मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई

डब्ल्यूटीओ में सुधार के लिए भारत, जर्मनी ने जताई प्रतिबद्धता
भारत और जर्मनी दोनों ने ही नियमों पर आधारित स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं समावेशी व्यापार को अहम बताते हुए कहा कि बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के केंद्र के रूप में डब्ल्यूटीओ का महत्वपूर्ण स्थान है और यह विकासशील देशों को वैश्विक व्यापार व्यवस्था में लाने का केंद्रीय स्तंभ है।
बयान के मुताबिक, ‘‘दोनों ही सरकारें डब्ल्यूटीओ में सुधार के लिए प्रतिबद्ध हैं ताकि इसके सिद्धांत एवं कामकाज को मजबूत किया जा सके। खासकर अपीलीय निकाय की स्वायत्तता बरकरार रखने के साथ उसे द्विस्तरीय बनाए रखना अहम है।’’
अपीलीय निकाय डब्ल्यूटीओ के सदस्य मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई देशों की तरफ से उठाए गए मुद्दों पर की गई अपीलों की सुनवाई करता है। इस सात सदस्यीय निकाय में स्थान खाली होने से फिलहाल यह अपीलों की सुनवाई नहीं कर पा रहा है।
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.
ब्रिटेन के लोगों की जेब ढीली करके बड़ा झटका देंगे ऋषि सुनक! बजट में ऐलान संभव
दो दिन पहले प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने चांसलर मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई ऑफ एक्सचेकर जेरेमी हंट से मुलाकात की थी. इस दौरान दोनों के बीच टैक्स और बजट से संबंधित मुद्दों पर बातचीत होगी.
TV9 Bharatvarsh | Edited By: हर्षित मिश्रा
Updated on: Nov 03, 2022 | 12:51 PM
ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने के बाद कुछ बड़े फैसलों पर विचार कर रहे हैं. सामने आई रिपोर्ट्स के अनुसार ऋषि सुनक की नई सरकार आर्थिक चुनौतियां झेल रहे ब्रिटेन को इससे निकालने का प्लान तैयार कर रही है. जल्द ही उनकी सरकार अपना पहला बजट पेश करने वाली है. लेकिन इस बजट से ब्रिटेन के लोगों को झटका लग सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि ऋषि सुनक की सरकार ब्रिटिश लोगों से अधिक टैक्स वसूलने पर मुहर लगा सकती है.
दो दिन पहले प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने चांसलर ऑफ एक्सचेकर जेरेमी हंट से मुलाकात की थी. इस दौरान दोनों के बीच टैक्स और बजट से संबंधित मुद्दों पर बातचीत होगी. दोनों में टैक्स बढ़ाने और खर्च को लेकर भी दोनों के बीच अहम बातचीत हुई थी. ट्रेजरी ने दावा किया था कि दोनों के बीच इस सिद्धांत पर सहमति बनी है कि अमीर लोगों पर अधिक बोझ डाला जा सकता है. यह बात भी सामने आई है कि अगले कुछ सालों तक हर व्यक्ति को अधिक टैक्स चुकाना पड़ सकता है. कहा जा रहा है कि अगर इनकम टैक्स बढ़ाया जाता है तो इसके दायरे में लाखों लोग आएंगे.मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई
भारत से ट्रेड डील पर सुनक ने जताई प्रतिबद्धता
वहीं दूसरी ओर भारत से बेहतर संबंधों को लेकर भी ब्रिटेन ने प्रतिबद्धता जताई है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कार्यालय ने बुधवार को कहा था कि नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक एक संतुलित समझौते को लेकर प्रतिबद्ध हैं और इस दिशा में भारत व मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर गहन बातचीत चल रही है. पिछले हफ्ते ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का कार्यभार संभालने के बाद सुनक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की थी जिसमें दोनों पक्षों ने एफटीए के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी.
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‘गुणवत्ता से समझौता नहीं करेंगे’
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कार्यालय 10 डाउनिंग स्ट्रीट ने कहा कि पूरा ध्यान एक संतुलित व्यापार समझौते पर है जो दोनों पक्षों के लिए लाभदायक हो, इसलिए इसकी कोई समयसीमा नहीं बताई गई है. एक प्रवक्ता ने कहा, दोनों पक्ष इसे लेकर प्रतिबद्ध हैं, अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभाग के नेतृत्व में गहन बातचीत चल रही है. इसमें आगे कहा गया, प्रधानमंत्री सुनक की पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी से बहुत ही गर्मजोशी भरी बातचीत हुई. जहां तक इसकी (एफटीए) गति की बात है, यह बिलकुल स्पष्ट है कि रफ्तार के पीछे हम गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं करेंगे. एक संतुलित समझौता होने पर हम हस्ताक्षर करेंगे, ऐसा समझौता जो दोनों पक्षों के हित में हो. हालांकि दोनों पक्षों की प्रतिबद्धता कायम है. (इनपुट भाषा से भी)
RCEP से बाहर होकर क्या अलग-थलग पड़ जाएगा भारत?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सप्ताह जब आसियान सम्मेलन के लिए बैंकॉक पहुंचे थे तो उम्मीद जताई जा रही थी कि इस बार भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक समझौता (आरसीईपी) में शामिल हो जाएगा. हालांकि, देश के भीतर जारी विरोध-प्रदर्शनों के बीच पीएम मोदी ने समझौते से बाहर होने का ऐलान कर दिया.
आरसीईपी एक मुक्त व्यापार समझौता है जिस पर 10 आसियान देशों (ब्रुनेई, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, विएतनाम) और 5 अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया) ने सहमति दे दी है. इस समझौते में शामिल देश एक-दूसरे को व्यापार में टैक्स में कटौती समेत तमाम आर्थिक छूट देंगे. कहा जा रहा था कि आरसीईपी में शामिल होने के बाद भारत को चीन समेत अन्य मजबूत उत्पादक देशों के लिए अपना बाजार खोलने के लिए बाध्य होना पड़ता जिससे देश का व्यापार मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई घाटा बहुत बढ़ सकता था.आरसीईपी से भारत के हटने के बाद ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यू जीलैंड समेत चीन को बड़ा झटका लगा है क्योंकि वे भारत जैसे बड़े बाजार का लाभ उठाने से चूक गए.
कई विश्लेषक भारत के इस फैसले को वर्तमान परिस्थितियों में सही ठहरा रहे हैं लेकिन इसके साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था व विदेश नीति के लिए कुछ मुश्किल सवाल भी खड़े होने लगे हैं. आरसीईपी को दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता कहा जा रहा है और यह आने वाले समय में एशिया के भविष्य को तय करने में अहम भूमिका निभाएगा. भारत अभी तक अमेरिका की अगुवाई वाले ट्रांस-पैसेफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) में भी शामिल नहीं हुआ है.
प्रधानमंत्री मोदी शुरुआत से ही ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी पर जोर देते रहे हैं लेकिन आरसीईपी से अलग-थलग पड़ने के बाद क्षेत्र के व्यापार में चीन का दबदबा हो जाएगा. अगर भारत भी इस समझौते में शामिल होता तो इसमें दुनिया की एक-तिहाई जीडीपी आ जाती.
दूसरी तरफ, भारत की व्यापार और घरेलू आर्थिक सुधारों को लेकर प्रतिबद्धता को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. विश्लेषकों का कहना है कि वैश्वीकरण के दौर में आप लंबे समय तक प्रतिस्पर्धा से डरकर भाग नहीं सकते हैं.
स्वीडन में उपासला यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल स्टडीज के निदेशक और एसोसिएट प्रोफेसर अशोक स्वैन ने भी भारत के इस कदम को लेकर ट्विटर पर अपनी चिंता जाहिर की है. उन्होंने एक ट्वीट में लिखा, "भारत की गैर-मौजूदगी में अब चीन दुनिया के सबसे बड़े व्यापारिक समझौते का नेतृत्व करेगा. पीएम मोदी ने भारत को इस क्षेत्र में और दुनिया में अकेला कर दिया है."
उन्होंने आगे लिखा, भारत आरसीईपी से इस डर से बाहर निकल गया क्योंकि भारत के मैन्युफैक्चरर चीन के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते हैं. तो फिर भारत को चीन को चुनौती देने की बात भूल ही जानी चाहिए. उन्होंने ट्वीट में लिखा मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई कि अगर भारत धरती पर सबसे समृद्ध और ताकतवर देश बनना चाहता है तो प्रतिस्पर्धा से कैसे डर सकता है.
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि आरसीईपी की शर्तें भारत के पक्ष में नहीं थीं. अगर भारत इस समझौते में शामिल होता तो भारतीय बाजार के इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टर में चीनी वस्तुओं की बाढ़ आ जाती. सूत्रों के मुताबिक, भारत ने सॉफ्टवेयर आउटसोर्सिंग सेक्टर में वर्क वीजा जैसे तमाम क्षेत्रों में अपनी बात मनवाने में नाकाम रहा.
भारत के इस कदम के पीछे बड़ी वजह आसियान व चीन के साथ भारी-भरकम व्यापार घाटा है यानी भारत इन देशों को अपना सामान बेचता कम है जबकि इनसे आयात ज्यादा करता है. 2018 में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 58 अरब डॉलर था. अगर भारत आरसीईपी में शामिल हो जाता तो यह व्यापार घाटा और बढ़ जाता. अब जब आरसीईपी पर एशिया के बाकी 15 देश आगे बढ़ चुके हैं, भारत के लिए अपने घरेलू बाजार को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए सुधार लागू करने की चुनौती आ गई है. भारत लंबे वक्त से वैश्विक उत्पादन का पावरहाउस बनने की भी बात करता रहा है. अगर भारत आरसीईपी पर हस्ताक्षर करता तो भारत के लिए निर्यात करना आसान हो जाता.
कई सालों की चर्चा के बाद भारत आरसीईपी में कृषि जैसे क्षेत्रों में कुछ रियायत हासिल करने में कामयाब रहा था और पिछले कुछ महीनों में ऐसा लग रहा था कि मोदी सरकार आरसीईपी पर भारत के आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों को देखते हुए सहमति देने के लिए तैयार है. हालांकि, तभी घरेलू दबाव बनने लगा और तमाम किसान-व्यापारिक संगठन इसके विरोध में उतर आए. कांग्रेस पार्टी ने भी आरसीईपी को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए झटका बताते हुए कहा कि इससे भारत में दूसरे देशों का सस्ता सामान भर जाएगा और लाखों लोगों अपने रोजगार से हाथ धो बैठेंगे.
हालांकि, भारत को आरसीईपी से मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई अलग होने के आर्थिक से ज्यादा भू-राजनीतिक नुकसान झेलने पड़ेंगे. दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के ब्लॉक ने भारत को आरसीईपी में शामिल करने के लिए बड़े धैर्य के साथ लंबा इंतजार किया लेकिन भारत के फैसले के बाद आसियान देशों का भारत पर भरोसा कमजोर पड़ेगा. भारत नहीं चाहता था कि चीन एक और व्यापारिक क्षेत्र में अपना दबदबा कायम कर ले.
भारत एशिया में नेतृत्व की भूमिका में आना चाहती है लेकिन दूसरी तरफ, भारत को इस क्षेत्र के सबसे बड़े संगठन से बाहर होना पड़ा. जाहिर तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था में चीनी प्रभुत्व का डर जायज है लेकिन ऐसे बड़े मंचों पर ऐसी दलीलें बहुत मायने नहीं रखती हैं. आरसीईपी से बाहर रहने के बाद अब देश में कर व श्रम सुधार और मैन्युफैक्चरिंग में सुधार की सख्त जरूरत बताई जा रही है.
कई विश्लेषकों का ये भी कहना है कि मोदी का फैसला दूसरे देशों पर दबाव बनाकर ज्यादा बढ़िया डील करने का एक तरीका भी हो सकता है. आरसीईपी के सदस्य देश फिर से इकठ्ठा होकर भारत को नए प्रस्ताव और छूट दे सकते हैं ताकि भारत अगले वर्ष तक इसमें शामिल हो जाए. फिलहाल, आरसीईपी भारत के बिना आगे बढ़ेगा जो भारत की आर्थिक और रणनीतिक नेतृत्व की महत्वाकांक्षाओं के लिए बड़े झटके की तरह है.
भारत, ब्रिटेन के मंत्री व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू करने को लेकर अगला कदम उठाने पर सहमत
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री लिज ट्रस के साथ सोमवार को वचुअर्ल बैठक की.
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री लिज ट्रस के साथ सोमवार को वचुअर्ल बैठक की.
- News18Hindi
- Last Updated : September 15, 2021, 02:10 IST
नई दिल्ली. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री लिज ट्रस के साथ सोमवार को वचुअर्ल बैठक की. इस बैठक में ब्रिटेन भारत व्यापार समझौते को लेकर बातचीत शुरू करने के लिये अगला कदम उठाये जाने पर सहमति जताई गई. ब्रिटेन की सरकार ने मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई यह कहा.
ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभाग (डीआईटी) ने कहा कि दोनों मंत्रियों के बीच बातचीत भारत ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिये गुंजाइश मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई और आकांक्षा पर केन्द्रित रही. इस बातचीत से पहले 31 अगस्त को ब्रिटेन ने औपचारिक विचार विमर्श की प्रक्रिया को पूरा कर लिया.
डीआईटी द्वारा सोमवार की इस बैठक पर जारी नोट में कहा गया है कि उन्होंने विचार विमर्श से सामने आई जानकारियों पर चर्चा की और इस साल के अंत तक बातचीत शुरू करने की तैयारियों के लिये उठाये जाने वाले कदमों पर सहमति जताई. इसमें सितंबर से व्यापार कार्यसमूहों की श्रृंखला की शुरुआत भी शामिल है. उन्होंने नई स्थापित की गई विस्तारित व्यापार भागीदारी पर भी चर्चा की और बाजार पहुंच पैकेज के समय पर क्रियान्वयन को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की.
ब्रिटेन की सरकार ने कहा कि इस तरह की नियमित मंत्री स्तरीय बातचीत से दोनों पक्षों को विभिन्न क्षेत्रों में एक दूसरे की स्थिति को समझने में मदद मिलती है. किसी भी व्यापार समझौते में शुल्क, मानकों, बौद्धिक संपदा और डेटा नियमन सहित अलग अलग क्षेत्र होते हैं. डीआईटी ने कहा कि ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री ने एक ऐसे व्यापार समझौते को लेकर अपनी आंकांक्षा को फिर से व्यक्त किया जिससे ब्रिटेन के लोगों और डिजिटल एवं डेटा, प्रौद्योगिकी और खाद्य एवं पेय क्षेत्र सहित विभिन्न व्यवसायियों के लिये बेहतर परिणाम हों.
दोनों मंत्रियों के बीच इस बात को लेकर भी सहमति थी कि आगे होने वाली बातचीत के दौरान व्यवसायिक समुदाय के साथ जुड़े रहना महत्वपूर्ण होगा.
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अब ब्रिटेन में चीन को कड़ी टक्कर देंगे 'मेड इन इंडिया' प्रोडक्ट, भारत और UK लेने जा रहे हैं ये कदम
डीआईटी द्वारा सोमवार की इस बैठक पर जारी नोट में कहा गया है, ‘‘उन्होंने विचार विमर्श से सामने आई जानकारियों पर चर्चा की और इस साल के अंत तक बातचीत शुरू करने की तैयारियों के लिये उठाये जाने वाले कदमों पर सहमति जताई।
Edited by: India TV Paisa Desk
Updated on: September 14, 2021 16:11 IST
Photo:REDIFF DOT COM
अब ब्रिटेन में चीन को कड़ी टक्कर देंगे 'मेड इन इंडिया' प्रोडक्ट, भारत और UK लेने जा रहे हैं ये कदम
लंदन। भारतीय प्रोडक्ट ब्रिटेन में काफी लोकप्रिय हैं। यदि सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही भारत की कंपनियां यूके के बाजार में धूम मचा सकती हैं। दरअसल वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री लिज ट्रस के साथ सोमवार को वचुअर्ल बैठक की। इस बैठक में ब्रिटेन-भारत व्यापार समझौते को लेकर बातचीत शुरू करने के लिये अगला कदम उठाये जाने पर सहमति जताई गई। ब्रिटेन की सरकार ने यह कहा। ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभाग (डीआईटी) ने कहा कि दोनों मंत्रियों के बीच बातचीत भारत- ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिये ‘‘गुंजाइश और आकांक्षा’’ पर केन्द्रित रही। इस बातचीत से पहले 31 अगस्त को ब्रिटेन ने औपचारिक विचार विमर्श की प्रक्रिया को पूरा कर लिया।
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डीआईटी द्वारा सोमवार की इस बैठक पर जारी नोट में कहा गया है, ‘‘उन्होंने विचार विमर्श से सामने आई जानकारियों पर चर्चा की और इस मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई साल के अंत तक बातचीत शुरू करने की तैयारियों के लिये उठाये जाने वाले कदमों पर सहमति जताई। इसमें सितंबर से व्यापार कार्यसमूहों की श्रृंखला की शुरुआत भी शामिल है।’’ डीआईटी ने कहा, ‘‘उन्होंने नई स्थापित की गई विस्तारित व्यापार भागीदारी पर भी चर्चा की और बाजार पहुंच पैकेज के समय पर क्रियान्वयन को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।’’ ब्रिटेन की सरकार ने कहा कि इस तरह की नियमित मंत्री स्तरीय बातचीत से दोनों पक्षों मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई को विभिन्न क्षेत्रों में एक दूसरे की स्थिति को समझने में मदद मिलती है।
किसी भी व्यापार समझौते में शुल्क, मानकों, बौद्धिक संपदा और डेटा नियमन सहित अलग अलग क्षेत्र होते हैं। डीआईटी ने कहा कि ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री ने एक ऐसे व्यापार समझौते को लेकर अपनी आंकांक्षा को फिर से व्यक्त किया जिससे ब्रिटेन के लोगों और डिजिटल एवं डेटा, प्रौद्योगिकी और खाद्य एवं पेय क्षेत्र सहित विभिन्न व्यवसायियों के लिये बेहतर परिणाम हों। दोनों मंत्रियों के बीच इस बात को लेकर भी सहमति थी कि आगे होने वाली बातचीत के दौरान व्यवसायिक समुदाय के साथ जुड़े रहना महत्वपूर्ण होगा।