स्केलिंग ट्रेडिंग रणनीति

शेयर मार्केट में वॉल्यूम क्या होता है

शेयर मार्केट में वॉल्यूम क्या होता है

Liquid Stock क्या है और लिक्विड स्टॉक कैसे चुनें?

लिक्विड स्टॉक क्या है? अगर आपने शेयर बाजार में ट्रेडिंग के बारे में कहीं पढ़ा या सुना होगा। तो वहां हमेशा liquid stock को खरीदने व बेचने के लिए कहा जाता है। आज बड़े बड़े ट्रेडर्स लिक्विड स्टॉक में ट्रेड करने को कहते हैं। साथ ही जिस स्टॉक में liquidity नहीं होती है। तो उसमे ट्रेडिंग करने के लिए आपको हमेशा 'ना' ट्रेड करने की सलाह देते हैं।

आज के समय कई नये ट्रेडर्स शेयर मार्केट में एंट्री लिए है। जो ट्रेडिंग करके financial independent होना चाहते हैं। ट्रेडिंग के लिहाज से आपको liquidity का मतलब जानना बहुत जरूरी होता है।

खासकर यह लेख उन retail trader's के लिए फायदमंद है जो नॉन कॉमर्स बैकग्राउंड के है। शेयर मार्केट में liquidity शब्द उनके लिए थोड़ा टेक्निकल हो जाता है। इसलिए आज के लेख "liquid stock क्या होते हैं और liquid stock कैसे चुने?" के बारे में आसान शब्दो में जानेंगे। आइए तो फिर पहले जानते हैं कि मार्केट में liquidity शब्द का क्या अर्थ होता है।

Liquidity क्या है?

Liquidity का हिंदी में अर्थ "तरलता" होता है। इसका मतलब यह हुआ कि किसी भी asset को कितनी आसानी से खरीदा और बेचा जा सकता है। यानी कि कोई भी asset जितना liquid होगा, उसकी उतनी आसानी से खरीद और बिक्री की जा सकता है। वहीं अगर कोई asset जितना illiquid होगा उसे बेचना और खरीदना उतना ही मुश्किल होता है।

Liquid Stock क्या है?

Liquid Stock का मतलब किसी भी शेयर को आसानी से कभी भी खरीदा और बेचा जा सकता है। यानी कि आपके पास जो भी शेयर है, उसे सही समय आने पर कैश में आसानी से बदला जा सके। अच्छी लिक्वडिटी वाले शेयरों में नजर रखना और उसमे ट्रेड या निवेश करने से आपको यह मदद मिलती है कि जब भी आपको एक मोटा प्रॉफिट हो तो उसे आसानी से बेच सके।

यदि आप illiquid stock में ट्रेड या निवेश करते हैं तो शायद यह भी हो सकता है, कि आपको कभी भी उस share को बेचना हो लेकिन कोई खरीदने वाला ना मिले। इसलिए प्रोफेशनल ट्रेडर्स और निवेशक आपको इस तरह के स्टॉक में ट्रेड या निवेश करने से मना करते है। क्योंकि stock illiquid होने के कारण आपको बेचने में दिक्कत आ सकती है।

लिक्विड शेयरों के चार्ट में आपको हर एक मिनट कि कैंडल में बॉडी मिल जाती है। इस तरह के स्टॉक में हर एक मिनट में अच्छा वॉल्यूम होता है। Liquidity होने के कारण हर एक मिनट में शेयरों के प्राइस में उतार चढ़ाव होता रहता है। ज्यादातर penny stocks और कम प्राइस वाले शेयरों में लिक्वडिटी नहीं होती है।

Trading के लिए Liquid Stock क्यों महत्वपूर्ण है?

लिक्वडिटी का अर्थ आप लोग जान गए होगे। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा कि trading के लिए लिक्विड स्टॉक क्यों जरूरी होते हैं। आइए जानते हैं कि लिक्वडिटी बाजार को दो मुख रूप से कैसे प्रभावित करती है:-

1. मूल्य प्रसार ( Price Spread )

Finance में स्प्रेड का मतलब दो प्राइस, रेट्स, या यील्ड का अंतर होता है। अगर आसान शब्दो में बताए तो मूल्य प्रसार मार्केट के खरीदार और विक्रेता के ऑर्डर्स का अंतर होता है। यह हमें बताने की कोशिश करता है कि एक खरीदार और विक्रेता के खरीद और बिक्री के प्राइस में क्या अंतर है।

Liquid Stock खरीद प्राइस और बिक्री प्राइस के बीच में आने वाले गैप को कम करने की कोशिश करता है। यानी कि लिक्विड स्टॉक में low price spread होता है। वहीं illiquid stock में खरीद प्राइस और बिक्री प्राइस के बीच में आने वाला गैप बहुत ज्यादा होता है। यानी कि illiquid स्टॉक में high price spread होता है। इसलिए illiquid स्टॉक में किसी भी शेयर को खरीदना और बेचना मुश्किल हो शेयर मार्केट में वॉल्यूम क्या होता है जाता है।

2. Slippage

Slippage का हिंदी में अर्थ "फिसलन" या " गिरावट" होता है। वहीं ट्रेडिंग slippage का मतलब अपेक्षित कीमत (expected price) और उस कीमत के बीच का अंतर जो ट्रेड निष्पादित (executed) हो चुका है। वैसे तो बाजार में शेयरों के प्राइस में तेजी से उतार चढ़ाव आता है। इसलिए slippage कभी भी हो सकता है। लेकिन ज्यादातर समय slippage होने कारण शेयर में high volatility होती है। दूसरी तरफ इसके होने का कारण यह भी है कि जब कोई बड़े मात्रा में ऑर्डर को executed किया जाता है, लेकिन उस समय bid/ask प्राइस के बीच में स्प्रेड बनाए रखने के लिए चयन किए गए प्राइस में वॉल्यूम नहीं होता है। बता दू कि liquid stock में illiquid stock में मुकाबले slippage कम होती है।

Slippage को हम दो प्रकार में भिवाजित कर सकते हैं। एक सकारात्मक गिरावट और दूसरा नकारात्मक गिरावट है। सकारात्मक गिरावट तब होती है जब लॉन्ग ट्रेड में ask price का कम होना और शॉर्ट ट्रेड में bid price का बढ़ना होता है। वहीं नकारात्मक गिरावट तब होती है जब लॉन्ग ट्रेड में ask price का बढ़ना होना और शॉर्ट ट्रेड में bid price का कम होना होता है।

Trading के लिए Liquid Stocks को कैसे चुने?

Trading के लिए लिक्विड स्टॉक का होना आवश्यक है। खासकर intraday trading के लिए highly liquid stocks का होना जरूरी है। स्टॉक में वॉल्यूम के साथ साथ volatility होने से शेयर कि लिक्विडिटी बढ़ जाती है। आइए तो फिर जानते हैं की ट्रेडिंग के लिए लिक्वड स्टॉक्स कैसे चुने?

1. High Trade Volume

किसी भी स्टॉक में high volume होने का मतलब उस स्टॉक पर एक दिन में कितनी खरीद और बिक्री हुई है। हाई वॉल्यूम यानी कि उस स्टॉक में हाई लिक्विडिटी का होना है।

2. Bid/Ask प्राइस में कम अंतर होना

Bid/Ask प्राइस में कम अंतर होने का मतलब यह हुआ की उस स्टॉक को खरीदने के लिए अनेकों खरीददार मौजूद है। वहीं दूसरी तरफ अनेकों विक्रेता उस स्टॉक को बेचने के लिए मौजूद है। इससे slippage कि कमी और high liquidity होना दर्शाता है।

3. मध्य volatility वाले शेयरों को चुने

अगर किसी स्टॉक में कम लिक्विडिटी यानी कि वोलैटिलिटी बिल्कुल भी नहीं है। वह स्टॉक जो पूरी तरह से choppy है। उनसे हमेशा दूर रहना चाहिए। लेकिन वही दूसरी तरफ अगर स्टॉक ज्यादा वोलेटाइल होगा, तो उसमे नुकसान भी उतना ही ज्यादा हो सकता है। इसलिए ट्रेडिंग के लिए मध्य volatility वाले शेयरों को चुने। मध्य volatility वाले शेयरों में रिस्क, हाई volatility वाले शेयरों से कम होता है।

निष्कर्ष

ट्रेडर्स के नजरिए से स्टॉक में लिक्विडिटी होना बहुत जरूरी होता है। हाई लिक्विडिटी वाले स्टॉक को आसानी से खरीदा और बेचा जा सकता है। इस तरह के स्टॉक को जल्दी से नकदी में बदला जा सकता है। अगर किसी स्टॉक में लिक्विडिटी नहीं है तो शायद आप एक अच्छी ऑपर्च्युनिटी खो दे।

डे ट्रेडर्स को हाई लिक्विडिटी वाले स्टॉक का चयन करना चाहिए। क्योंकि उन्हें एक दिन में कई सौदे करने पड़ते हैं। अगर दूसरी तरफ देखे तो स्टॉक में लिक्विडिटी नहीं होने के कारण आप एक दिन में कई ट्रेड ना ले पाए। Illiquid stocks में आपके रिस्क कैपेसिटी से भी ज्यादा का नुकसान हो सकता है।

उम्मीद करता हूं कि आपको आज का लेख "liquid stocks क्या है? लिक्वड स्टॉक कैसे चुने?" पसंद आया होगा। ऐसे ही वित्तीय बाजार के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे ब्लॉग से जुड़े रहे। हम यहां आपको वित्तीय बाजार के साथ शेयर मार्केट में वॉल्यूम क्या होता है साथ टेक्नोलॉजी से जुड़ी अन्य जानकारियां भी साझा करते हैं।

शेयरों की श्रेणी | Category of Shares in Hindi.

शेयरों की श्रेणी की बात करें तो Bombay Stock Exchange में सूचीबद्ध शेयरों को विभिन्न श्रेणियों में बाँटा जा सकता है, इनमें से कुछ मुख्य श्रेणियां A, B1, B2 इत्यादि हैं | शेयरों को इन विभिन्न श्रेणियों में विभाजित करने के अपने मतलब तथा अपनी अपनी व्याख्याएँ हो सकती हैं । किसी भी शेयर को शेयरों की श्रेणी में रखने से पहले कई बातों पर विचार किया जाना जरुरी होता है जो की किया भी जाता है । शेयरों को शेयरों की श्रेणी में रखते समय प्रमुख दो बिन्दुओं ‘मार्केट कैपिटलाइजेशन’ तथा ‘ट्रेडिंग वॉल्यूम’ पर प्रमुख रूप से गौर किया जाता है ।

इन दोनों प्रमुख बातों अर्थात Market Capitalization एवं Trading Volume को मिलाकर ही तय किया जाता है कि किसी कंपनी का शेयर किस श्रेणी के अंतर्गत रखा जाना चाहिए । A श्रेणी के अंतर्गत रखी जाने वाली कंपनियों का ‘उच्च बाजार पूँजीकरण’ (High Market Capitalization) तथा उच्च ट्रेडिंग वॉल्यूम’ अर्थात बड़ी मात्रा में शेयरों का लेन-देन होता है । यद्यपि उच्च बाजार पूँजीकरण (लार्ज कैप) तथा मध्यम बाजार पूँजीकरण’ (मिड कैप) के वर्गीकरण के मापदंडों में परिवर्तन होता रहता है ।

जिन कंपनियों का मार्केट कैपिटलाइजेशन मध्यम आकार का होता है तथा शेयरों की तरलता (लिक्विडिटी) अपेक्षाकृत कम होती है, उन शेयरों की श्रेणी को ‘B’ श्रेणी में आँका जाता है । शेयरों की कीमतों में परिवर्तन तथा बाजार की परिस्थितियों में बदलाव के चलते कंपनियों के शेयर एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में परिवर्तित हो सकते हैं जो की समय समय पर परिवर्तित होते भी रहते हैं ।

शेयरों की श्रेणी Shares category

1. एस’ ग्रुप के शेयर

शेयरों की श्रेणी में पहली श्रेणी एस’ ग्रुप के शेयर की है, छोटी कंपनियाँ, जिनका पैडअप कैपिटल 20 करोड़ रुपए तक का हो तथा वे बी.एस.ई. (Bombay Stock Exchange ) में लिस्टेड अर्थात सूचीबद्ध हों, तो ऐसे शेयर ‘एस’ ग्रुप के शेयर्स कहलाते हैं । यहाँ ‘एस’ का अभिप्राय ‘स्मॉल कैपिटल स्टॉक’ से है । इनमें से कई कंपनियाँ पहले क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होती थीं, फिर उन्हें इस श्रेणी अर्थात एस’ ग्रुप में डाल दिया गया ।

2. शेयरों की श्रेणी ‘टी’ ग्रुप

इस ‘टी’ ग्रुप नामक शेयरों की श्रेणी में टी से अभिप्राय ट्रेड टू ट्रेड सेग्मेंट से है इस श्रेणी के अंतर्गत वे कंपनियाँ आती हैं, जिनकी शेयरों की ट्रेडिंग में बहुत ज्यादा स्पेकुलेशन तथा वोलेटिलिटी रहती है । स्पेकुलेशन अर्थात अटकलों के शेयर मार्केट में वॉल्यूम क्या होता है प्रभाव को कम करने के लिए शेयरों को इस श्रेणी में डाला जाता है ।

इस श्रेणी के तहत दर्ज शेयरों की ट्रेडिंग के दौरान प्रत्येक लेन-देन में शेयरों की डिलीवरी देना अनिवार्य होता है, यह सब इसलिए होता है ताकि जब तक कोई निवेशक शेयरों की डिलीवरी देने में सक्षम न हो, शेयरों का लेन-देन न कर सके । इससे स्पेकुलेशन पर नियंत्रण अर्थात कण्ट्रोल बना रहता है ।

3. जेड’ श्रेणी के शेयर

माना यह जाता है की निवेशकों को ‘जेड’ श्रेणी के शेयरों के प्रति सदैव सावधान रहना चाहिए, क्योंकि शेयरों की श्रेणी में इस श्रेणी की कंपनियों द्वारा स्टॉक एक्सचेंज के मापदंडों का पूरी तरह पालन नहीं किया गया होता है । इस श्रेणी के शेयरों में निवेश जोखिम भरा हो सकता है; क्योंकि इन कंपनियों के साथ डिलिस्टिंग की संभावना जुड़ी होती है ।

ऐसी स्थिति में निवेशक कभी मालामाल तो कभी कंगाल भी ओ सकते हैं यही कारण है की निवेशकों को इस शेयरों की श्रेणी के प्रति हमेशा सतर्कता बरतनी पड़ती है ।

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इनका नाम महेंद्र रावत है। इनकी रूचि बिजनेस, फाइनेंस, करियर जैसे विषयों पर लेख लिखना रही है। इन शेयर मार्केट में वॉल्यूम क्या होता है विषयों पर अब तक ये विभिन्न वेबसाइटो एवं पत्रिकाओं के लिए, पिछले 7 वर्षों में 1000 से ज्यादा लेख लिख चुके हैं। इनके द्वारा लिखे हुए कंटेंट को सपोर्ट करने के लिए इनके सोशल मीडिया हैंडल से अवश्य जुड़ें।

शेयर बाजार में ट्रेडिंग का समय बढ़ने से किसे फायदा होगा?

पहले बाजार 9.45 शेयर मार्केट में वॉल्यूम क्या होता है बजे सुबह खुलता था, अभी वो 9 बजे खुलता है और 3.30 बजे बंद होता है

शेयर बाजार में ट्रेडिंग का समय बढ़ने से किसे फायदा होगा?

एक बार फिर देश के शेयर बाजारों में ट्रेडिंग का समय बढ़ने को लेकर चर्चा होने लगी है. कैपिटल मार्केट रेगुलेटर सेबी और स्टॉक एक्सचेंज इस बारे में विचार कर रहे हैं. ऐसी खबरें हैं कि शेयर बाजार में ट्रेडिंग का वक्त कम से कम डेढ़ घंटे और ज्यादा से ज्यादा 4 घंटे तक बढ़ाया जा सकता है.

इस बारे में कोई भी फैसला सेबी को करना है, लेकिन स्टॉक एक्सचेंज चाहते हैं कि बाजार में ट्रेडिंग का समय बढ़ाकर शाम 5 बजे या 7.30 बजे तक कर दिया जाए. वैसे तो अक्टूबर 2009 में सेबी ने एक्सचेंजों को सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक शेयर मार्केट खोले जाने की मंजूरी दी थी. इसके बाद ट्रेडिंग का ओपनिंग टाइम तो सुबह 9 बजे कर दिया गया लेकिन ब्रोकरों के विरोध के कारण क्लोजिंग टाइम शाम 3.30 से आगे नहीं बढ़ाया गया.

पहले बाजार 9.45 बजे सुबह खुलता था, अभी वो 9 बजे खुलता है और 3.30 बजे बंद होता है. ट्रेडिंग के लिए समय 9.15 से 3.30 तक का रखा गया है. सुबह 9 से 9.15 तक का समय प्री-ओपनिंग सौदों के लिए होता है.

एक्सचेंज क्यों बढ़ाना चाहते हैं ट्रेडिंग का समय

एक्सचेंजों का कहना है कि ट्रेडिंग का समय बढ़ाने से ग्लोबल शेयर बाजारों के साथ भारतीय बाजारों का तालमेल बेहतर होगा. एक्सचेंजों की शेयर मार्केट में वॉल्यूम क्या होता है शेयर मार्केट में वॉल्यूम क्या होता है दलील है कि इससे ना सिर्फ विदेशी निवेशकों को भारत में ट्रेडिंग के लिए ज्यादा वक्त मिलेगा, बल्कि कमोडिटी एक्सचेंजों के साथ भी बेहतर तालमेल हो सकेगा.

इसका फायदा ज्यादा सौदों और वॉल्यूम के रूप में दिखेगा. हालांकि एक्सचेंजों की इन दलीलों से सभी भारतीय ब्रोकर सहमत नहीं हैं. माना जा रहा है कि ट्रेडिंग का समय बढ़ाना बड़े ट्रेडर्स और ब्रोकरेज हाउस के लिए तो फायदेमंद रहेगा, लेकिन छोटे ब्रोकरेज हाउस को इससे नुकसान होगा. इसलिए छोटे ब्रोकरेज हाउस लगातार ट्रेडिंग का समय बढ़ाए जाने का विरोध करते रहे हैं.

छोटे ब्रोकर क्यों कर रहे हैं विरोध

छोटे ब्रोकरेज हाउसेज का कहना है कि कड़े मुकाबले और लगातार बढ़ रहे ऑटोमेशन की वजह से ब्रोकिंग का धंधा पहले से ही काफी दबाव में है. ऐसे में अगर ट्रेडिंग का समय बढ़ाया जाता है, तो इससे छोटे और मध्यम आकार के ब्रोकरों के लिए लागत बढ़ेगी और उन्हें नुकसान झेलना पड़ेगा. उन्हें न सिर्फ दो शिफ्टों में काम करना होगा, बल्कि स्टाफ की संख्या भी बढ़ानी पड़ेगी.

छोटे ब्रोकरों के मुताबिक बड़े ब्रोकरेज हाउस तो दूसरे काम-धंधों से कमाई कर लेते हैं, और उनके पूरे बिजनेस का सिर्फ 5-10% हिस्सा ही ब्रोकिंग से आता है. इसलिए उन्हें ट्रेडिंग का समय बढ़ाए जाने से दिक्कत नहीं है.

छोटे ब्रोकरों का ये भी कहना है कि स्टॉक एक्सचेंज सिर्फ अपना फायदा देख रहे हैं. ट्रेडिंग का समय बढ़ाने से विदेशी बाजारों से तालमेल बढ़ने की दलील में कोई दम नहीं है, क्योंकि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में शेयर बाजार के खुलने का समय अलग-अलग है.

शेयर बाजार में निवेश का एकदम नया तरीका है Smallcase, मिलती हैं ढेरों सुविधाएं

Share Market Investment

शेयर मार्केट (Share Market) में निवेश के लिए नए-नए तरीके लोगों के सामने आ रहे हैं. स्मॉलकेस (Smallcase) एक ऐसा ही प्रोडक्ट है जो कि शेयर बाजार में निवेश के बेहतरीन तरीके के रूप में चर्चित हो रहा है. बता दें कि जुलाई 2015 में IIT खड़गपुर के तीन छात्रों ने नए जमाने के शेयर निवेशकों को ध्यान में रखकर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए स्मॉलकेस की स्थापना की थी. स्मॉलकेस ने मौजूदा समय में देश के तकरीबन सभी बड़े ब्रोकरेज हाउसेज के साथ समझौता किया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 3 साल में स्मॉलकेस का ट्रांजैक्शन वॉल्यूम 300 गुना बढ़ चुका है. इस रिपोर्ट में स्मॉलकेस क्या है और यह काम कैसे करता है इसको समझने की कोशिश करेंगे.

दरअसल, स्मॉलकेस शेयर मार्केट में निवेश करने का नया तरीका है. निवेशक स्मॉलकेस (Smallcase) में एक शेयर नहीं बल्कि थीम और स्ट्रैटजी के आधार पर शेयर या एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) के एक बास्केट की खरीदारी करते हैं. इन थीम शेयर मार्केट में वॉल्यूम क्या होता है में आईटी, ग्रामीण विकास, डिजिटल, ऑटो, एनर्जी, यूटिलिटी आदि से जुड़ी कंपनियां हो सकती हैं. स्मॉलकेस वैल्यू और ग्रोथ की रणनीति के आधार पर भी तैयार किए जाते हैं. आसान शब्दों में कहें तो स्मॉलकेस कुछ शेयरों का ग्रुप होता है जो कि म्यूचुअल फंड की तरह काम करता है. हालांकि यह म्यूचुअल फंड से पूरी तरह से अलग होता है.

स्मॉलकेस को सेबी से रजिस्टर्ड एक्सपर्ट के द्वारा बनाया और मैनेज किया जाता है. निवेशकों को स्मॉलकेस के जरिए निवेश का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि वे इसके जरिए डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो खरीद सकते हैं. निवेशकों के पास स्मॉलकेस के जरिए निवेश की यात्रा शुरू करने के लिए डीमैट अकाउंट (Demat Account) और ट्रेडिंग अकाउंट (Trading Account) का होना जरूरी है.

स्मॉलकेस में निवेश से फायदा
अगर कोई निवेशक म्यूचुअल फंड में निवेश करता है तो वहां पर फंड मैनेजर ही उससे जुड़े सभी फैसले लेता है. निवेशक के पास फंड के द्वारा निवेश से जुड़े फैसले लेने का अधिकार नहीं होता है. वहीं दूसरी स्मॉलकेस के मामले में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. निवेशक स्मॉलकेस में से किसी शेयर को हटा और जोड़ सकता है.

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