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प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
Posted on October 20th, 2020

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

बीते 17 नवम्बर को प्रकाशित बैंक ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट के मुताबिक भारत पर विदेशी निवेशकों और विदेशी संस्थागत निवेशकों का भरोसा बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है.

स्थिति यह है कि शेयरों में विदेशी संस्थागत निवेशकों की हिस्सेदारी पिछले पांच वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. गौरतलब है कि इन दिनों प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) से संबंधित कई वैश्विक अध्ययन रिपोर्टों में यह तथ्य उभरकर आ रहा है कि भारत में अब एफडीआई बढ़ेगा.

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ऑस्ट्रेलिया में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन तथा म्यांमार में आयोजित 12वें भारत-आसियान सम्मेलन में भारत के आर्थिक, औद्योगिक और कारोबारी माहौल में सुधार लाने के लिए उठाए गए रणनीतिक कदमों का जो प्रभावी परिदृश्य प्रस्तुत किया गया, उससे एफडीआई की नई संभावनाएं दिखाई दे रही हैं. ऐसा ही प्रभावी संदेश प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के समय \\\'मेक इन इंडिया\\\' के नारे के रूप में दुनिया भर में पहुंचा है. पिछले तीन महीनों में विदेश यात्राओं के दौरान मोदी ने विदेशी निवेशकों को भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में एफडीआई लाने का जो न्योता दिया है, उसके सार्थक परिणाम आने की संभावनाएं दिख रही हैं.

वस्तुत: इस समय देश को बुनियादी ढांचा निर्माण और उच्च विकास दर प्राप्त करने के लिए विदेशी निवेश की भारी दरकार भी है. लेकिन पिछले कुछ वर्षो से विदेशी निवेशक भारत से लगातार दूरी बनाए हुए हैं. देश में एफडीआई का प्रवाह 2013-14 के दौरान 24.3 अरब डॉलर रहा है. भारत में एफडीआई कितना निराशाजनक है, इसका अनुमान इससे लगा सकते हैं कि वर्ष 2008-09 की वैश्विक मंदी के दौरान भी भारत में 40.4 अरब डॉलर का एफडीआई आया था. विश्व बैंक की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013-14 में जहां चीन को कुल वैश्विक एफडीआई प्रवाह का करीब आठ फीसद प्राप्त हुआ है, वहीं भारत के पास इसका केवल 0.8 फीसद ही आ पाया है.

विडंबना ही है कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने वाले कई महत्वपूर्ण आधार भारत के पास हैं, पर यहां एफडीआई बहुत कम है. भारत के पास विशाल शहरी और ग्रामीण बाजार, दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ मध्यवर्ग, अंग्रेजी बोलने वाली नई पीढ़ी के साथ-साथ विदेशी निवेश पर अधिक रिटर्न जैसे सकारात्मक पहलू मौजूद हैं. इतना ही नहीं, क्रयशक्ति क्षमता यानी परचेजिंग पॉवर पैरिटी (पीपीपी) के आधार पर अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. भारत के पास आईटी, सॉफ्टवेयर, बीपीओ, फार्मा, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश केमिकल्स एवं धातु क्षेत्र में दुनिया की जानी-मानी कंपनियां हैं, आर्थिक व वित्तीय क्षेत्र की शानदार संस्थाएं हैं.


इन अनुकूलताओं के बावजूद एफडीआई का प्रवाह न बढ़ पाने की तीन प्रमुख वजहें रही हैं. एक, भारत में प्रभावी नेतृत्व और मजबूत केंद्र सरकार का अभाव रहा है. देश का व्यावसायिक वातावरण उन विदेशी निवेशकों के लिए जटिल रहा है जो नीतिगत स्थिरता चाहते हैं. दो, भारत में कारोबार में आसानी की कमी रही है. मसलन सरकारी नीति का स्पष्ट न होना, भूमि अधिग्रहण से संबंधित मसले, पर्यावरण मंजूरी मिलने में देरी. ईधन की आपूर्ति के लिए लिंकेज और परियोजनाओं के तीव्र क्रियान्वयन के लिए प्रशासनिक तंत्र की कमजोरियां. विश्व बैंक के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट \\\'डूइंग बिजनेस 2015\\\' के अनुसार कारोबार करने में आसानी के लिहाज से 189 देशों की सूची में भारत 142वें पायदान पर है. तीन, भारत की टैक्स व्यवस्था जटिल बनी हुई है. भारत दुनिया के ऊंची टैक्स दरों वाले देशों में शामिल हैं.

लेकिन अब नई सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों और इंफ्रास्ट्रक्चर तथा अन्य क्षेत्रों में उठाए जा रहे कदम विदेशी निवेश के लिए उत्साह पैदा कर रहे हैं. भारत को बेहतर और आसान कारोबारी देश बनाने के लिए मोदी सरकार ने बीमा तथा रक्षा क्षेत्र में 49 फीसद एफडीआई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की स्वीकृति दी है. रेलवे के बुनियादी ढांचे में 100 फीसद एफडीआई की स्वीकृति दी गई है. इनके अलावा सड़क, जहाजरानी, नागरिक उड्डयन समेत 10 क्षेत्रों की 20 परियोजनाओं में 100 फीसद एफडीआई की स्वीकृति दी गई है. पुराने और बेकार कानूनों को समाप्त करने के लिए सरकार आगे बढ़ी है. सरकार ने 287 ऐसे पुराने कानूनों की पहचान की है, जिन्हें संसद के शीतकालीन सत्र में रद्द कर दिया जाएगा. प्रवासी भारतीयों ने भी भारत में बड़ी मात्रा में एफडीआई के संकेत दिए हैं. इन सब कारणों से भारत में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है.


देश में एफडीआई बढ़ने के इन सकारात्मक पहलुओं के अलावा एक और वैश्विक पहलू चीन के आर्थिक मॉडल में आ रहे बदलाव के कारण भी दिखाई दे रहा है. दुनिया का कारखाना कहा जाने वाला चीन अब सेवा क्षेत्र की ओर रुख करना चाहता है जहां बहुत अधिक विदेशी निवेश की आवश्यकता नहीं होती. इतना ही नहीं, चीन की आबादी बहुत तेजी से उम्रदराज हो रही है और कामकाजी युवा आबादी तेजी से कम हो रही है. ऐसे में अगले एक दशक में चीन में विदेशी पूंजी निवेश की दर में कमी आने की उम्मीद की जा रही है. इसकी बदौलत आगामी वर्षो में दुनिया भर में बहुत बड़ी मात्रा में सस्ती विदेशी पू़ंजी उपलब्ध होगी. भारत कम ब्याज दर वाले इस दौर का बड़ा लाभ ले सकता है, विशेष रूप से भारत के बुनियादी ढांचे और विनिर्माण क्षेत्र को नए वैश्विक निवेश का बड़ा लाभ मिल सकता है.

निसंदेह विदेशी निवेशकों के कदम तेजी से भारत की ओर मोड़ने तथा देश की विभिन्न परियोजनाओं में एफडीआई की आवक को ऊंचाई देने के लिए हमें देश में आर्थिक, औद्योगिक और कारोबारी सुधारों को अमली जामा पहनाना होगा. औद्योगिक विकास और निवेश बढ़ाने के अभियान को सफल बनाने के लिए उद्योगों की अड़चनें दूर करना सबसे पहली जरूरत है. प्रधानमंत्री ने उद्योगों को इंस्पेक्टर राज से बचाने के लिए जो घोषणाएं की हैं, वे शीघ्र कार्यान्वित होनी चाहिए. वस्तुत: अब समय आ गया है कि सरकार औद्योगिक परिदृश्य सुधारे और उद्योगों में जान फूंकने के लिए नीतिगत फैसले ले.

उदाहरण के तौर पर कोयले के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं कि क्या निर्णय होने जा रहा है? कोल इंडिया का कहना है कि वह एक भी नए ब्लॉक का काम हाथ में नहीं ले सकती क्योंकि इसके लिए उसके पास मानव संसाधन की भारी कमी है. इसी तरह गैस कीमतों का फैसला भी बार-बार टलता जा रहा है. ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय नहीं होने से बिजली से लेकर उर्वरक जैसे कई क्षेत्रों के उद्योगों का भविष्य अधर में है. जमीन अधिग्रहण और श्रम जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए सिंगल विंडो मंजूरी के साथ बेहतर अवसंरचना और आसान नियमों की जरूरत है. उद्योगों के लिए ब्याज दरों में कटौती से औद्योगिक उत्पादन सुधारने में मदद मिल सकती है.

कारोबार और उद्योगों के चमकीले विकास का सपना साकार करने के लिए सरकार को ऐसी रणनीति पर काम करना होगा, जिसके तहत गैर जरूरी कानून शीघ्रतापूर्वक हटाए जाएं. ऐसा होने पर देश की ढांचागत परियोजनाओं के लिए एफडीआई हेतु विदेशी निवेशक आगे बढ़ेंगे और उससे रोजगार अवसर बढ़ने के साथ देश के आर्थिक विकास को गति भी मिलेगी.

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

2019 की तुलना में 2020 में 26 फीसदी से ज्यादा बढ़ा एफडीआई

जहां 2019 के दौरान देश में 3.78 लाख करोड़ रुपए का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ था वो 2020 में 25 फीसदी बढ़कर 4.74 लाख करोड़ पर पहुंच गया है

By Lalit Maurya

On: Monday 21 June 2021

विदेशी निवेशकों ने महामारी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बार फिर भरोसा दिखाया है। जिसका सबूत है देश के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में 2019 की तुलना में 2020 के दौरान 26 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। जहां 2019 में देश में हुआ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 3.78 लाख करोड़ रुपए (5,100 करोड़ डॉलर) था वो 2020 में बढ़कर 4.74 लाख करोड़ (6,400 करोड़ डॉलर) पर पहुंच गया है। यह जानकारी यूएन कॉन्‍फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (यूएनसीटीएडी) द्वारा जारी वर्ल्ड इन्वेस्टमेंट रिपोर्ट 2021 में सामने आई है।

यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत दुनिया का पांचवा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ऐसा देश हैं जहां इतनी बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश हुआ है। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत दुनिया का पांचवा ऐसा देश हैं जहां इतनी बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश हुआ है। हालांकि कोविड-19 का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर दर्ज किया गया है। इसके बावजूद देश में निवेश में बढ़ोतरी हुई है, जिसकी सबसे बड़ी वजह मजबूत बुनियाद है, जिसने मध्‍यम अवधि के लिए उम्‍मीद की किरण को बरकरार रखा है।

इसकी सबसे बड़ी वजह सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के क्षेत्र में बढ़ता निवेश है। अकेले अमेरिकी कंपनी अमेज़न ने देश के सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) क्षेत्र में 20,758 करोड़ रुपए (280 करोड़ डॉलर) का निवेश किया था।

हालांकि यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात करें तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में करीब 35 फीसदी की गिरावट आई है। जो 2019 में 1.5 लाख करोड़ डॉलर से घटकर 2020 में एक लाख करोड़ डॉलर रह गया है। वहीं यदि अमेरिका में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को देखें तो उसमें 2019 की तुलना में 40 फीसदी की गिरावट आई है। जो 26,100 करोड़ डॉलर से घटकर 15,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर रह गया है। जबकि इस दौरान चीन में इसमें 5.7 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह 2020 में बढ़कर 14,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया है।

2020 में भारत से हुआ था 1,200 करोड़ डॉलर का एफडीआई ऑउटफ्लो

यदि दक्षिण एशिया की बात करें तो एफडीआई में 20 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है, जिसकी सबसे बड़ी वजह भारत में कंपनियों का हुआ विलय और अधिग्रहण है, जिससे निवेश 7,100 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया है।

महामारी के चलते दक्षिण एशिया में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी), स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर और ऊर्जा क्षेत्र में निवेश बढ़ा है। हमारे अन्य पड़ोसियों की बात करें तो पाकिस्तान के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 6 फीसदी की गिरावट आई है। जिस वजह से वो घटकर 210 करोड़ डॉलर रह गया है। इसके बावजूद वहां एनर्जी और टेलीकम्यूनिकेशन के क्षेत्र में निवेश बढ़ा है। बांग्लादेश में 11 फीसदी और श्रीलंका में 43 फीसदी की कमी आई है।

वहीं यदि दूसरे देशों में भारत द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किए निवेश यानी एफडीआई आउटफ्लो को देखें तो इस मामले में भारत, दुनिया की टॉप 20 अर्थव्‍यवस्‍थाओं में 18 वें स्थान पर था। 2020 में भारत से 1,200 करोड़ डॉलर का एफडीआई ऑउटफ्लो हुआ था, जो 2019 में 1,300 करोड़ डॉलर था।

इस देश ने भारत में किया सबसे अधिक निवेश, जानिए कितना आया FDI

वित्त वर्ष 2017-18 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 18 प्रतिशत बढ़कर 28.25 लाख करोड़ रुपये हो गया. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सोमवार को ये आंकड़े जारी किये. इनके मुताबिक वर्ष के दौरान देश में सबसे ज्यादा निवेश मॉरीशस से आया है.

भारत में बढ़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जानिए क्या है कारण (फाइल फोटो)

वित्त वर्ष 2017-18 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 18 प्रतिशत बढ़कर 28.25 लाख करोड़ रुपये हो गया. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सोमवार को ये आंकड़े जारी किये. इनके मुताबिक वर्ष के दौरान देश में सबसे ज्यादा निवेश मॉरीशस से आया है.

देश में बढ़ा विदेशी निवेश
भारतीय प्रत्यक्ष निवेश कंपनियों की परिसंपत्तियों और विदेशी देनदारियों की गणना संबंधी 2017-18 के आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष के दौरान प्रत्यक्ष विदेश निवेश 4,33,300 करोड़ रुपये बढ़कर 28,24,600 रुपये पर पहुंच गया. इसमें पिछले निवेशों का नया मूल्यांकन भी शामिल है. बता दें मॉरीशस टैक्स हैवन देशों में से एक है.

भारतीय कंपनियों में बढ़ा निवेश
रिजर्व बैंक ने कहा कि गणना के हाल के दौर में 23,065 कंपनियों ने पूछे गये सवालों का जवाब दिया, जिसमें से 20,732 कंपनियों ने मार्च 2018 में अपनी बैलेंसशीट में एफडीआई या ओडीआई निवेश को दर्शाया है. इस दौरान भारतीय कंपनियों का विदेशों में निवेश (ओडीआई) 5 प्रतिशत बढ़कर 5.28 लाख करोड़ रुपये हो गया. आंकड़ों के मुताबिक, भारत में सबसे ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मॉरीशस से (19.7 प्रतिशत करीब 5.60 लाख करोड़) हुआ है. इसके बाद अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर और जापान का स्थान है.

निवेश के मामले में सिंगापुर पहले स्थान पर रहा
दूसरी तरफ भारतीय कंपनियों के विदेश में निवेश के मामले में 17.5 प्रतिशत के साथ सिंगापुर सबसे प्रमुख स्थान रहा. इसके बाद नीदरलैंड, मॉरीशस और अमेरिका का स्थान रहा है. कुल एफडीआई में विनिर्माण क्षेत्र का बड़ा हिस्सा रहा है. इसके अलावा सूचना एवं दूरसंचार सेवाओं, वित्तीय एवं बीमा गतिविधियां एफडीआई पाने वाले अन्य प्रमुख क्षेत्र रहे हैं.

उत्तर प्रदेश विदेशी निवेश में 11 वें पायदान पर,जानिए कैसे

यूपी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लाने के मामले में 11वें पायदान पर है। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य में विदेशी निवेश पिछले साल की दूसरी छमाही में 5211. 98 करोड़ रुपये (712.35 मिलियन यूएस डालर) से बढ़ कर दिसंबर 21 में 5758.17 (785.55 मिलियन यूएस डॉलर) करोड़ रुपये का हो गया।

Updated: April 23, 2022 01:53:41 pm

उत्तर प्रदेश में अब विदेशी निवेशक अपना उद्यम स्थापित करने में रुचि दिखा रहे हैं। कोरोना संकट के दौरान जब देश में आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार सुस्त थी। उस दौरान भी यहां कई निवेशकों ने अपना उद्यम स्थापित करने में सक्रिय थे। जिसके चलते ही यहां विदेशी निवेश 712.35 मिलियन यूएस डॉलर से बढ़कर 785.55 यूएस मिलियन यूएस डॉलर हो गया है। यह बढ़ोतरी बीते साल जून से दिसंबर के बीच की है। अभी यूपी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लाने के मामले में 11वें पायदान पर है। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य में विदेशी निवेश पिछले साल की दूसरी छमाही में 5211. 98 करोड़ रुपये (712.35 मिलियन यूएस डालर) से बढ़ कर दिसंबर 21 में 5758.17 (785.55 मिलियन यूएस डॉलर) करोड़ रुपये का हो गया।

उत्तर प्रदेश विदेशी निवेश में 11 वें पायदान पर,जानिए कैसे


इसके अलावा राज्य में विदेशी कंपनियों की 40 परियोजनाओं पर वर्तमान में काम चल रहा है। इन विदेशी कंपनियों को उद्यम स्थापित करने के लिए जमीन मिल चुकी है। इसमें 20,559 करोड़ रुपये का विदेशी निवेश होना है। प्रदेश सरकार द्वारा कराए जाने वाले ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के चलते विदेशी निवेश में इजाफा होने की उम्मीद है। औद्योगिक विकास विभाग के अधिकारियों का दावा है कि सरकार द्वारा राज्य में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदमों के चलते ही यूपी देश तथा विदेश के निवेशकों के लिए चहेता राज्य बन गया है। इसकी मुख्य वजह सरकार द्वारा राज्य को प्राप्त हुए निवेश प्रस्तावों को जमीन पर उतारने के लिए हर स्तर पर तेजी दिखा रही तेजी है।

यूपी में मार्च 2020 से मई 2021 तक देशी तथा विदेशी निवेशकों के 66 हजार करोड़ रुपये के 96 निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए थे। इन 96 निवेश प्रस्तावों में 40 प्रस्ताव विदेशी निवेशकों के थे। इन 40 प्रस्तावों में 22 निवेश प्रस्ताव 100 करोड़ रुपए से अधिक के थे और इन निवेश प्रस्तावों के जरिए राज्य में 20,559 करोड़ रुपए का निवेश होना है। सरकार के स्तर से इन निवेश प्रस्तावों पर त्वरित कार्रवाई करते हुए उन्हें भूमि उपलब्ध कराने पूरी कराई और विदेशी निवेशकों के उद्यमों का निर्माण कार्य भी शुरू हो गया। चीन से आयी एक जूता बनाने वाली कंपनी ने तो आगरा में उत्पादन भी शुरू कर दिया है। यह कंपनी आगरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तीन सौ करोड़ रुपये का निवेश कर रही है। इसी तरह राज्य में जापान की सात, कनाडा की दो, जर्मनी की चार, हांगकांग की एक, सिंगापुर की दो, यूके की तीन, यूएस की पांच तथा कोरिया की चार कंपनियां निवेश कर रही हैं।


इनमें माइक्रोसॉफ्ट और आइका जैसी विश्वविख्यात कंपनियां भी हैं। माइक्रोसॉफ्ट राज्य में 1800 करोड़ रुपए का निवेश सॉफ्टवेयर पार्क की स्थापना में कर रहा है। राज्य में निवेश को इच्छुक सभी विदेशी कंपनियों और निवेशकों को उनकी रूचि के अनुसार मुहैया कराई जा रही हैं। जर्मनी की कंपनी वाइका इंस्ट्रमेंट ने गाजियाबाद में परियोजना के लिए जमीन ली है। यूके की वेब्ले स्कॉट कंपनी हरदोई में प्लांट लगा रही है। एबी मौरी 1100 करोड़ से पीलीभीत में अपना मेगा फूड प्लांट लगा रही है। इसे यूपीसीडा ने 275 एकड़ जमीन उपलब्ध करवा दी है। 5000 लोगों को रोजगार मिलेगा। इसी तरह पेप्सिको 814 करोड़ से निवेश कर रही है।


अधिकारियों के अनुसार, खाद्य प्रसंस्करण, ऑक्सीजन प्लांट, कम्प्यूटर साफ्टवेयर, मोबाइल सेट, ऑटोमोबाइल, इंफ्रास्ट्रक्च र, डाटा सेंटर, दवा व रसायन व पर्यटन आदि क्षेत्रों में विदेशी निवेश हो रहा है। यूके, जर्मनी, नीदरलैंड, यूएस, इटली, दक्षिण कोरिया, यूएई आदि देशों की कंपनियां भी राज्य में निवेश करने के लिए आगे आयी हैं। विदेशी कंपनियों के यूपी में निवेश करने के चलते ही पंजाब, केरल, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे कई राज्यों से यूपी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में आगे है।

आधिकारिक बुलेटिन -2 (20-Oct-2020)^प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह^(Foreign Direct Investment Inflow)

Posted on October 20th, 2020

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आर्थिक विकास का एक प्रमुख वाहक है। यह भारत के आर्थिक विकास के गैर-ऋण वित्तीयन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। सरकार का हमेशा से यह प्रयास रहा है कि वह एक सक्षम और निवेशकों के अनुकूल एफडीआई नीति लागू करे। यह सब करने का मुख्य उद्देश्य एफडीआई नीति को निवेशकों के और अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अनुकूल बनाना तथा देश में निवेश के प्रवाह में बाधा डालने वाली नीतिगत अड़चनों को दूर करना है। पिछले छह वर्षों के दौरान इस दिशा में उठाए गए कदमों के परिणाम देश में एफडीआई के प्रवाह की बढ़ती मात्रा से स्पष्ट हैं। एफडीआई के उदारीकरण और सरलीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए, सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआई से संबंधित सुधार किए हैं।

एफडीआई में नीतिगत सुधारों, निवेश सुगमता और व्यापार करने में आसानी के मोर्चों पर सरकार द्वारा किए गए विभिन्न उपायों की वजह से देश में एफडीआई का प्रवाह बढ़ा है। भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के क्षेत्र में निम्नलिखित रुझान वैश्विक निवेशकों के बीच एक पसंदीदा निवेश गंतव्य के तौर पर इसकी स्थिति की पुष्टि करते हैं।

अ. पिछले 6 वर्षों की अवधि (2014-15 से 2019-20) में-

• कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 55% की वृद्धि, अर्थात् 2008-14 में 231.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2014-20 में 358.29 बिलियन अमेरिकी डॉलर हुआ।

• एफडीआई इक्विटी प्रवाह भी 2008-14 के दौरान 160.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 57% बढ़कर 252.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2014-20) हो गया।

ब. वित्तीय वर्ष 2020 –21 (अप्रैल से अगस्त, 2020) में-

• अप्रैल से अगस्त, 2020 के दौरान 35.73 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कुल एफडीआई प्राप्त हुआ है। यह किसी वित्तीय वर्ष के पहले 5 महीनों में सबसे अधिक है और 2019-20 के पहले पांच महीनों (31.60 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की तुलना में 13% अधिक है।

• वित्तीय वर्ष 2020 – 21 (अप्रैल से अगस्त, 2020) के दौरान प्राप्त एफडीआई इक्विटी प्रवाह 27.10 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह भी किसी वित्तीय वर्ष के पहले 5 महीनों के लिए अधिकतम है और 2019-20 के पहले पांच महीनों (23.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की तुलना में 16% अधिक है।

आधिकारिक बुलेटिन -2 (20-Oct-2020) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह (Foreign Direct Investment Inflow)

Posted on October 20th, 2020 | Create PDF File

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश hlhiuj

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आर्थिक विकास का एक प्रमुख वाहक है। यह भारत के आर्थिक विकास के गैर-ऋण वित्तीयन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। सरकार का हमेशा से यह प्रयास रहा है कि वह एक सक्षम और निवेशकों के अनुकूल एफडीआई नीति लागू करे। यह सब करने का मुख्य उद्देश्य एफडीआई नीति को निवेशकों के और अधिक अनुकूल बनाना तथा देश में निवेश के प्रवाह में बाधा डालने वाली नीतिगत अड़चनों को दूर करना है। पिछले छह वर्षों के दौरान इस दिशा में उठाए गए कदमों के परिणाम देश में एफडीआई के प्रवाह की बढ़ती मात्रा से स्पष्ट हैं। एफडीआई के उदारीकरण और सरलीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए, सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआई से संबंधित सुधार किए हैं।

एफडीआई में नीतिगत सुधारों, निवेश सुगमता और व्यापार करने में आसानी के मोर्चों पर सरकार द्वारा किए गए विभिन्न उपायों की वजह से देश में एफडीआई का प्रवाह बढ़ा है। भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के क्षेत्र में निम्नलिखित रुझान वैश्विक निवेशकों के बीच एक पसंदीदा निवेश गंतव्य के तौर पर इसकी स्थिति की पुष्टि करते हैं।

अ. पिछले 6 वर्षों की अवधि (2014-15 से 2019-20) में-

• कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 55% की वृद्धि, अर्थात् 2008-14 में 231.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2014-20 में 358.29 बिलियन अमेरिकी डॉलर हुआ।

• एफडीआई इक्विटी प्रवाह भी 2008-14 के दौरान 160.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 57% बढ़कर 252.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2014-20) हो गया।

ब. वित्तीय वर्ष 2020 –21 (अप्रैल से अगस्त, 2020) में-

• अप्रैल से अगस्त, 2020 के दौरान 35.73 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कुल एफडीआई प्राप्त हुआ है। यह किसी वित्तीय वर्ष के पहले 5 महीनों में सबसे अधिक है और 2019-20 के पहले पांच महीनों (31.60 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की तुलना में 13% अधिक है।

• वित्तीय वर्ष 2020 – 21 (अप्रैल से अगस्त, 2020) के दौरान प्राप्त एफडीआई इक्विटी प्रवाह 27.10 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह भी किसी वित्तीय वर्ष के पहले 5 महीनों के लिए अधिकतम है और 2019-20 के पहले पांच महीनों (23.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की तुलना में 16% अधिक है।

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