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विदेशी मुद्रा प्रणाली ट्रेडिंग

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विदेशी मुद्रा प्रणाली ट्रेडिंग

यह एडिटोरियल 17/03/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Why ‘De-Dollarisation’ is Imminent” लेख पर आधारित है। इसमें वैश्विक वाणिज्य में अमेरिकी डॉलर (USD) के वर्चस्व को कम करने के लिये विभिन्न देशों द्वारा किये जा रहे प्रयासों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा व्यापार का शस्त्रीकरण, प्रतिबंधों को लागू करना और ‘SWIFT’ (Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication) से बहिर्वेशन डी-डॉलराइज़ेशन (De-Dollarisation: वैश्विक बाज़ार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व में कमी लाना) की प्रक्रिया को तेज़ कर सकता है, क्योंकि राजनयिक एवं आर्थिक स्वायत्तता प्रदर्शित कर रहे देश अमेरिकी प्रभुत्व वाली वैश्विक बैंकिंग प्रणालियों का उपयोग करने के प्रति सचेत रहेंगे।

अमेरिकी डॉलर, जो विश्व की आरक्षित मुद्रा है, वर्तमान संदर्भ में लगातार गिरावट का शिकार हो सकती है क्योंकि विश्व के प्रमुख केंद्रीय बैंक अपने भंडार को डॉलर से दूर यूरो, रॅन्मिन्बी (Renminbi) या स्वर्ण जैसी अन्य परिसंपत्तियों या मुद्राओं के रूप में विविधिकृत करने की राह पर आगे बढ़ सकते हैं।

डी-डॉलराइज़ेशन की धारणा एक बहुध्रुवीय विश्व के विचार से सुसंगत है, जहाँ प्रत्येक देश मौद्रिक नीति के क्षेत्र में आर्थिक स्वायत्तता का उपभोग करना चाहेगा।

डी-डॉलराइज़ेशन: क्या और क्यों?

  • ‘डी-डॉलराइज़ेशन’ का तात्पर्य वैश्विक बाज़ारों में डॉलर के प्रभुत्व को कम करना है। इसका आशय निम्नलिखित उपयोगों के मामले में अमेरिकी डॉलर को किसी अन्य मुद्रा के साथ प्रतिस्थापित करना है:
    • तेल और/या अन्य वस्तुओं का व्यापार के लिये अमेरिकी डॉलर की खरीद
    • द्विपक्षीय व्यापार समझौते
    • डॉलर-डिनॉमिनेटेड परिसंपत्तियाँ
    • डी-डॉलराइज़ेशन विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों को भू-राजनीतिक जोखिमों से बचाने की इच्छा से प्रेरित है, जहाँ एक आरक्षित मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर की स्थिति को आक्रामक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

    डॉलर के वर्चस्व के कारण

    • अमेरिकी विदेशी मुद्रा प्रणाली ट्रेडिंग डॉलर ने 1970 के दशक के आरंभ में सऊदी अरब के तेल-समृद्ध साम्राज्य के साथ डॉलर में वैश्विक ऊर्जा व्यापार करने हेतु एक समझौते के साथ अपनी यह प्रभुत्वशाली स्थिति प्राप्त की है।
        (Bretton विदेशी मुद्रा प्रणाली ट्रेडिंग Woods system) के पतन से डॉलर की स्थिति और मज़बूत हुई, जहाँ इसने अनिवार्य रूप से अन्य विकसित बाज़ार मुद्राओं की अमेरिकी डॉलर से मुकाबला कर सकने की क्षमता को समाप्त कर दिया।
      • अमेरिकी डॉलर को एक ‘सेफ-हेवेन’ (Safe-Haven) के रूप में देखने का मनोवैज्ञानिक कारण यह है कि लोग अभी भी इसे अपेक्षाकृत जोखिम-मुक्त आस्ति के रूप में देखते हैं।
      • इसके अतिरिक्त, विरोधी केंद्रीय बैंकों द्वारा डॉलर परिसंपत्तियों की अचानक डंपिंग उनके लिये बैलेंस शीट जोखिम भी पैदा करेगी, क्योंकि इससे उनके समग्र डॉलर-डिनॉमिनेटेड होल्डिंग्स का मूल्य कम हो जाएगा।
      • उदाहरण के लिये, ऐतिहासिक रूप से ‘तटस्थ’ देश रहे स्विट्ज़रलैंड द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाने के मामले में यूरोपीय संघ का साथ देना ‘स्विस फ़्रैंक’ की ऐसी परिसंपत्ति होने की स्थिति को समाप्त कर देता है जो आर्थिक प्रतिबंधों के विरुद्ध बचाव के रूप में काम आ सकती है।

      डी-डॉलराइज़ेशन के लिये किये जा रहे प्रयास

      • अमेरिका के प्रमुख भू-राजनीतिक विरोधियों रूस और चीन ने पहले ही डी-डॉलराइज़ेशन की यह प्रक्रिया शुरू कर दी है।
        • अमेरिकी ‘SWIFT’ को ‘बायपास’ करते हुए रूसी ‘ SPFS’ (System for Transfer of Financial Messages) एवं चीनी ‘CIPS’ (Cross-Border Interbank Payment System) को संयुक्त कर एक नई रूस-चीन भुगतान प्रणाली की संभावित शुरुआत हेतु प्रयास चल रहे हैं। और अनुवर्ती आर्थिक प्रतिबंध केंद्रीय बैंकों को डॉलर पर अपनी निर्भरता का पुनर्मूल्यांकन करने हेतु नए सिरे से विचार करने के लिये प्रेरित करेंगे।
        • रूस ने वर्ष 2021 में डॉलर- डिनॉमिनेटेड परिसंपत्तियों में अपनी हिस्सेदारी घटाकर लगभग 16% कर ली थी।
        • रूस ने द्विपक्षीय व्यापार में राष्ट्रीय मुद्राओं को प्राथमिकता देकर अमेरिकी डॉलर में किये जाते व्यापार में भी अपनी हिस्सेदारी कम कर ली है। (BRICS) को रूस के निर्यात में अमेरिकी डॉलर का उपयोग वर्ष 2013 में लगभग 95% से घटकर वर्ष 2020 में 10% से भी कम रह गया।
        • वर्ष 2021 में पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने अपनी डिजिटल मुद्रा ई-युआन (e-Yuan) के माध्यम से वैश्विक वित्तीय नियमों को प्रभावित करने के लिये ‘बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स’ (Bank for International Settlements) के समक्ष ‘ग्लोबल सॉवरेन डिजिटल करेंसी गवर्नेंस’ (Global Sovereign Digital Currency Governance) का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। (International Monetary Fund- IMF) ने पहले ही वर्ष 2016 में युआन को अपने विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights- SDR) बास्केट में शामिल कर लिया है।
        • हालाँकि पूर्ण RMB परिवर्तनीयता की कमी चीन की डी-डॉलराइज़ेशन महत्त्वाकांक्षा को अवरुद्ध करेगी।

        इस संबंध में भारत की स्थिति

        • भारत को भी अतीत में कुछ प्रतिबंधित देशों के साथ वस्तु विनिमय व्यवस्था (Barter Arrangement) सहित विभिन्न वैकल्पिक उपायों की तलाश करनी पड़ी है।
          • वर्तमान में भी कथित रूप से भारत और रूस दोनों देशों के बीच तेल व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये संदर्भ मुद्रा के रूप में चीनी युआन के उपयोग पर विचार कर रहे हैं।
            (Non-convertible currency) अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भागीदारी के लिये कठिनाइयाँ पैदा करती है, क्योंकि लेनदेन संपन्न होने में अधिक समय लगता है।
          • गैर-परिवर्तनीयता पूंजी तक असहज पहुँच, वित्तीय बाज़ार में कम तरलता और कम व्यावसायिक अवसरों जैसी स्थिति उत्पन्न करती है।
          • इसके साथ ही भारत अपने विदेशी मुद्रा भंडार में यूरो और स्वर्ण की हिस्सेदारी की वृद्धि करने भी विचार कर सकता है।
          • भारत के पास अपनी डी-डॉलराइज़ेशन प्रक्रिया शुरू करने के लिये कई विकल्प मौजूद हैं। रूस-भारत लेनदेन से शुरू होकर ईरान, EAEU, विदेशी मुद्रा प्रणाली ट्रेडिंग ब्रिक्स और SCO सदस्य देशों के साथ राष्ट्रीय या डिजिटल मुद्राओं में व्यापार निकट भविष्य में एक वास्तविकता बन सकता है।
          • ‘इकोनॉमिक पावरहाउस’ के रूप में एशिया के उदय से चीनी युआन और भारतीय रुपए विदेशी मुद्रा प्रणाली ट्रेडिंग जैसी मुद्राओं का महत्त्व बढ़ जाएगा।
          • विदेश नीति लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये संभावित हथियार के रूप में अमेरिकी डॉलर के लगातार उपयोग से निस्संदेह डी-डॉलराइज़ेशन की प्रक्रिया में तेज़ी आएगी।
          • इसके अलावा, मुद्रा परिवर्तनीयता वैश्विक वाणिज्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग है क्योंकि यह अन्य देशों के साथ व्यापार का मार्ग खोलता है और सरकार को वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये ऐसी मुद्रा में भुगतान करने की अनुमति देता है जो विदेशी मुद्रा प्रणाली ट्रेडिंग खरीदार की अपनी मुद्रा नहीं भी हो सकती है।

          निष्कर्ष

          • अमेरिकी डॉलर अभी भी व्यापार के लिये पसंदीदा मुद्रा है, क्योंकि कोई भी अन्य मुद्रा पर्याप्त रूप से तरल नहीं है। यदि कोई मुद्रा ऐसी विदेशी मुद्रा प्रणाली ट्रेडिंग तरलता पा भी लेती है तो राष्ट्रों में यह आशंका व्याप्त रहेगी कि यह मुद्रा भी अमेरिकी डॉलर जैसी ही बन जाएगी।
          • विश्व केवल व्यवस्था में परिवर्तन नहीं चाहता जहाँ अमेरिका के बजाय अब किसी दूसरे देश के वैसे ही छल-कपट भोगने पड़ें। आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह है कि मुद्रा बाज़ार में विविधता लाई जाए जहाँ कोई एक मुद्रा आधिपत्य का दावा न करे।

          अभ्यास प्रश्न: ‘‘संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपने विदेश नीति लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये संभावित हथियार के रूप में अमेरिकी डॉलर के लगातार उपयोग से निस्संदेह डी-डॉलराइज़ेशन की प्रक्रिया में तेज़ी आएगी।’’ टिप्पणी कीजिये।

          आईसीईएस (ICES) के बारे में

          आईसीईएस क्या है?
          भारतीय सीमा शुल्क ईडीआई प्रणाली (आईसीईएस) अब 256 बड़े सीमा शुल्क स्थानों पर परिचालित है जो आयात और निर्यात खेप के मामले में भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का लगभग 98% संभालती है। आईसीईएस के दो पहलू हैं:

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          - टेमा संकेतक।

          औसत सच सीमा (एटीआर) संकेतक अस्थिरता का एक उपाय है।

          एसएमए संकेतक - एक अंकगणितीय चलती औसत है जो कई समयावधि के लिए सुरक्षा के समापन मूल्य को जोड़कर गणना की जाती है और फिर इस कुल को समय अवधि की संख्या से विभाजित किया जाता है।

          ईएमए सूचक - एक घातीय मूविंग एवरेज (ईएमए) एक प्रकार का मूविंग एवरेज है जो एक साधारण मूविंग एवरेज के समान है, सिवाय इसके कि नवीनतम डेटा को अधिक वजन दिया जाता है। इसे घातीय रूप से भारित चलती औसत के रूप में भी जाना जाता है। इस प्रकार की चलती औसत एक साधारण चलती औसत की तुलना में हाल के मूल्य परिवर्तनों के लिए तेजी से प्रतिक्रिया करती है।

          डब्ल्यूएमए सूचक - पुरानी कीमतों की तुलना में हाल की कीमतों पर अधिक जोर देता है। प्रत्येक अवधि के डेटा को एक वजन से गुणा किया जाता है, जिसमें चयनित अवधि की संख्या द्वारा निर्धारित भार होता है।

          तेमा संकेतक - मूल्य और अन्य डेटा को चौरसाई के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला तकनीकी सूचक। यह एक एकल घातीय चलती औसत, एक डबल घातीय चलती औसत और एक तिगुनी घातीय चलती औसत का समग्र है।

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