीरता से विचार निश्चित रूप से किया जाना चाहिए।

आज, इस विषय पर बहस शुरू किए जाने की आवश्यकता है कि देश में आवश्यकता अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है का स्तर बनाए रखने के बाद, इस भंडार का उपयोग देश में ही विकास के कार्यों में क्यों नहीं किया जाना चाहिए। इससे कई लाभ होंगे। एक तो, अर्थव्यवस्था में तरलता की स्थिति में सुधार होगा। दूसरे, देश में पूँजी के एक बफ़र के रूप में इस धन को इस्तेमाल किया जा सकेगा, जिससे देश के आर्थिक विकास को गति मिलेगी।

तीसरे, तुलनात्मक रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक की आय में सुधार होगा, क्योंकि भारतीय रिज़र्व बैंक को इस निवेश पर कम ब्याज दर के स्थान पर अधिक ब्याज की दर मिलनी शुरू होगी। इस विषय पर गम्भीरता एवं विस्तार से चर्चा करने के बाद एवं फ़ायदे एवं नुक़सान का आकलन करने के बाद, इस बारे में एक विस्तृत नीति का निर्माण किए जाने की आज आवश्यकता है।

(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। आर्थिक विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)

RBI ने विदेशी मुद्रा लेनदेन पर जारी किए दिशानिर्देश, जनवरी 2023 से आएंगे प्रभाव में

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)

केंद्रीय बैंक के परिपत्र के अनुसार ये निर्देश एक जनवरी, 2023 से प्रभाव में आएंगे. आरबीआई ने कहा कि किसी भी इकाई का जोखिम से बचाव के कदम उठाये बिना विदेशी मुद्रा में लेन-देन चिंता का विषय रहा है.

  • भाषा
  • Last Updated : October 11, 2022, 22:01 IST

नई दिल्ली. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मंगलवार को किसी भी यूनिट के पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए बगैर विदेशी मुद्रा में लेन-देन को लेकर बैंकों के लिये संशोधित दिशानिर्देश जारी किया है. इस पहल का मकसद विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव से होने वाले नुकसान को कम करना है. आरबीआई इकाइयों के जोखिम से बचाव के उपाए किए बिना उस विदेशी मुद्रा में लेन-देन (यूएफसीई) के मामले में बैंकों के लिये समय-समय पर दिशानिर्देश जारी करता रहा है, जो बैंकों से कर्ज के रूप में लिये गये हैं.

केंद्रीय बैंक के परिपत्र के अनुसार ये निर्देश एक जनवरी, 2023 से प्रभाव में आएंगे. आरबीआई ने कहा कि किसी भी इकाई का जोखिम से बचाव के कदम उठाये बिना विदेशी मुद्रा में लेन-देन चिंता का विषय रहा है. यह न केवल व्यक्तिगत इकाई के लिये बल्कि पूरी वित्तीय व्यवस्था के लिये चिंता की बात होती है.

जिन इकाइयों ने विदेशी मुद्रा में लेन-देन के लिये जोखिम से बचाव के उपाए नहीं किये हैं, उन्हें विदेशी विनिमय दरों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव के दौरान काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. इस नुकसान से संबंधित इकाई का बैंकों से लिये गये कर्ज चुकाने की क्षमता प्रभावित होगी और चूक की आशंका बढ़ेगी. इससे पूरी वित्तीय प्रणाली की सेहत पर असर पड़ेगा.

आरबीआई ने प्राथमिक डीलरों को एकल आधार पर उपयोगकर्ताओं को विदेशी मुद्रा बाजार की सभी सुविधाएं प्रदान करने की अनुमति भी दे दी है. रिजर्व बैंक की तरफ से यह कदम मुद्रा जोखिम प्रबंधन के लिए सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है ग्राहकों को व्यापक सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से उठाया गया है. वर्तमान में एकल प्राथमिक डीलरों (SPD) को सीमित उद्देश्यों के लिए विदेशी मुद्रा व्यापार की अनुमति मिली हुई है. देश में फिलहाल सात एसपीडी और 14 बैंक प्राथमिक डीलर हैं.

आरबीआई ने मंगलवार को जारी परिपत्र में कहा, ‘‘एसपीडी को प्रथम श्रेणी अधिकृत डीलरों की तरह उपयोगकर्ताओं को विदेशी मुद्रा बाजार की सभी सुविधाएं प्रदान करने की अनुमति देने का निर्णय लिया गया है. यह अनुमति नियमों और अन्य दिशानिर्देशों के अधीन है.’’

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अर्थव्यवस्थाः डटकर मुकाबले का वक्त

आर्थिक तौर पर चुनौतियों से भरे साल का पन्ना पलटते हुए देश अब जो सुधार और बहाली के उपाय करेगा वे बेहद अहम साबित होंगे

लंबी अवधि का नजरिया

एम.जी. अरुण

  • नई दिल्ली,
  • 02 फरवरी 2021,
  • (अपडेटेड 02 फरवरी 2021, 11:54 PM IST)

जब अर्थव्यवस्था की बात आती है, मौजूदा चुनौतियों की थाह लेने के लिए अतीत के अनुभव आईने का काम करते हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था ने बीते दशक में बड़ी उथल-पुथल मचाने वाले कुछ झंझावात झेले हैं. मसलन, जुलाई 1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से किया 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण और फिर 1970 के दशक के आखिरी वर्षों में मोरारजी देसाई सरकार की तरफ से लाया गया विदेशी मुद्रा विनिमय कानून, जिसने विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय उद्यमों में 40 फीसद से ज्यादा मिल्कियत हासिल करने पर पाबंदी लगाई और इस वजह से आइबीएम और कोका-कोला सरीखी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारतीय बाजार से रुखसत होना पड़ा था.

1991 के भुगतान संतुलन के संकट के बाद नरसिंह राव सरकार ने कई क्षेत्रों में ढांचागत अड़चनों को दूर करने के लिए कई सुधारों को अंजाम दिया था. तब वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के मातहत औद्योगिक लाइसेंस देने की प्रणाली यानी लाइसेंस राज समाप्त किया गया, वित्तीय क्षेत्र के सुधार लागू किए गए और व्यापार को उदार बनाया गया था.

अर्थव्यवस्था

इस सबका मकसद घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धा की क्षमता बढ़ाना, विदेशी व्यापार को बढ़ावा देना और निजी निवेश को प्रोत्साहित करना था. तब लाए गए सुधारों में औद्योगिक नियम-कायदों में ढील, वित्तीय और कर सुधार तथा विदेशी मुद्रा विनिमय और विदेशी व्यापार नीतियों में सुधार शामिल थे. इन सबकी बदौलत देश की सालाना जीडीपी वृद्धि 1990 के दशक में 6.1 फीसद पर पहुंच गई और देश ने 30 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां इकट्ठा कर लीं तथा इस बीच बाहरी कर्ज भी कम किया.

हाल में 2014-19 के बीच नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में देश दो जबरदस्त आर्थिक उथल-पुथल का गवाह बना—नवंबर 2016 में 500 रुपए और 1,000 रुपए के नोटों का बंद किया जाना और जुलाई 2017 में जीएसटी (माल और सेवा कर) लागू करना. मोदी सरकार 2016 में ऋण शोधन अक्षमता और दिवालिया संहिता भी लाई, जिसकी बदौलत कर्जदाताओं के लिए नाकाम कारोबारों से अपने निवेश का कम से कम कुछ हिस्सा वसूल कर पाना मुमकिन हुआ.

2019 से शुरू अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है को कोविड-19 महामारी से जूझना पड़ा, जब दुनिया का एक सबसे कठोर लॉकडाउन लगा और लोगों तथा फर्मों को संकट से पार पाने में मदद करने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए के आत्मनिर्भर भारत अभियान का ऐलान किया गया. अर्थव्यवस्था, जो महामारी से पहले ही चरमरा रही थी और उससे पूर्व की कई तिमाहियों में कई क्षेत्रों में वृद्धि 5 फीसद से नीचे आ गई थी, फिलहाल आजादी के बाद अपनी पांचवीं मंदी के दौर में है, जब 2020-21 में जीडीपी ग्रोथ करीब -7.7 पर आ जाने की आशंका है.

अर्थव्यवस्थाः लंबी अवधि का नजरिया

ऐसे में सरकार के लिए क्या करना बेहद जरूरी है? ज्यादातर विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि भारत को बुनियादी ढांचा और स्वास्थ्य सेवा सरीखे क्षेत्रों में खुलकर अच्छा-खासा खर्च करना चाहिए. बुनियादी ढांचे पर खर्च से नौकरियों का सृजन होगा और स्वास्थ्य सेवा को मजबूत करने से महामारी से लडऩे में मदद मिलेगी. मैन्युफैन्न्चङ्क्षरग क्षेत्र को भी सहारे की जरूरत है. आगे की संभावनाओं पर विचार करते हुए विशेषज्ञों ने सबसे बड़ी एनबीएफसी (गैर-बैंङ्क्षकग वित्तीय कंपनियां) की परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा की भी मांग की है, ताकि पूंजी की कमी से कराह रही फर्म की पहचान और सहायता की जा सके.

साथ ही, वे बुनियादी ढांचे की ठप पड़ी परियोजनाओं को दोबारा शुरू करने की कोशिश करने की जरूरत भी बताते हैं. भारत को नई ऊर्जा से ओतप्रोत सुधार कार्यक्रम की भी जररूत है जिसका जोर पूंजी, जमीन और श्रम बाजारों को उदार बनाने पर हो. आरबीआइ के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि सरकार को खासकर सबसे गरीब राज्यों में जमीनों की पैमाइश और मिल्कियत तय करने का काम तेज करना चाहिए.

केंद्र को बेहतरीन प्रथाओं के आधार पर जमीन अधिग्रहण कानून को नया रूप देना चाहिए जिसमें विक्रेता के हितों की रक्षा के साथ अधिग्रहण की प्रक्रिया ज्यादा आसान हो सके. भारत को वैश्विक तौर पर प्रतिस्पर्धी बनने के लिए ज्यादा बड़े आकार की फर्मों की जरूरत भी है. विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि भारत की कर और नियामकीय व्यवस्थाओं में ऐसे बदलाव ऐसा नहीं किए जाने चाहिए जो अप्रत्याशित हों. ठ्ठ

भारत को नई ऊर्जा से भरे सुधार कार्यक्रम की जरूरत है जिससे भूमि, पूंजी और श्रम बाजार उदार हो सके

75 वें वर्ष का एजेंडा
भारत को बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य पर खर्च करने की जरूरत है-पहले खर्च से रोजगार पैदा हो सकेंगे और दूसरे से महामारी से निपटने में मदद मिलेगी

भूमि, श्रम और पूंजी बाजार को उदार बनाने के साथ भविष्य के संकट से बचने के लिए एनबीएफसी की परिसंप‌त्तियों की गुणवत्ता समीक्षा की मांग विशेषज्ञ उठा रहे हैं

अल्पकाल में उत्पादन को मदद की ज्यादा जरूरत है, साथ ही जानकार कह रहे हैं कि अटकी हुई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने के प्रयास होने चाहिए

दीर्घकाल में इंफ्रास्ट्रन्न्चर परियोजनाओं की राह में भूमि अधिग्रहण बाधा बनता है, कुछ जानकार कहते हैं कि बेचने वाले के हित संरक्षित करते हुए बेहतर कानून बनाकर इसे आसान बनाया जा सकता है

करों और नियमों को सहज व अनुमान के दायरे में रखने की मांग उद्योग जगत करता है

भारत की स्वर्ण नीतियों पर एक नजर

भारत की सोना सम्बन्धी नीतियों और नियमों में समय के साथ कई बदलाव आए हैं। आज एक विकासशील और पारदर्शी रवैये पर अधिक जोर है। फरवरी 2018 में वित्त मंत्री ने केन्द्रीय बजट के अपने भाषण में कहा कि सरकार सोने के व्यापार को एक परिसम्पत्ति के रूप में विकसित करने के लिए एक समग्र नीति तैयार करेगी। इसका अर्थ है कि शेयरों, बोंडों, संपत्ति और उपभोक्ता वस्तुओं की तरह सोने में किए गए निवेशों को भी एक छत्र के नीचे ले आया जाएगा।

भारत स्वर्ण मुद्रा जारी किए जाने या हॉलमार्किंग नियामकों को लागू किए जाने का प्रस्ताव जैसी हाल की घटनाओं से भारत में सोने की खरीद-फरोख्त के लिए भरोसेमंद मापदंड बनाने में मदद मिलेगी। चलिए, आजादी के बाद से भारत की स्वर्ण नीतियों में आने वाले बदलावों पर एक नजर डालते हैं।

प्रतिबंधों का चरण (1947 - 1962)

इस अवधि में सोने की आपूर्ति और इसके घरेलू मूल्य पर नियंत्रण रखने और साथ ही तस्करी पर लगाम लगाने वाली नीतियां बनाने पर जोर दिया गया।

‘फेरा’ यानी फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (1947) से विदेशी मुद्रा में भुगतान और व्यापार करने, और करेंसी और बुलियन के आयात-निर्यात पर नियंत्रण रखने में मदद मिली।

In 1956 में, भारत ने सोने के समर्थन वाली ‘प्रोपोर्शनल रिज़र्व सिस्टम’ की नीति अपना ली और देश में नकदी जारी करने के लिए एक न्यूनतम रिज़र्व सिस्टम का पालन किया जाने लगा। इसका अर्थ था कि रिज़र्व बैंक के लिए 200 करोड़ रुपए का सोना और विदेशी मुद्रा अपने पास रखना आवश्यक था, जिसमें से कम-से-कम 115 रूपए मूल्य का सोना होना अनिवार्य था।

1962 में अंतर्राष्ट्रीय सीमा के विवाद ने भारत का विदेशी मुद्रा का खजाना खाली कर दिया। इसके बाद सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देने के लिए पहली गोल्ड बांड स्कीम शुरू की गई।

प्रतिबंधों का चरण (1963 - 1989)

1962 में, सरकार ने सोने के उत्पादन और लेन-देन पर कुछ अंकुश लगाते हुए गोल्ड कंट्रोल एक्ट (1968) बनाया। इसके बाद सोने के आयात में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी से रूपए का मूल्य तेजी से गिरता चला गया।

स्‍वर्ण नियंत्रण कानून के अंतर्गत प्रतिबंध:

  • 14 कैरट से अधिक शुद्धता वाले सोने के जेवर बनाने पर रोक लगा दी गई।
  • प्रत्येक व्यक्ति के पास सोने के जेवरों की सीमा तय कर दी गई।

सोने की तस्करी को कम करने और बजट के घाटे को नियंत्रित करने के लिए कई स्कीमें शुरू की गईं। ऐसी ही एक स्कीम वोलंटरी डिस्क्लोजर ऑफ़ इनकम एंड वेल्थ (अमेंडमेंट) आर्डिनेंस (1975) से जुड़ी हुई थी, जिसके द्वारा लोगों को अपनी अघोषित आय की घोषणा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था।

इस उद्देश्य के लिए सरकार द्वारा उठाए गए अन्य कदमों में सोने की नीलामियों (1978) का आयोजन और गोल्ड बांड जारी करना इत्यादि शामिल थे।

उदारीकरण का चरण (1990 - 2011)

इस चरण में सरकार ने सोने के उद्योग पर लगे नियंत्रणों को धीरे-धीरे हटाना शुरू किया।

1990 में, सरकार ने गोल्ड कंट्रोल कानून को खत्म कर दिया। इसके साथ ही सोने के आयात की भी छूट दे दी गई, जिससे सरकार को आयात कर के रूप में नई आमदनी होने सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है लगी।

अप्रवासी भारतियों को देश में सोना लाने की छूट देने के लिए नॉन-रेजिडेंट इंडियन स्कीम (1992) और स्पेशल इम्पोर्ट लाइसेंस स्कीम (1994) शुरू की गईं।

1997 तक बहुत-से बैंकों को देश में सोना लाने का अधिकार दे दिया गया था।

1999 में, सरकार ने निष्क्रय पड़े सोने सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है को संचालन में लाने के लिए गोल्ड डिपाजिट स्कीम (जीएसटी) शुरू करके सोना धारकों को आय पर ब्याज प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया।

2002 के बाद से सोना और भी आसानी से उपलब्ध होने लगा। अब बैंकों को सोने के सिक्के (स्वर्ण मुद्रा) बेचने की अनुमति दे दी गई, और 2008 से तो आप पास के डाक घर में जाकर भी सोना खरीद सकते थे।

2007 में, गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफ) के चालू होने के बाद भारत में सोना खरीदना और अपने पास रखना सुगमता के चरम पर पहुंच गया। सोने के लेन-देन के डिजिटल हो जाने से निवेश लचीला, गुणवत्ता का भरोसा और संग्रहन तनाव-मुक्त हो गया।

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2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद सोने पर लोगों का भरोसा और बढ़ गया। मांग के चरम पर पहुंच जाने से सोने के दाम तीन गुना हो गए।

उदारीकरण के चरण के खत्म होते-होते देश में सोने की मांग बहुत ज्यादा बढ़ चुकी थी, जो 2010 में 1001.7 टन पर पहुंच गई।

हस्तक्षेप का चरण (2012 - 2013)

वैश्विक अनिश्चितता और घरेलू सरकारी मामलों का असर भारत के निर्यात और निवेश प्रवाह पर पड़ा। सोने की मांग कम करने के लिए सरकार ने कुछ नीति सम्बन्धी हस्तक्षेप किए।

2012 और 2013 के बीच बार-बार बढ़ोतरी से सोने पर ड्यूटी 2% से 10% पर पहुंच गई।

बैंकों और पोस्ट ऑफिसों के माध्यम से सोने के सिक्कों के आयात पर रोक लगा दी गई।

80-20 नियम लागू होने के बाद सोना आयात करने वालों के लिए 20% निर्यात करना जरूरी हो गया। इस स्कीम के अंतर्गत कोई भी नया आयात करने से पहले 20% सोने का निर्यात करना जरूरी था। पिछले निर्यात का माल भेज देने के बाद ही आयात का नया माल मंगवाया जा सकता था।

पारदर्शिता का चरण (2014 - 2018)

इस चरण में सरकार देश के सभी आर्थिक मामलों में पारदर्शिता पर जोर दे रही है।

2014 में, 80-20 का नियम खत्म कर दिया गया और सोने के सिक्कों के आयात पर लगा प्रतिबन्ध भी हटा लिया गया।

2015 में, 1999 की गोल्ड डिपाजिट स्कीम को गोल्ड मोनेटाइज स्कीम के नाम से फिर से शुरू किया गया। साथ ही सोवेरन गोल्ड बांड भी शुरू किए गए, जिससे निवेशकों को पेपर बांड पर ब्याज मिलने लगा।

भारत का पहला राष्ट्रीय सोने का सिक्का भारत स्वर्ण मुद्रा के नाम से 2015 में जारी किया गया।

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2016 तक सरकार ने 2 लाख रूपए से अधिक के सोने की खरीद पर पैन कार्ड का उल्लेख करना अनिवार्य कर दिया था। 12 करोड़ रूपए से अधिक के टर्नओवर पर जोहरियों पर 1% एक्साइज़ ड्यूटी लगा दी गई। पर 99.5 से अधिक की शुद्धता वाले सोने के सिक्कों पर 1% की एक्साइज़ ड्यूटी हटा ली गई।

2018 के केन्द्रीय बजट में सरकार ने सोने को एक परिसम्पत्ति के रूप में विकसित करने के लिए एक समग्र स्वर्ण नीति बनाने की घोषणा की। सरकार ने देश में एक उपभोक्ता-समर्थक सिस्टम लाने और सोने के लेन-देन के लिए एक कुशल व्यापार प्रणाली लागू करने का भी फैसला क्या है। गोल्ड मोनेटाइज़ेशन स्कीम को विकसित करके लोगों के लिए एक चिंतामुक्त गोल्ड डिपाजिट खाता खोलना आसान बना दिया जाएगा।

सरकार के इन कदमों से प्रतीत होता है कि सरकार ऐसी स्वर्ण नीतियां बनाने में जुटी है, जो देश में सोना खरीदने वालों के लिए फायदेमंद हों।

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