वित्तीय स्वतंत्रता और स्वतंत्रता कैसे प्राप्त करें

एफआईयू-आईएनडी
वित्तीय खुफिया इकाई - भारत में भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था ओम ख़बरदार दिनांकित 18 नवंबर 2004, प्राप्त प्रोसेसिंग, विश्लेषण और वित्तीय लेन-देन संदेह से संबंधित जानकारी के प्रसार के लिए जिम्मेदार केंद्रीय राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में। एफआईयू-आईएनडी भी समन्वय और काले धन को वैध और संबंधित अपराधों के खिलाफ वैश्विक प्रयासों को आगे बढ़ाने में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खुफिया, जांच और प्रवर्तन एजेंसियों के प्रयासों को मजबूत वित्तीय स्वतंत्रता और स्वतंत्रता कैसे प्राप्त करें बनाने के लिए जिम्मेदार है। एफआईयू-आईएनडी वित्त मंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक खुफिया परिषद (ईआईसी) को सीधे रिपोर्टिंग एक स्वतंत्र निकाय है।
गुजरात चुनाव के तुरंत बाद नियमों में फेरबदल करेगा चुनाव आयोग, पार्टियों के लिए बदलेगी गाइडलाइंस
नवभारत टाइम्स 1 दिन पहले
नई दिल्ली:
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव पूरे होने के बाद चुनाव आयोग नए नियमों को बनाएगा। पार्टियों के घोषणा पत्रों में किए गए वादों को लेकर एक आचार संहिता बनाई जाएगी, जिसमें सभी दलों को घोषणापत्र में किए वादों को पूरा करने के लिए फंडिंग के बारे में बताना होगा। चुनाव आयोग ने इसके लिए 60 राजनीतिक पार्टियों से सुझाव भी मांगे थे। अभी तक केवल 8 दलों ने अपने जवाब आयोग को भेजे हैं।
चुनावी वादों पर वित्तीय पारदर्शिता बढ़ेगी
सूत्रों के अनुसार, चुनाव आयोग अक्टूबर में जारी घोषणापत्र दिशानिर्देशों में बदलाव करेगा, ये मॉडल वित्तीय स्वतंत्रता और स्वतंत्रता कैसे प्राप्त करें कोड का हिस्सा है। इससे चुनावी वादों पर वित्तीय पारदर्शिता को बढ़ेगी और मतदाता को अपना नेता चुनने का फैसला लेने में मदद मिलेगी। आदर्श आचार संहिता में ये संशोधन 2023 में होने वाले मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले हो सकता है। इसके बाद पार्टियों को चुनावी वादों के लिए खर्च का स्त्रोत की घोषणा करनी पड़ेगी।
चुनाव आयुक्त ने किया था इस ओर इशारा
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने हाल के विधानसभा चुनावों की घोषणा करते हुए लोकलुभावनवाद के कारण दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोकतंत्रों को गंभीर मैक्रो-इकोनॉमिक संकट का सामना करने की ओर इशारा किया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि राजनीतिक दलों द्वारा अपने वादों को पूरा करने के खर्च के स्रोत के बारे में खुलासा करने के लिए एक मानकीकृत प्रारूप पर विचार करने की जरूरत है। आयोग ने कहा कि पार्टियों को घोषणा पत्र बनाने का पूरा अधिकार है। लेकिन उसमें प्रमाणिक और सही जानकारी होनी चाहिए। आयोग ने नया प्रारूप तैयार किया है, जिसे एमसीसी का हिस्सा बनाया जाएगा। इसमें धन और उसके स्रोत की तार्किकता और खर्च की तार्किकता से लेकर कर्ज लेने बजट प्रबंधन ऐक्ट की सीमा जैसी बातों को शामिल किया गया है।
चुनाव आयोग ने 'फ्रीबी' को परिभाषित करने या इसे चुनावी वादे से अलग करने के मुद्दे में शामिल होने से परहेज किया है। चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि चुनावी वादों पर पार्टियों से पारदर्शिता की आवश्यकता के अलावा, मानकीकृत प्रारूप में सत्ता में पार्टी को अपने वित्त की स्थिति पर एक रिपोर्ट कार्ड की पेशकश करने की भी जरूरत होगी।
60 पार्टियों से मांगे थे सुझाव
जानकारी के मुताबिक चुनाव आयोग ने 4 अक्टूबर, 2022 को करीब 60 राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों से इस प्रस्ताव पर सुझाव मांगे थे। इन दिनों हिमाचल और गुजरात के साथ ही कई राज्यों में उपचुनाव चल रहे हैं। ऐसे में आयोग द्वारा चुनावी वादों की वित्तीय पारदर्शिता की पहल करने से बीजेपी को फायदा हो सकता है, क्योंकि बीजेपी हमेशा से फ्री सेवाओं के खिलाफ मुखर रही है। चुनाव आयोग ने ऐसा करके स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संचालन पर फोकस किया। वहीं पार्टियों को अपने सुझाव देने के लिए पर्याप्त समय मिल गया। इतना समय मिलने के बाद भी 60 पार्टियों में से केवल 8 ने चुनाव आयोग के सामने अपने सुझाव पेश किए हैं। इसमें से 6 प्रस्ताव के खिलाफ हैं जबकि दो पक्ष में। प्रस्ताव का विरोध करने में कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, डीएमके, आप और एआईएमआईएम शामिल हैं। इन दलों ने चुनावी वादों के बजट की मांग करने के लिए चुनाव आयोग के दायरे पर भी सवाल उठाया।
गुजरात चुनाव के तुरंत बाद नियमों में फेरबदल करेगा चुनाव आयोग, पार्टियों के लिए बदलेगी गाइडलाइंस
नवभारत टाइम्स 1 दिन पहले
नई दिल्ली:
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव पूरे होने के बाद चुनाव आयोग नए नियमों को बनाएगा। पार्टियों के घोषणा पत्रों में किए गए वादों को लेकर एक आचार संहिता बनाई जाएगी, जिसमें सभी दलों को घोषणापत्र में किए वादों को पूरा करने के लिए फंडिंग के बारे में बताना होगा। चुनाव आयोग ने इसके लिए 60 राजनीतिक पार्टियों से सुझाव भी मांगे थे। अभी तक केवल 8 दलों ने अपने जवाब आयोग को भेजे हैं।
चुनावी वादों पर वित्तीय पारदर्शिता बढ़ेगी
सूत्रों के अनुसार, चुनाव आयोग अक्टूबर में जारी घोषणापत्र दिशानिर्देशों में बदलाव करेगा, ये मॉडल कोड का हिस्सा है। इससे चुनावी वादों पर वित्तीय पारदर्शिता को बढ़ेगी और मतदाता को अपना नेता चुनने का फैसला लेने में मदद मिलेगी। आदर्श आचार संहिता में ये संशोधन 2023 में होने वाले मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले हो सकता है। इसके बाद पार्टियों को चुनावी वादों के लिए खर्च का स्त्रोत की घोषणा करनी पड़ेगी।
चुनाव आयुक्त ने किया था इस ओर इशारा
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने हाल के विधानसभा चुनावों की घोषणा करते हुए लोकलुभावनवाद के कारण दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोकतंत्रों को गंभीर मैक्रो-इकोनॉमिक संकट का सामना करने की ओर इशारा किया था। उन्होंने वित्तीय स्वतंत्रता और स्वतंत्रता कैसे प्राप्त करें स्पष्ट किया था कि राजनीतिक दलों द्वारा अपने वादों को पूरा करने के खर्च के स्रोत के बारे में खुलासा करने के लिए एक मानकीकृत प्रारूप पर विचार करने की जरूरत है। आयोग ने कहा कि पार्टियों को घोषणा पत्र बनाने का पूरा अधिकार है। लेकिन उसमें प्रमाणिक और सही जानकारी होनी चाहिए। आयोग ने नया प्रारूप तैयार किया है, जिसे एमसीसी का हिस्सा बनाया जाएगा। इसमें धन और उसके स्रोत की तार्किकता और खर्च की वित्तीय स्वतंत्रता और स्वतंत्रता कैसे प्राप्त करें तार्किकता से लेकर कर्ज लेने बजट प्रबंधन ऐक्ट की सीमा जैसी बातों को शामिल किया गया है।
चुनाव आयोग ने 'फ्रीबी' को परिभाषित करने या इसे चुनावी वादे से अलग करने के मुद्दे में शामिल होने से परहेज किया है। चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि चुनावी वादों पर पार्टियों से पारदर्शिता की आवश्यकता के अलावा, मानकीकृत प्रारूप में सत्ता में पार्टी को अपने वित्त की स्थिति पर एक रिपोर्ट कार्ड की पेशकश करने की भी जरूरत होगी।
60 पार्टियों से मांगे थे सुझाव
जानकारी के मुताबिक चुनाव आयोग ने 4 अक्टूबर, 2022 को करीब 60 राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों से इस प्रस्ताव पर सुझाव मांगे थे। इन दिनों हिमाचल और गुजरात के साथ ही कई राज्यों में उपचुनाव चल रहे हैं। ऐसे में आयोग द्वारा चुनावी वादों की वित्तीय पारदर्शिता की पहल करने से बीजेपी को फायदा हो सकता है, क्योंकि बीजेपी हमेशा से फ्री सेवाओं के खिलाफ मुखर रही है। चुनाव आयोग ने ऐसा करके स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संचालन पर फोकस किया। वहीं पार्टियों को अपने सुझाव देने के लिए पर्याप्त समय मिल गया। इतना समय मिलने के बाद भी 60 पार्टियों में से केवल 8 ने चुनाव आयोग के सामने अपने सुझाव पेश किए हैं। इसमें से 6 प्रस्ताव के खिलाफ हैं जबकि दो पक्ष में। प्रस्ताव का विरोध करने में कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, डीएमके, आप और एआईएमआईएम शामिल हैं। इन दलों ने चुनावी वादों के बजट की मांग करने के लिए चुनाव आयोग के दायरे पर भी सवाल उठाया।
पेरिस क्लब ने श्रीलंका को कर्ज पर दिए 10 साल का Moratorium, ऋण पुनर्गठन का भी प्रस्ताव
श्रीलंका सरकार का सार्वजनिक ऋण 2021 के अंत में सकल घरेलू उत्पाद के 115.3 प्रतिशत वित्तीय स्वतंत्रता और स्वतंत्रता कैसे प्राप्त करें से बढ़कर जून 2022 के अंत में सकल घरेलू उत्पाद का 143.7 प्रतिशत हो गया है। 2022 के दौरान, विदेशी मुद्रा मूल्यह्रास, गहरी
दुनिया के उत्तरी और दक्षिणी देशों की वैश्विक समृद्धि के लिए पेरिस क्लब ने श्रीलंका को मौजूदा कर्ज पर 10 साल की मोहलत (Moratorium)और मौजूदा वित्तीय संकट को हल करने के लिए एक फार्मूले के तहत 15 साल के ऋण पुनर्गठन का प्रस्ताव दिया है।
हालांकि, पेरिस क्लब को अभी भी औपचारिक रूप से भारत और चीन तक पहुंचना बाकी है। ये दोनों राष्ट्र श्रीलंका के दो सबसे बड़े कर्जदाता हैं। श्रीलंका का 50 फीसदी कर्ज बीजिंग का है। इस महीने आईएमएफ के कार्यकारी बोर्ड से स्वीकृत 2.9 बिलियन अमरीकी डॉलर की विस्तारित फंड सुविधा प्राप्त करने के लिए कोलंबो को अभी भी शी जिनपिंग शासन के साथ एक औपचारिक बातचीत करनी है।
श्रीलंका पर भारत का ऋण लगभग 800 मिलियन अमरीकी डालर का है। मोदी सरकार ने अपने आर्थिक संकट से निपटने के लिए द्वीपीय देश को चार बिलियन अमरीकी डॉलर की आपातकालीन सहायता प्रदान की है। चीन, चीनी एक्ज़िम और चीन विकास बैंक ने श्रीलंका के साथ अरबों अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया है, जिसमें द्वीप राष्ट्र का कुल बाहरी ऋण लगभग 40 बिलियन अमरीकी डॉलर है।
श्रीलंका सरकार का सार्वजनिक ऋण 2021 के अंत में सकल घरेलू उत्पाद के 115.वित्तीय स्वतंत्रता और स्वतंत्रता कैसे प्राप्त करें 3 प्रतिशत से बढ़कर जून 2022 के अंत में सकल घरेलू उत्पाद का 143.7 प्रतिशत हो गया है। 2022 के दौरान, विदेशी मुद्रा मूल्यह्रास, गहरी मंदी और राजकोषीय घाटे के कारण ऋण में और वृद्धि हुई है। फिलहाल, श्रीलंका में शुरुआती आर्थिक पुनरुद्धार के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं।
राजपक्षे सरकार के कुशासन और चीन के एक्जिम और विकास बैंक से उच्च ब्याज दर पर मिले ऋण पर वहां शुरू किए गए परियोजनाओं की वजह से श्रीलंका न केवल आर्थिक रूप से बल्कि राजनीतिक रूप से भी जर्जर हो चुका है । स्थानीय राजनेता काफी हद तक बदनाम हैं और कट्टरपंथी वामपंथी देश में घुसपैठ कर रहे हैं।