स्केलिंग ट्रेडिंग रणनीति

बाजार के लिए वैश्विक रणनीति

बाजार के लिए वैश्विक रणनीति
जे लौवियन द्वारा बेटर कॉटन के सीईओ, एलन मैक्ले।

विश्व बाजार के लिए व्यापार नीति पर पुनर्विचार जरूरी

शांघाई में करीब-करीब दो महीनों के पूर्ण लॉकडाउन के बाद इस माह के आरंभ में वहां नए सिरे से आंशिक लॉकडाउन लगा दिया गया। कोविड को लेकर शून्य-सहनशीलता की चीन की इस अत्यंत आग्रही रणनीति ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (जीवीसी) के समीकरण बिगाड़ दिए हैं। यह श्रृंखला नए सिरे से आकार ले रही है और उससे जुड़े अंशभागी नए ठिकाने तलाश रहे हैं। यह प्रक्रिया यूं तो पिछले दशक से जारी है, किंतु उसकी गति लड़खड़ाती रही। पुनर्गठन की इस प्रक्रिया में भारत इससे जुड़ी इकाइयों को अभी तक खास आकर्षित नहीं कर पाया है। अब उसके समक्ष एक और अवसर दस्तक दे रहा है, जिसे गंवाना नहीं चाहिए।

जीवीसी पुनर्गठन की प्रक्रिया 2008-09 में वैश्विक वित्तीय मंदी के दौर में ही शुरू हो गई थी। फिर जापान में आए भूकंप और सुनामी के बाद 2011 में थाईलैंड में आई बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने इस सिलसिले को और तेजी से आगे बढ़ाया। जहां भूकंप ने सेमीकंडक्टर उत्पादन को प्रभावित किया, वहीं थाईलैंड की बाढ़ ने ऑटोमोटिव वैल्यू चेन के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इलेक्ट्रिकल उपकरणों की आपूर्ति पर असर बाजार के लिए वैश्विक रणनीति डाला। तब बड़ी कंपनियों ने पुनर्संतुलन का जोखिम उठाया। जीवीसी का क्षेत्रीयकरण या पड़ोसी देशों में छोटी दूरी की आपूर्ति श्रृंखलाएं इसमें तरजीही विकल्पों के रूप में उभरीं। किसी आकस्मिक स्थिति या एकाएक मांग में वृद्धि से ताल मिलाने के लिए निकटवर्ती उत्पादन सुविधाओं ने लचीलापन प्रदान किया।

पिछले दशक के अंत में जब अमेरिका-चीन व्यापार रिश्तों में तनाव अपने चरम पर पहुंच गया था तब बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए ‘चीन प्लस वन’ (चीन के साथ एक और देश में उत्पादन केंद्रित करना) वैकल्पिक रणनीति के रूप में उभरी। उसमें यूरोपीय संघ, मैक्सिको, ताइवान और वियतनाम जैसे देश स्पष्ट विजेता के रूप में उभरे, जहां वाहन, मशीनरी, परिवहन एवं इलेक्ट्रिकल उपकरणों जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश हुआ। मशीनरी क्षेत्र में मामूली से लाभ को छोड़ दिया जाए तो चीन से इस व्यापार पलायन पर भारत को कोई खास फायदा नहीं पहुंचा। महामारी के चलते सीमाओं की नाकाबंदी और उसके बाद यूक्रेन युद्ध ने आपूर्ति श्रृंखला संबंधी दुश्वारियों को और बढ़ा दिया है, क्योंकि इनके चलते प्रमुख बाजार के लिए वैश्विक रणनीति खनिजों, पदार्थों और अन्य आवश्यक तत्वों की आपूर्ति में गतिरोध उत्पन्न हो गया है। जीवीसी को ज्यादा लचीला एवं व्यावहारिक बनाने के लिए अब वैकल्पिक व्यापार साझेदारों से बाजार के लिए वैश्विक रणनीति उन प्रमुख कच्चे मालों की आसान आपूर्ति का विकल्प तलाशा जा रहा है, जो आवश्यक वस्तुओं की भरपाई कर सकें। इस संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यही आता है कि आवश्यक कच्चे माल या इनपुट के लिए उचित व्यापार साझेदार कैसे तलाए जाएं? क्या वे क्षेत्र की परिधि में ही होने चाहिए, मित्र राष्ट्रों के पड़ोस में हों या फिर देश के भीतर घरेलू आपूर्तिकर्ताओं से इसकी पूर्ति की जाए? वैश्विक स्तर पर जीवीसी को लचीलापन प्रदान करने के लिए स्थानीयकरण और क्षेत्रीयकरण जैसे दो विकल्पों को लेकर चर्चा हो रही है।

क्षेत्रीयकरण और स्थानीयकरण दोनों में ही भू-राजनीतिक जोखिम घटाने के लिए क्षमताओं-गुणवत्ता के स्तर पर समझौता किया जा सकता है। फिर भी क्षेत्रीयकरण उसमें बेहतर विकल्प है। स्थानीयकरण के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण इनपुट पर शुल्क (टैरिफ) बढ़ाकर और उन पर प्रतिबंध जैसे संरक्षणवादी कदमों के माध्यम से घरेलू स्तर पर उत्पादित इनपुट के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाता है। साथ ही घरेलू स्तर पर समग्र आपूर्ति श्रृंखला को स्थापित करने की कवायद बहुत समय लेने वाली है। इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि पूरी तरह घरेलू इनपुट पर निर्भरता स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला को ठहराव का शिकार बना देगी और बाहरी झटकों से निपटने में उसकी क्षमताएं घट जाएंगी।

भारत के मामले में यह और अधिक प्रासंगिक है, जो घरेलू स्तर पर ही समूची आपूर्ति श्रृंखला बनाने के अभियान में जुटा है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत की व्यापार नीति अधिक संरक्षणवादी हुई है और यह भी एक प्रमुख कारण रहा है, जिसके चलते भारत पूर्व में जीवीसी पुनर्गठन और व्यापार पलायन बाजार के लिए वैश्विक रणनीति बाजार के लिए वैश्विक रणनीति के दौर का लाभ नहीं उठा पाया।

पिछले दो दशकों के दौरान जीवीसी आधारित व्यापार में मध्यवर्ती (इंटरमीडिएट) वस्तुओं-कलपुर्जों का वर्चस्व निरंतर बढ़ने पर है। कई देशों ने इसका लाभ उठाने के लिए अपनी नीतियां बदली हैं। चीन और आसियान अर्थव्यवस्थाओं को ही लें तो उन्होंने विशेष रूप से वाहन और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में काम आने वाले बाजार के लिए वैश्विक रणनीति पुर्जों के व्यापार में अनुकूल शुल्क बनाए हैं। इन देशों में निर्यात-केंद्रित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने में इसका अहम योगदान रहा है। इसके विपरीत भारत में जीवीसी-इंटेंसिव क्षेत्रों में न केवल ऊंचे शुल्क हैं, बल्कि ड्यूटी मुक्त प्रावधान भी बहुत कम हैं। यहां तक कि मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) में आयात औपचारिकताओं से जुड़ी जटिलताएं भी निर्यातकों की राह कठिन करती हैं। वहीं अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि कुछ जिंसों का आयात करने के लिए लाइसेंस व्यवस्था शुरू हो सकती है।

चीन पर दृष्टि डालें तो आयात घटाने और आत्मनिर्भरता बढ़ाने को लेकर चीन ने बीते कुछ वर्षों में जो दांव चला वह जीवीसी सहभागिता के अत्यंत ऊंचे स्तर के बाद ही संभव हुआ। दूसरी ओर भारत को देखें तो बीते दो दशकों में यहां जीवीसी एकीकरण का स्तर कम रहा और 2012 से वह और घटने पर है। चीन, मलेशिया, वियतनाम, थाईलैंड और मैक्सिको जैसे अन्य उभरते बाजारों के उलट भारत की व्यापार नीति व्यापार बढ़ाने में जीवीसी एकीकरण के साथ ही विनिर्माण प्रतिस्पर्धा क्षमताएं बढ़ाने की महत्ता को समझने पर केंद्रित ही नहीं है। यही कारण है कि पिछले दो दशकों में जहां वैश्विक व्यापार रुझान में विनिर्माण का दबदबा रहा तो विश्व व्यापार में भारत की उपस्थिति बहुत सीमित दिखी। (व्यापक विश्लेषण आप मेरी हाल में प्रकाशित पुस्तक ‘इंडियाज ट्रेड पॉलिसी इन ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी’ में देख सकते हैं।)

निम्न एवं अनुकूल शुल्क ढांचे के अतिरिक्त व्यापार एवं निवेश समझौते भी जीवीसी-क्षेत्रीय वैल्यू चेन नेटवर्क्स के साथ जुड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत ने हाल में एफटीए/व्यापक व्यापार अनुबंधों पर वार्ता की गति बढ़ाई है। ये एफटीए भारत के निर्यात को बढ़ाने में भले ही मददगार हों, लेकिन इसमें संदेह है कि इससे भारत के निर्यात में विविधीकरण बढ़े और उसमें विनिर्मित वस्तुओं की हिस्सेदारी बढ़े या फिर भारतीय विनिर्माण की प्रतिस्पर्धा को नए पंख लगें। भारत खाड़ी के जिन देशों के साथ एफटीए की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, उनका जीवीसी-आरवीसी से कोई खास जुड़ाव नहीं। इसीलिए भारत द्वारा आसियान या पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को अनदेखा नहीं करना चाहिए। विशेषकर इन संकेतों के बीच कि अब चीन के बजाय जापान और कोरिया से अमेरिका को सीधे ही जरूरी वस्तुओं का निर्यात किया जाने लगा है। भारत ने आरसेप को भले ही ठंडे बस्ते में डाल दिया हो, लेकिन उसे आसियान, जापान और कोरिया से व्यापार बढ़ाने के रास्ते तलाशने चाहिए। साथ ही ऑस्ट्रेलिया के साथ करार को भी जल्द से व्यापक रूप में पूर्णता प्रदान करे। कुल मिलाकर सार यही है कि दीर्घकालिक विनिर्माण प्रतिस्पर्धा क्षमताएं हासिल करने के लिए जीवीसी के साथ जुड़ाव महत्त्वपूर्ण है। ऐसे में चीन की शून्य-कोविड रणनीति से जो अवसर बना है, उसे भुनाने के लिए भारत को अपनी व्यापार नीति को नए सिरे से गढ़ना चाहिए।

(लेखिका जेएनयू में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में अर्थशास्त्र की प्राध्यापक हैं)

Investment Tips: मल्टी एसेट रणनीति का वर्ष है 2022, निवेश से लाभ के लिए अपनाएं ये टिप्‍स

हमारा इक्विटी वैल्युएशन इंडेक्स बताता है कि मूल्यांकन हल्का नहीं है। (Pti)

पर्याप्त नकदी के कारण बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए वैश्विक केंद्रीय बैंकों व सरकारों ने बाजार से धीरे धीरे अतिरिक्त नकदी वापस लेने के संकेत दिए हैं। यह ऐसा कदम है जिसका असर भारत सहित वैश्विक बाजारों पर पड़ सकता है।

नई दिल्‍ली, एस नरेन। पिछले एक दशक से हम आसान नकदी की स्थितियां और वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में कटौती देख रहे हैं। इसकी वजह से सामान्य रूप से इक्विटी मार्केट के लिए अनुकूल वातावरण का सृजन हुआ। खासकर पिछले एक साल से महामारी से जुड़ी वृद्धि संबंधी चुनौतियों पर काबू पाने के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं ने भरपूर नकदी जारी की। ज्यादातर उभरती और बाजार के लिए वैश्विक रणनीति विकसित अर्थव्यवस्थाएं आज अपस्फीति से फिर से मुद्रास्फीति की तरफ बढ़ने की ओर हैं। पर्याप्त नकदी के कारण बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए वैश्विक केंद्रीय बैंकों और सरकारों ने बाजार से धीरे-धीरे अतिरिक्त नकदी वापस लेने के संकेत दिए हैं। यह ऐसा कदम है, जिसका असर भारत सहित वैश्विक बाजारों पर पड़ सकता है।

अर्थ तंत्र को गति देते बैंक। पीटीआई फोटो

ऐसी स्थिति में जब हम वैल्युएशन, साइकिल, ट्रिगर्स और सेंटीमेंट (वीसीटीएस) फ्रेमवर्क के हिसाब से भारत के बाजारों को देखते हैं तो भारत मजबूत स्थिति में नजर आता है।

वैल्युएशनः अगर हम संपत्तियों के मूल्यांकन को देखें तो उनके औसत की तुलना में संपत्तियों का मूल्यांकन बढ़ा बना हुआ है। ऐतिहासिक रूप से जब भी किसी संपत्ति वर्ग का पूर्ण मूल्यांकन हुआ रहता है, तो वे अस्थिर हो जाते हैं। हमारा इक्विटी वैल्युएशन इंडेक्स बताता है कि मूल्यांकन हल्का नहीं है और स्पष्ट होता है कि इक्विटी निवेश दीर्घावधि के हिसाब से हुआ है, जबकि संपत्ति आवंटन ढांचे का कड़ाई से पालन किया गया है।

साइकिलः भारत में व्यापार चक्र अनुकूल हो गया है, जो इस वक्त प्रमुख सकारात्मक बात है। कंपनियों ने अपना कर्ज कम किया है, सरकार का राजकोषीय घाटा नियंत्रण में है और वित्तीय क्षेत्र के गैर निष्पादित कर्ज का चक्र भी नियंत्रण में है। बुनियादी ढांचा विकास व अन्य क्षेत्रों में सरकार ने विभिन्न पहल की घोषणा की है, जिससे साफ संकेत मिलता है कि सरकार वृद्धि को समर्थन दे रह है। कंपनियों की कमाई में बढ़ोतरी भी पिछले वित्त वर्ष के अंतिम हिस्से से टिकाऊ तरीके से बहाल हो गई है।

ट्रिगर्सः यूएस फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में बढ़ोतरी की मात्रा और गति, अमेरिका के 10 साल के ट्रेजरी प्रतिफल का अनुमान और कोविड के नए वैरिएंट की गंभीरता और इसके असर प्रमुख ट्रिगर्स हैं, जिन पर नजर रखने की जरूरत है।

सेंटीमेट्सः पिछले 6 महीनों के दौरान निवेशक आक्रामक कीमत वाले आईपीओ सहित आईपीओ में निवेश कर रहे हैं, जो धारणा के दृष्टिकोण से चिंताजनक है।

बाजार का परिदृश्य

हमारे विचार से इक्विटी बाजारों का प्रदर्शन दीर्घावधि के हिसाब से बेहतर रह सकता है, लेकिन हमें मध्यावधि के हिसाब से सावधानी बरतने की जरूरत है। वैश्विक और घरेलू बाजारों के गतिशील वातावरण को देखते हुए हमारा मानना है कि मौजूदा परिदृश्य में सक्रिय निवेश प्रबंधन और मल्टी एसेट रणनीतियां बनाने का वक्त है। इससे निवेशकों को कम अवधि के हिसाब से बेहतर परिणाम मिल सकता है।

अगले साल के दौरान जिन क्षेत्रों में निवेशकों को नकारात्मक निवेश अनुभव हो सकता है, उसमें बगैर कमाई के आईपीओ का विकल्प, डेरिवेटिव्स सेग्मेंट के माध्यम से ज्यादा लिवरेज और सिर्फ इक्विटी में निवेश करके संपत्ति आवंटन की उपेक्षा करना (ऋण, सोना व नकदी की उपेक्षा करना) शामिल है। अगर आपका पोर्टफोलियो जोखिम वाली संपत्तियों से भरा है तो यह अच्छा समय है कि आप उस जोखिम को कम कर दें।

किसी एक संपत्ति वर्ग पर ध्यान केंद्रित करने की जगह ऐसी रणनीतियों को अपनाने की जरूरत है, जिससे एक निवेशक को विभिन्न संपत्ति वर्गों में धन लगाने का मौका मिले। अगर आप इक्विटी संबंधी निवेश पर विचार कर रहे हैं तो योजना श्रेणियों का विकल्प अपनाएं, जिसमें विभिन्न बाजार पूंजीकरण और अवधारणाओं में निवेश को लेकर लचीला विकल्प मिल सके।

क्षेत्रवार चयन के हिसाब से देखें तो हम घरेलू क्षेत्रों जैसे ऑटो, बैंक टेलीकॉम और कुछ रक्षात्मक क्षेत्रों जैसे फार्मा और हेल्थकेयर पर निर्भर होते हैं। हम गैर उपभोक्ता वस्तुओं को कम वजन देते हैं और यह मानकर चलते हैं कि महामारी के दौर के बाद जनसंख्या के निचले बाजार के लिए वैश्विक रणनीति तबके के पास नकदी का प्रवाह कम हुआ है और इसकी वजह से खपत के क्षेत्र में दबाव है।

एक निवेशक के लिए दीर्घावधिक के हिसाब से देखें तो हमारा मानना है कि जोखिम पर विचार करने के बाद और इसकी उपेक्षा न करके 2022 में सक्रिय प्रबंधन, दीर्घावधि छोटी रणनीतियों, मल्टी एसेट/एसेट अलोकेशन, लाभ देने वाली कंपनियों में निवेश और नकदी वाले सभी संपत्ति वर्गों में निवेश का वक्त है।

(लेखक आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के ईडी और सीआईओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)

वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए मौजूदा रणनीति बदलने की जरूरत

वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए मौजूदा रणनीति बदलने की जरूरत

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। दुनियाभर में कारोबार के बदलते तौर तरीकों को देखते हुए भारत को भी अपनी रणनीति में बदलाव लाना होगा। उद्योग संगठनों का मानना है कि विभिन्न देशों की तरफ से घरेलू उद्योगों के संरक्षण के लिए उठाए जा रहे कदमों के बाद वैश्विक कारोबार में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए ऐसा करना आवश्यक है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में परिस्थितियां निरंतर बदल रही हैं। निर्यातक संघों के फेडरेशन फियो का मानना है कि भविष्य में इस बाजार में अपनी हिस्सेदारी मजबूत करने की दिशा में कदम उठाने का यही सही वक्त है। अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी झगड़ा चरम पर है। अमेरिका लगातार अपने बाजार को अन्य देशों के उत्पादों के लिए सीमित बना रहा है। यह जरूरी है कि अमेरिकी बाजार में उन उत्पादों की संभावनाएं तलाशी जाएं, जिनके दरवाजे भारत के लिए तो खुले हैं, लेकिन अन्य देशों के लिए बंद हो रहे हैं।

फियो के महानिदेशक डॉ. अजय सहाय ने बाजार के लिए वैश्विक रणनीति दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि अमेरिका समेत यूरोप के कई देशों में भारतीय रेडिमेड गारमेंट उत्पादों के सामने बांग्लादेश चुनौती पैदा कर रहा है। उसे अमेरिका से मिल रहा टैरिफ एडवांटेज 2022 में समाप्त हो जाएगा। बांग्लादेश ने उस स्थिति का सामना करने के लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी है और गारमेंट उद्योग को आयकर में कई रियायतें देना शुरू कर दिया है। इन स्थितियों में वह 2022 के बाद भी भारतीय गारमेंट उत्पादों को प्रतिस्पर्धा से बाहर करने की स्थिति में होगा। परिधानों के मामले में भारत को तुर्की जैसे देशों से भी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। डॉ. सहाय का कहना है कि सरकार को इन स्थितियों के देख समझ कर रणनीति बनानी चाहिए।

अमेरिका की आयात शुल्क रणनीति का जवाब देने के लिए चीन ने भी अपनी तैयारी कर ली है। बताया जाता है कि चीन ने अपने मेटल निवेश को कंबोडिया जैसे देशों में स्थानांतरित करना शुरू कर दिया है। इन देशों में अब भी उसे आयात शुल्क में रियायत उपलब्ध है। डॉ. सहाय के मुताबिक सीरिया के पुनर्निर्माण में चीन बेहद रुचि ले रहा है। सीरिया के पुनर्निर्माण पर करीब 400 अरब डॉलर का खर्च आने का अनुमान है।

व्यापार में वैश्विक रणनीति क्या होनी चाहिए?

Key Points

  • गद्द्यांश से, 'प्रत्येक देश में उत्पाद को लगभग उसी तरह से विपणन करना संभव है जिसे वैश्विक रणनीति के रूप में जाना जाता है, या प्रत्येक बाजार के लिए विपणन को समायोजित करना होगा? यदि कोई व्यवसाय वैश्विक रणनीति का अनुसरण करता है, तो इसका अर्थ है कि वह अनिवार्य रूप से उसी विपणन मिश्रण को अपना रहा है, जहां वह प्रतिस्पर्धा करता है 'यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि वैश्विक रणनीति हर देश में उसी तरह से एक ही उत्पाद का विपणन कर रही है।
  • विकल्प 1 संदर्भ से बाहर है, जो गद्द्यांश में उल्लिखित नहीं है।
  • विकल्प 3, विदेशी बाजार में प्रवेश करने का निर्णय कोई रणनीति नहीं है।
  • विकल्प 4 केवल स्थानीय बाजार दृष्टिकोण को इंगित करता है।

Share on Whatsapp

Last updated on Nov 16, 2022

SSC CPO Tentative Answer Key for the SSC CPO Exam held from 9th to 11th November 2022 has been released. Candidates can raise objections against the answer key from 16th to 20th November 2022 against a fee of INR. 100 per question. SSC CPO Admit Card Link for CR, NER, MPR Region & Application Status for CR, WR, NR, NER, ER, MPR, KKR, SR Regions active! The Staff Selection Commission had released the exam date for Paper I of the SSC CPO 2022. As per the notice, Paper I of the SSC CPO is scheduled to be held from 9th November to 11th November 2022. The candidates can check out the SSC CPO Exam Analysis to check the difficulty level and good attempts for each shift exam.

2030 Strategy

यह बेहतर के लिए बदलाव के लिए बेटर कॉटन का एजेंडा है। 2030 की रणनीति कपास का उत्पादन करने वाले किसानों और इस क्षेत्र के भविष्य में हिस्सेदारी रखने वाले सभी लोगों के लिए कपास बाजार के लिए वैश्विक रणनीति को बेहतर बनाने की हमारी दस वर्षीय योजना की दिशा निर्धारित करती है।

आज दुनिया के लगभग एक चौथाई कपास का उत्पादन बेटर कॉटन स्टैंडर्ड के तहत किया जाता है, और 2.4 लाख कपास किसानों को स्थायी कृषि पद्धतियों में प्रशिक्षित किया गया है और उन्हें बेहतर कपास उगाने के लिए लाइसेंस दिया गया है। एक स्थायी दुनिया की हमारी दृष्टि, जहां कपास किसानों और श्रमिकों को पता है कि कैसे सामना करना है - जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण के लिए खतरों और यहां तक ​​​​कि वैश्विक महामारियों से भी - पहुंच के भीतर है। कपास की खेती करने वाले समुदायों की एक नई पीढ़ी एक सभ्य जीवन जीने में सक्षम होगी, आपूर्ति श्रृंखला में एक मजबूत आवाज होगी और अधिक टिकाऊ कपास की बढ़ती उपभोक्ता मांग को पूरा करेगी। दिसंबर 2021 में, हमने अपनी महत्वाकांक्षी 2030 रणनीति को पांच प्रभाव लक्ष्यों में से पहले के साथ लॉन्च किया।

जे लौवियन द्वारा बेटर कॉटन के सीईओ, एलन मैक्ले।

हमारी 2030 रणनीति के साथ-साथ, हमें अपना पहला जलवायु परिवर्तन शमन लक्ष्य लॉन्च करते हुए गर्व हो रहा है। 2030 तक, हमारा लक्ष्य प्रति टन बेहतर कपास के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 50% तक कम करना है।

एलन मैकक्ले, सीईओ, बेटर कॉटन
रेटिंग: 4.60
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 818
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *