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चलने की औसत

चलने की औसत

पृष्ठ : आर्थिक भूगोल.djvu/३९३

३५२ आर्थिक भूगोल हिन्दुस्तान का जो भाग भूमध्य रेखा के समीप है वह त्रिभुजाकार है । जिससे उस पर समुद्र का अधिक से अधिक प्रभाव पड़ता है। पठार की ऊँचाई भी गरमी को कुछ कम कर देती है। उत्तर के मैदानों की तिब्बत से चलने वाली ठंडी हवाओं से हिमालय की ऊंची दीवार रक्षा करती है यदि उत्तर में हिमालय के ऊँचे पहाड़ न खड़े होते तो सर्दियों में उत्तर के मैदानों में भयंकर शीत पड़ना । चलने की औसत उत्तर-पश्चिम के हिन्दू कुश, सफेद कोह, तथा सुलेमान पहाड़ भी हिन्दुस्तान की ईरान के तूफानों से रक्षा करते हैं। दरों के जरिये आने वाली हवाओं का प्रभाव बहुत अधिक नहीं होता। भारतवर्ष में जलवृष्टि मानसून हवाओं के द्वारा होती है। भारतवर्ष का जलवायु बहुत कुछ मानसून हवाओं द्वारा प्रभावित मानसून होता है अतएव इनके विषय में हमें विस्तार पूर्वक जान लेना चाहिए। इस देश में जलवृष्टि के विचार से वर्षा दो हिस्सों में बाँटी जा सकती है। पहला सूखे महीने, जिसमें वर्षा बिलकुल नहीं होती। दूसरे वर्षा के महीने । दिसम्बर से लेकर मई तक भारतवर्ष में सूखे दिन होते हैं चलने की औसत और इन दिनों में पृथ्वी से समुद्र की ओर चलने वाली हवाओं की प्रधानता रहती है । इन सूखी हवाओं के चलने से तापक्रम बहुत घटता बढ़ता रहता है। जून से दिसम्बर तक यहाँ बरसात के दिन होते हैं। उन दिनों हवा समुद्र से पृथ्वी की ओर चलती है । इस कारण हवा में नमी अधिक होती है, और तापक्रम का उतार चढ़ाव अधिक नहीं होता। गरमी के महीनों में भूमध्य रेखा के समीप हिन्द महासागर का औसत . तापक्रम ७६० फै० होता है, परन्तु उन्हीं दिनों में भारतीय प्रायद्वीप का औसत तापक्रम ८२० फै. तथा सिंघ बिलोचिस्तान का औसत तापक्रम १५०फै० से भी अधिक हो जाता है। अधिक गरमी के कारण स्थल की हवा हल्की होकर ऊपर उठ जाती है और भूमध्य रेखा की अधिक भारी हवा इसका स्थान लेने के लिए आती है। लगातार भाप के मिलते रहने से यह हवा नमी से लबालब भरी रहती है । पानी से भरी हुई मानसून दक्षिण- पश्चिम से भारतवर्ष की ओर चलती है और मालाबार तट से टकराती है। गरमी में चलने वाली मानसून को दो शाखाओं में बांटा जा सकता है (१) अरब सागर की मानसून (२ ) बंगाल खाड़ी की मानसून | बंगाल खाड़ी की मानसून पृथ्वी से बहुत दूर चन्न कर टकराती है और बहुत बड़े भाग पर वर्षा करती है । अरब सागर की मानसून में यद्यपि जल बहुत अधिक होता है, किन्तु उसका अधिकांश जल पश्चिमी घाट पर ही गिर जाता है । अरब

चलने का यह तरीका योग व जिम से भी ज्यादा फायदेमंद

चलने का तरीका

दरअसल फिजिकल एक्टिविटी की कमी व ज्यादातर वक्त बैठे रहने की वजह से युवा मोटापा, ब्लड प्रेशर व अन्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। ऐसे में वो खुद को फिट रखने के लिए जिम का सहारा लेते हैं। वो कई घंटे जिम में पसीना बहाकर खुद को शेप में रख रहे हैं।

इसके अलावा आज के युवाओं की योग में भी रूचि बढ़ने लगी है। योग गुरु बाबा रामदेव ने इतने अच्छे तरीके से ब्रांडिंग की है कि युवा नए-नए आसन सीखकर अपने शरीर को चुस्त-दुरुस्त कर रहे हैं।

लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है जो जिम जाने या योग करने का सोचते तो बहुत है, लेकिन अपनी सोच को वो अमल में नहीं ला पाते। ऐसे लोगों के लिए एक आसान उपाय यह है कि वो पैदल चलकर भी फिट रह सकते हैं। दरअसल एक खास तरीके से चला जाए तो वो योग करने या जिम जाने से भी ज्यादा फायदा पहुंचाता है।

चलिए आपको बताते हैं क्या है वो खास चलने का तरीका –

चलने का तरीका – चलने के कई फायदे

चलने का तरीका

यह तो हम सभी जानते हैं कि मॉर्निंग वॉक करने व रात में खाना खाने के बाद घूमने से कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं। एक स्टडी के अनुसार तो रोजाना 20 मिनिट चलने से मौत का खतरा कई प्रतिशत तक कम हो जाता है।

चलने का तरीका

इतना ही नहीं पैदल चलने से दिल स्वस्थ रहता है और दिल की बीमारियों का खतरा 40% तक कम होता है। जब आप प्रकृति के बीच चलते हैं तो आपकी बॉडी में गुड हार्मोन्स बनते हैं और तनाव दूर होता है। इसके अलावा पैर व घुटनों की चलने की औसत मांसपेशियां तो मजबूत होती ही है।

मगर यदि आप नीचे बताए जा रहे खास तरीके से चलेंगे तो आपके लिए फायदे और बढ़ जाएंगे।

तेज चलने से होता है फायदा

चलने का तरीका

हाल ही में हुई एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि धीमे के बजाए औसत गति से चलने से दिल से जुड़ी बीमारियों से होने वाली मौत का खतरा 20% तक कम हो जाता है। जबकि तेज चलने से मृत्युदर में 24% तक की कमी आ जाती है।

कैंसर पर नहीं असर

चलने का तरीका

रिसर्च से जुड़े एक सूत्र का कहना है, “ लिंग या बॉडी मास इंडेक्स का परिणामों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, जबकि एवरेज या फ़ास्ट स्पीड से चलने का दिल संबंधी व अन्य बीमारियों से होने वाली मृत्यु के खतरे को कम करने से जरूर संबंध था। हालांकि कैंसर से होने वाली मौतों पर इस गति से चलने से कोई प्रभाव होता है या नहीं इसका कोई सबूत नहीं मिला।”

क्या होती है तेज गति?

चलने का तरीका

एक्सपर्ट्स के अनुसार 5-7 किलोमीटर/घंटा की गति से चलना तेज चलना माना जाता है, परंतु असल में यह चलने वाले के फिटनेस लेवल पर भी निर्भर करता है।

इसे जानने का दूसरा तरीका यह है कि उस गति से चला जाए कि वॉक खत्म होने तक पसीना आने लगे या सांस फूलने लग जाए।

चलने का तरीका

टीम को पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में पब्लिक हेल्थ से जुड़े मैसेज व कैंपेन आदि में चलने की गति पर भी ध्यान दिया जाएगा।

ये है बेस्ट चलने का तरीका – तो यदि आप फिट रहना चाहते हैं तो रोज सुबह धीरे नहीं बल्कि तेज या कम से कम औसत गति में चलने निकल जाइए।

चलने की औसत

हरे चलने की औसत रंग से चिह्नित बाहरी सर्किल में बृहस्पति के ग्रेट रेड स्पॉट की सीमाओं के भीतर हवा की औसत गति 2009 से 2020 के दौरान आठ प्रतिशत तक बढ़ी है। ( इमेजः नासा )

ना सा के हबल स्पेस टेलीस्कोप ने बृहस्पति ग्रह के विशालकाय लाल धब्बे (Great Red Spot) में रहस्यमय परिवर्तनों का पता लगाया है। अंतरिक्ष से प्राप्त तस्वीरों के विश्लेषण से वैज्ञानिकों को पता चला है कि बृहस्पति के इस विशालकाय लाल धब्बे वाले क्षेत्र में हवाओं की गति में वृद्धि हो रही है।

नासा द्वारा इस संबंध में जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि ‘एक आगे बढ़ने वाले रेसिंग कार चालक की गति की तरह, बृहस्पति के ग्रेट रेड स्पॉट की सबसे बाहरी "लेन" में हवाएं तेज हो रही हैं।’ इसमें स्पष्ट किया गया है कि यह खोज नासा के हबल स्पेस टेलीस्कॉप द्वारा ही संभव है, जिसने एक दशक से अधिक समय तक ग्रह की निगरानी की है।

बृहस्पति के विशालकाय लाल धब्बे वाले क्षेत्र में हवाओं की गति में वृद्धि का क्या अर्थ है? वैज्ञानिकों का कहना है कि "इसका पता लगाना फिलहाल मुश्किल है, क्योंकि हबल टेलीस्कोप तूफान के तल को बहुत अच्छी तरह से नहीं देख सकता है। क्लाउड टॉप के नीचे कुछ ऐसा है, जो डेटा में अदृश्य है।" "लेकिन, यह परिणाम डेटा के दिलचस्प एवं विस्तृत तथ्यों का एक हिस्सा है, जो हमें यह समझने में मदद कर सकता है कि ग्रेट रेड स्पॉट की ऊर्जा का स्रोत क्या है और यह कैसे अपनी ऊर्जा बनाए रखता है।" हालाँकि, उनका कहना यह भी है कि इसे पूरी तरह से समझने के लिए अभी बहुत काम करना बाकी है।

हबल की नियमित "स्टॉर्म रिपोर्ट" का विश्लेषण करने वाले शोधकर्ताओं ने पाया कि तूफान की सीमाओं के भीतर हवा की औसत गति, जिसे हाई-स्पीड रिंग के रूप में जाना जाता है, वर्ष 2009 से 2020 तक आठ प्रतिशत तक बढ़ गई है। इसके विपरीत, लाल धब्बे के अंदरूनी क्षेत्र के पास हवाएं काफी धीमी गति से आगे बढ़ रही हैं, जैसे कोई रविवार के दिन दोपहर की धूप में आलस से दौड़ रहा हो।

नासा के हबल स्पेस टेलीस्कोप ने बृहस्पति ग्रह के विशालकाय लाल धब्बे (Great Red Spot) में रहस्यमय परिवर्तनों का पता लगाया है। अंतरिक्ष से प्राप्त तस्वीरों के विश्लेषण से वैज्ञानिकों को पता चला है कि बृहस्पति के इस विशालकाय लाल धब्बे वाले क्षेत्र में हवाओं की गति में वृद्धि हो रही है।

बड़े पैमाने पर तूफान के गहरे लाल रंग के बादल 400 मील प्रति घंटे से अधिक की गति से वामावर्त घूमते हैं - और यह भंवर पृथ्वी से भी बड़ा बताया जा रहा है। बृहस्पति पर लाल धब्बा चलने की औसत पहले से ही प्रसिद्ध है, क्योंकि इसे 150 से अधिक वर्षों से देखा जा रहा है।

इस अध्ययन का नेतृत्व कर रहे कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के माइकल वोंग का कहना है कि "जब मैंने शुरू में अध्ययन के परिणाम देखे, तो मैंने यही सवाल पूछा कि 'क्या इसका कोई मतलब है?' इसे पहले कभी किसी ने नहीं देखा।" "हबल की लंबी उम्र और इसके माध्यम से चल रहे अवलोकन ने इस रहस्योद्घाटन को संभव बनाया है।"

मैरीलैंड, ग्रीनबेल्ट में स्थित नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के वैज्ञानिक एमी साइमन का कहना है कि हम वास्तविक समय में पृथ्वी पर बड़े तूफानों को बारीकी से ट्रैक करने के लिए पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों और हवाई जहाजों का उपयोग करते हैं। "चूंकि हमारे पास बृहस्पति पर तूफानों का पता लगाने के लिए 'स्टोर्म चेजर विमान' नहीं हैं, इसलिए, हम लगातार वहाँ पर चलने वाली हवाओं को माप नहीं सकते हैं।" "हबल एकमात्र टेलीस्कोप है, जिसमें ऐसी भौतिक कवरेज और स्थानिक रिजोल्यूशन का समावेश है, जो बृहस्पति की हवाओं को कैप्चर कर सकता है।"

वोंग ने कहा है कि "हमने पाया कि ग्रेट रेड स्पॉट में औसत हवा की गति पिछले एक दशक में थोड़ी बढ़ रही है।" "हमारे पास एक उदाहरण हैस जहाँ द्वि-आयामी पवन मानचित्र के हमारे विश्लेषण में वर्ष 2017 में अचानक परिवर्तन पाया गया, जब पास में एक बड़ा संवहनी (Convective storm) तूफान था।"

वैज्ञानिकों ने हबल राशि के साथ हवा की गति में परिवर्तन पृथ्वी पर प्रति वर्ष 1.6 मील प्रति घंटे से कम पाया है। साइमन ने कहा है कि "हम इतने छोटे बदलाव के बारे में बात कर रहे हैं कि अगर आपके पास हबल डेटा के ग्यारह साल के आंकड़े नहीं होते, तो हमें नहीं पता होता कि ऐसा हुआ है।" हबल की नियमित निगरानी शोधकर्ताओं को इसके डेटा पर बार पुनर्विचार करने और विश्लेषण करने की सहूलियत देती है, क्योंकि वे इससे सतत् जुड़े रहते हैं।

रेलवे स्टेशन के बोर्डों पर समुद्र तल से औसत ऊँचाई क्यों लिखी होती है?


हिंदी, अंग्रेजी और एक स्थानीय भाषा में रेलवे स्टेशनों के नाम के साथ पीले रंग के साइनेज पर समुद्र तल से स्टेशन की ऊँचाई का उल्लेख रहता है। यह यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।

बेहतर ढंग से समझने के लिए इस चित्र को देखें:

IRCTC latest news

ऐसा क्यों है और इससे कैसे मदद मिलती है?

इसके तीन कारण हैं!

सबसे पहले, जब भारत में शुरुआती रेलवे स्टेशन बनाये जा रहे थे, तो समुद्र के औसत तल को जानने से स्टेशनों को बनाने और ट्रैक बिछाने में मदद मिलती थी जिससे बाढ़ और उच्च ज्वार से बचा जा सकता था।

दूसरा, समुद्र तल से ऊँचाई की जानकारी का उपयोग स्टेशन के पास भवन निर्माण की योजना बनाने के लिए किया गया।

और तीसरा, यह संकेत ट्रेन चालकों को इस बात की जानकारी देती थी कि वे किस ऊँचाई पर यात्रा कर रहे थे, जिससे उन्हें ट्रेन की शक्ति और चलने की गति के बारे में निर्णय लेने में मदद मिलती थी।

उदाहरण के लिए, जब ट्रेन समुद्र तल से 100 मीटर की ऊँचाई से 200 मीटर की ऊँचाई पर जाती है, तो ट्रेन चालक को यह पता चल जायेगा कि यात्रा को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसे कितनी शक्ति बढ़ानी होगी।


इसी तरह, जब कोई ट्रेन समुद्र तल से एक निश्चित ऊँचाई से नीचे आती है, तो ट्रेन चालक दो स्टेशनों के बीच गति को बनाये रखने के लिए पीले संकेतों का उपयोग करता है।

आधुनिक तकनीक के आने से यह तीसरा कारण अब लागू नहीं होता। आज ट्रेन की गति की योजना और निगरानी पहले से की जाती है, जो समुद्र के औसत स्तर के अलावा कई अन्य कारकों से प्रभावित होती है, जैसे यातायात, मौसम, दिन का समय, आदि। यही कारण है कि आप नये रेलवे स्टेशनों में औसत समुद्र स्तर लिखा हुआ नहीं पायेंगे।

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