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डॉलर की औसत लागत

डॉलर की औसत लागत

पाँचवीं विद्युत प्रणाली विकास परियोजनाः 1 अरब डॉलर

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एशिया के DNS Cyber Attack से प्रभावित शीर्ष तीन देशों में भारत

cyber crime increasing

नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। भारत एशिया (Asia) के शीर्ष तीन देशों में से एक है, जहां 2021 में अब तक सबसे अधिक लागत के डीएनएस (Domain name system) अटैक हुए हैं। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्व स्तर पर लगभग 90 प्रतिशत संगठनों ने डीएनएस साइबर अटैक (DNS Cyber Attack) का अनुभव किया है। हर अटैक की औसत लागत लगभग 9,50,000 डॉलर है।

भारत में डीएनएस अटैक

एफिशिएंटआईपी (Efficient IP) की रिपोर्ट के अनुसार जिन देशों में डीएनएस अटैक से नुकसान में वृद्धि डॉलर की औसत लागत देखी गई है, उनमें मलेशिया शामिल है, जहां 78 प्रतिशत की बढ़त हुई है। साथ ही भारत में पिछले वर्ष की तुलना में 32 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।

क्लाउड कॉन्फ़िगरेशन का दुरुपयोग

वहीं कोरोना काल के दौरान सभी उद्योगों के संगठनों को पिछले साल औसतन 7.6 डीएनएस अटैकों का सामना करना पड़ा। कई कंपनियों को डीएनएस हमले का सामना करना पड़ा है, जिसमें क्लाउड कॉन्फ़िगरेशन (Cloud Configuration) का दुरुपयोग किया गया है। लगभग आधी कंपनियों (47 प्रतिशत) को डीएनएस हमलों के परिणाम में क्लाउड सेवा डाउनटाइम का सामना करना पड़ा है।

डेटा की चोरी

2020 की थ्रेट रिपोर्ट में की तुलना में डीएनएस के माध्यम से डेटा चोरी में भी तेजी से वृद्धि हुई है। 26 प्रतिशत संगठनों ने कस्टमर के डेटा की चोरी की जानकारी दी है। वहीं इस साल, फ़िशिंग (Phishing) की पॉपुलैरिटी में भी वृद्धि जारी है। 49 प्रतिशत कंपनियों ने फ़िशिंग का एक्सपेरिएंस किया, जैसा कि मालवेयर-बेस्ड अटैक (38 प्रतिशत) और ट्रेडिशनल DDoS अटैक (29 प्रतिशत) ने भी किया।

विश्व बैंक ने ‘Migration and Development Brief’ जारी किया

विश्व स्तर पर, 2002 की चौथी तिमाही में 200 डॉलर भेजने की औसत लागत 6% थी। यह संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (UN SDG) 3% के लक्ष्य से दोगुना है। प्रेषण शुल्क को 2% कम करने से निम्न और मध्यम आय वाले देशों से अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों के लिए $12 बिलियन की वार्षिक बचत होगी।

प्राकृतिक गैस 6% महंगी, सीएनजी और पाइप्ड रसोई गैस के भी बढ़ सकते हैं दाम

नई दिल्ली | सरकार ने डॉलर की औसत लागत देश में उत्पादन होने वाले प्राकृतिक गैस की कीमत 1 अप्रैल से 6% बढ़ा दी है। एक यूनिट गैस का दाम 2.89 डॉलर से 3.06 डॉलर किया गया है। यह दो साल में सबसे ज्यादा है। इससे पहले अप्रैल-सितंबर 2016 में भी गैस की कीमत 3.06 डॉलर प्रति यूनिट थी। सरकार छह महीने के लिए गैस के दाम में संशोधन करती है। इस कदम से सीएनजी और पाइप से सप्लाई होने वाली रसोई गैस के दाम बढ़ने के आसार हैं। सीएनजी 50-55 पैसे और पाइप्ड रसोई गैस 35-40 पैसे प्रति घन मीटर महंगी होगी। गैस आधारित पावर प्लांट में बिजली बनाने का खर्च 3% बढ़ जाएगा।हालांकि ओएनजीसी और रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी गैस उत्पादक कंपनियों का रेवेन्यू और मुनाफा बढ़ेगा। गैस की कीमत एक डॉलर बढ़ने से सरकारी कंपनियों का रेवेन्यू 4,000 करोड़ रुपए बढ़ जाता है। गहरे पानी और अत्यधिक तापमान वाली जगहों से निकाली जाने वाली गैस की कीमत 6.30 डॉलर से बढ़ाकर 6.78 डॉलर प्रति यूनिट की गई है। देश में रोजाना 9 करोड़ घन मीटर प्राकृतिक गैस का उत्पादन होता है। भारत की सबसे बड़ी प्रोड्यूसर कंपनी ओएनजीसी 70% गैस का उत्पादन करती है। तीन साल गिरावट के बाद पिछले साल अक्टूबर में गैस के दाम पहली बार बढ़ाए गए थे।

इस बीच, रिलायंस इंडस्ट्रीज और बीपी केजी-डी6 ब्लॉक की आर-सीरीज फील्ड से 2020 तक गैस का उत्पादन शुरू करेगी।

पन्ना-मुक्ता और रवा फील्ड की गैस फॉर्मूले से बाहर-ओएनजीसी, ऑयल इंडिया और रिलायंस के केजी-डी6 ब्लॉक की गैस इसी फॉर्मूले के हिसाब से बेची जाती है। पश्चिमी तट पर पन्ना-मुक्ता, ताप्ती और बंगाल की खाड़ी के रवा फील्ड से निकाली गई गैस के दाम इस फॉर्मूले से बाहर हैं।

नए दाम पिछले साल से 23% ज्यादा हैं
अप्रैल-सितंबर 2017 2.48 डॉलर

अक्टूबर-मार्च 2018 2.89 डॉलर

अप्रैल-सितंबर 2018 3.06 डॉलर

नई कीमत औसत लागत के बराबर या उससे कम : इक्रा
इक्रा ने कहा है कि नई कीमत कंपनियों की औसत लागत के बराबर या उससे कम ही है। डॉलर के मुकाबले रुपया महंगा होने से भी कंपनियों को कम कीमत मिल रही है।

अक्टूबर 2014 में बना था गैस की कीमत का फॉर्मूला
अक्टूबर 2014 में गैस प्राइसिंग का फॉर्मूला घोषित किया गया था। दाम हर साल 1 अप्रैल और 1 अक्टूबर को संशोधित होते हैं। इसमें गैस सरप्लस देशों रूस, इंग्लैंड, अमेरिका और कनाडा में चल रहे दाम का औसत निकाला जाता है।

तेल के खेल में परदे के पीछे अमेरिका-रूस के बीच तकरार, US में उत्पादन खर्च ज्यादा

Oil War

कोरोना वायरस (Corona Virus) के प्रकोप के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था (World Economy) पर मंदी के खतरे की आशंकाओं के कारण कच्चे तेल (Crude Oil) की घटती मांग के बीच तेल बाजार पर वर्चस्व की लड़ाई एक बार फिर तेज हो गई है. तेल निर्यातक देशों के समूह ओपेक द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती कर बाजार में संतुलन बनाने के लिए रूस (Russia) को मनाने में विफल रहने के बाद ओपेक के प्रमुख सदस्य सऊदी अरब ने सस्ते दाम पर तेल बेचने का फैसला लिया, जिसके कारण दाम सोमवार को टूटकर फरवरी 2016 के निचले स्तर पर आ गया. हालांकि जानकार बताते हैं कि तेल के इस खेल में असल किरदार अमेरिका और रूस हैं.

अमेरिका पर असर ज्यादा
ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा ने बताया कि तेल के दाम में गिरावट का सबसे ज्यादा असर अमेरिका पर होगा, जिसके शेल से तेल का उत्पादन डॉलर की औसत लागत महंगा होता है. उन्होंने कहा कि तेल बाजार पर वर्चस्व की लड़ाई असल में अमेरिका और रूस के बीच है, क्योंकि रूस में तेल की औसत उत्पादन लागत कम है, जबकि अमेरिका की डॉलर की औसत लागत औसत उत्पादन लागत अधिक है और अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक बनकर उभरा है. उन्होंने बताया कि अमेरिका में शेल से तेल उत्पादन की औसत लागत करीब 40 डॉलर प्रति बैरल है, जबकि रूस में उत्पादन लागत इससे काफी कम है. उन्होंने बताया कि दुनिया में तेल की उत्पादन लागत सबसे कम है, लेकिन अमेरिका में तेल की उत्पादन लागत अधिक होने से वहां के उत्पादकों को तेल के दाम में गिरावट से नुकसान होगा.

ओपेक देशों को होगा भारी नुकसान
तनेजा ने कहा, 'रूस में तेल के कुंए जमीन और समुद्र दोनों में हैं, जबकि सऊदी अरब में ज्यादातर तेल जमीन से आता है. समुद्र से तेल का उत्पादन महंगा होता है, जबकि जमीन से उत्पादन सस्ता होता है.' केडिया एडवायजरी के डायरेक्टर अजय केडिया ने बताया कि तेल बाजार पर वर्चस्व की लड़ाई में असल तकरार अमेरिका और रूस के बीच है, क्योंकि दाम घटने का सबसे बड़ा नुकसान अमेरिका को ही होने वाला है. ऊर्जा विशेषज्ञ बताते हैं कि सऊदी अरब द्वारा तेल की कीमतों को लेकर छेड़ी गई जंग में ओपेक के अन्य सदस्य देशों को भी भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा, जहां तेल की उत्पादन लागत अधिक है.

कोरोना वायरस के बहाने जंग तेज
कोरोना वायरस का प्रकोप चीन के बाहर दुनिया के अन्य देशों में फैलने से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मंदी का खतरा बना हुआ है. चीन तेल का एक बड़ा उपभोक्ता है, जहां कोरोना वायरस ने इस कदर कहर बरपाया है कि वहां के उद्योग-धंधे और परिवहन व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है. लिहाजा तेल की मांग घटने और कीमत जंग छिड़ने के कारण सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में पिछले सत्र के मुकाबले 30 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई, जोकि 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है.

कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट
इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई) डॉलर की औसत लागत ब्रेंट क्रूड के मई अनुबंध में पिछले सत्र से 21.69 फीसदी की गिरावट के साथ डॉलर की औसत लागत 35.45 डॉलर पर कारोबार चल रहा था, जबकि इससे पहले ब्रेंट क्रूड का दाम 31.डॉलर की औसत लागत 27 डॉलर प्रति बैरल तक गिरा, जोकि 12 फरवरी, 2016 के बाद का सबसे निचला स्तर डॉलर की औसत लागत है जब भाव 30.85 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया था. बता दें कि 11 फरवरी, 2016 को ब्रेंट क्रूड का भाव 29.92 डॉलर प्रति बैरल तक टूटा था. न्यूयॉर्क मर्केटाइल एक्सचेंज यानी नायमैक्स पर अप्रैल डिलीवरी अमेरिकी लाइट क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) के अनुबंध में 22.65 फीसदी की गिरावट के साथ 31.93 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था, जबकि इससे पहले डब्ल्यूटीआई का भाव 27.34 डॉलर प्रति बैरल तक गिरा. बता दें डॉलर की औसत लागत कि 11 फरवरी, 2016 को डब्ल्यूटीआई का दाम 26.05 डॉलर प्रति बैरल तक गिरा था.

सऊदी अरब ने भी छेड़ा प्राइस वॉर
एंजेल ब्रोकिंग के (एनर्जी व करेंसी रिसर्च) के डिप्टी वाइस प्रेसीडेंट अनुज गुप्ता ने बताया कि तेल के उत्पादन में कटौती को लेकर ओपेक और रूस के बीच सहमति नहीं बनने के बाद सऊदी ने प्राइस वार छेड़ दिया है. उन्होंने बताया कि मौजूदा परिस्थिति में कच्चे तेल के दाम में और गिरावट देखने को मिल सकती है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम में आई इस गिरावट के कारण भारतीय वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर कच्चे तेल के मार्च अनुबंध में पिछले सत्र के मुकाबले 762 रुपए यानी 24.12 फीसदी की गिरावट के साथ 2397 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था, जबकि इससे पहले एमसीएक्स पर कच्चे तेल का दाम 2,151 रुपये प्रति बैरल तक गिरा.

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