अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अंग्रेजी में
विश्व बैंक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और तथा अन्य आधिकारिक आंकडों पर निर्भर रहते हुए स्टोटस्की ने 1999 से दो आंकडों की तुलना की है .
Relying on World Bank , International Monetary Fund , and other official statistics , Stotsky compares two figures since 1999 :
international monetary fund
विश्व बैंक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और तथा अन्य आधिकारिक आंकडों पर निर्भर रहते हुए स्टोटस्की ने 1999 से दो आंकडों की तुलना की है .
Relying on World Bank , International Monetary Fund , and other official statistics , Stotsky compares two figures since 1999 :
उदाहरण
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाओं में तत्काल सुधार की आवश्यकता है।
जनवरी, 2009 में जारी वैश्विक आर्थिक पूर्वानुमान में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पूर्वानुमान लगाया है कि मौजूदा वर्ष
The International Monetary Fund has, in its January, 2009 global economic forecast, predicted that the world economy would stall in the current year.
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सही उत्तर है यह केवल सदस्य देशों को ऋण देता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ): आईएमएफ का गठन 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में शुरू किया गया था। आईएमएफ 27 दिसंबर 1945 को परिचालन में आया और आज एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसमें 189 सदस्य देश शामिल हैं।
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अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (अंग्रेजी: International Monetary Fund ; इण्टरनेशनल मॉनिटरी फ़ण्ड , लघुरूप: IMF; आईएमएफ़ ) एक अन्तरराष्ट्रीय संस्था है, जो अपने सदस्य राष्ट्रों की वैश्विक आर्थिक स्थिति पर दृष्टि रखने का कार्य करती है। यह अपने सदस्य देशों को आर्थिक और तकनीकी सहायता प्रदान करती है। यह संगठन अन्तरराष्ट्रीय विनिमय दरों को स्थिर रखने के साथ-साथ विकास को सुगम करने में सहायता करती है।[2] इसका मुख्यालय वॉशिंगटन डी॰ सी॰, संयुक्त राज्य में है। इस संगठन के प्रबन्ध निदेशक डॉमनिक स्ट्रॉस है।
Ramesh Gupta
यह अपने सदस्य देशों को आर्थिक और तकनीकी सहायता प्रदान करती है। यह संगठन अन्तरराष्ट्रीय विनिमय दरों को स्थिर रखने के साथ-साथ विकास को सुगम करने में सहायता करती है। इसका मुख्यालय वॉशिंगटन डी॰ सी॰, संयुक्त राज्य में है।
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आईएमएफ श्रीलंका और भारत
भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका की आर्थिक स्थिति किसी से छुपी नहीं है। ऋण लेकर घी पीने और सत्ता की लोक लुभावन नीतियां उसे काफी महंगी पड़ी हैं। उसका विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो चुका है। जब विद्रोह के बाद वहां एक तरह से अस्थायी सरकार सत्ता में है और वहां की सरकार स्थिति को सम्भालने के लिए जगह-जगह गुहार लगा रही है। इस संकट की स्थिति में जूझ रहे श्रीलंका को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष 2.9 अरब डालर का ऋण देने पर सहमत हुआ है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और श्रीलंका के अधिशासी संकट ग्रस्त देश की आर्थिक नीतियों को समर्थन देने की खातिर कर्मचारी स्तर के समझौते पर सहमत हुए हैं। इस मदद का उद्देश्य श्रीलंका में व्यापक आर्थिक स्थिरता और ऋण वहनियता को बहाल करना है और इसके साथ-साथ वित्तीय स्थिरता की रक्षा करना भी है। आर्थिक मदद देने से पहले अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने श्रीलंका को कई सुधारात्मक कदम उठाने को कहा है।
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने श्रीलंका में वित्तीय खाई को पाटने में मदद देने के लिए बहुपक्षीय साझेदारों से अतिरिक्त आर्थिक मदद करने की भी अपील की है। सोने की श्रीलंका कही जाने वाली कंगाली के कगार पर कैसे पहुंची यह न केवल भारत के लिए बल्कि अन्य अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष देशों के लिए भी सबक है। हालात इतने खतरनाक रूप ले चुके थे कि सत्ता में बैठे लोग देश छोड़ कर भाग निकले। इसमें कोई संदेह नहीं कि श्रीलंका की स्थिति के लिए सत्ता में बैठे राजपक्षे परिवार का आर्थिक कुप्रबंधन जिम्मेदार रहा। 2009 में अपने गृहयुद्ध के अंत में श्रीलंका ने विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने की कोशिश करने की बजाय अपने घरेलू बाजार में समान उपलब्ध कराने पर ध्यान केन्द्रित करने को चुना। इसका नतीजा यह हुआ कि अन्य देशों में निर्यात से इसकी आय कम रही जबकि आयात बिल बढ़ता गया। गलत कृषि नीतियों के चलते भी उसे बहुत नुक्सान हुआ। कोरोना महामारी के दौरान उसका पर्यटन उद्योग ठप्प होकर रह गया।
श्रीलंका का पर्यटन क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जो लोगों को रोजगार अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष देने के अलावा विदेशी मुद्रा भी अर्जित करता है। श्रीलंका के पर्यटन क्षेत्र के ठप्प होने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से उसका विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होता गया। कोरोना महामारी की मार के बाद रही सही कसर रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी कर दी। श्रीलंका पर विदेशी ऋणदाताओं का 51 बिलियन डालर से अधिक बकाया है। जिसमें चीन के 6.5 बिलियन डालर भी शामिल हैं। चीन ने श्रीलंका को अपने कर्ज जाल में फंसा रखा है। चीन ने भी अपने ऋण का तकाजा करना शुरू कर दिया। जी-7 देशों के समूह कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका ऋण चुकौती को कम करने की श्रीलंका की कोिशशों का समर्थन कर रहा है। जहां तक भारत का सवाल है, भारत ने आर्थिक संकट के दौरान श्रीलंका की हर तरह से मदद की। भारत ने श्रीलंका की मदद के लिए हाथ बढ़ाया। भारत ने मानवता के आधार पर अफगानिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, म्यांमार और भूटान को भी मदद दी है। भारत ने श्रीलंका को अब अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तक 5 अरब डालर की समग्र सहायता प्रदान की है। भारत ने उसे ईंधन आयात करने के लिए 50 करोड़ डालर की सहायता प्रदान की है। इसके अलावा भारत से भोजन और दूसरी चीजों की खरीद के लिए एक अरब डालर की सहायता प्रदान की है। लगभग 6 करोड़ रुपए मूल्य की जरूरी दवाएं, मिट्टी का तेल और यूरिया उर्वरक की खरीद के लिए 5.5 करोड़ डालर की सहायता प्रदान की है। तमिलनाडु सरकार ने भी 1.6 करोड़ डालर मूल्य का चावल, दूध पाउडर और दवाओं का योगदान दिया है। भारत में श्रीलंका के उच्चायुक्त मीलिंदा मोरागोटा ने भारत द्वारा श्रीलंका की सहायता के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा है कि यद्यपि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा दी गई सहायता से उनके देश का आत्मविश्वास बढ़ा है, लेकिन श्रीलंका भारत का इस बात के लिए बहुत आभारी है जिसने श्रीलंका को अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष मुद्राकोष के पास जाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की भूमिका की भी सराहना की। उन्होंने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करने और देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आईएमएफ श्रीलंका और भारत काफी सहयोग दिया।सबसे अहम सवाल यह है कि श्रीलंका की भारत की अपील पर दक्षेस देश भी सहायता करने में आगे आएंगे, लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि आखिर श्रीलंका की स्थिति अंततः सुधरेगी कैसे। इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन जिस भी देश को कर्ज देता है, अंततः उसका इरादा जमीन कब्जाने का ही होता है। श्रीलंका में भी चीन ने ऐसा ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष किया है। पहली बात तो यह है कि जब तक श्रीलंका में राजनीतिक स्थिरता नहीं आती तब तक देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आएगी। दूसरा श्रीलंका को ऐसी नीतियां अपनाने की जरूरत है जिससे वह अपने संसाधनों का सही उपयोग कर खुद अपना उत्पादन बढ़ा सकें। लोक लुभावन नीतियों और मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली योजनाओं से लाभ नहीं होने वाला। उसे अपने भीतर से सामर्थ्य पैदा करना होगा। भारत तो हमेशा मुश्किल की घड़ी में उसके साथ खड़ा है। लेकिन उसे कर्जजाल से मुक्ति के लिए भी ठोस उपाय करने होंगे।
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अफगानिस्तान को दी जाने वाली राशि पर रोक लगा दी
अफगानिस्तान में बढ़ती राजनीतिक अनिश्चितता के बीच अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने उसे दी जाने वाले राशि पर रोक लगा दी है। कोष ने हाल में सदस्य देशों के लिए 6 खरब 50 अरब डॉलर के विशेष आहरण अधिकार की घोषणा की थी लेकिन अभी अफगानिस्तान को यह राशि नहीं मिलेगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रवक्ता गेरी राइस ने बृहस्पतिवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अफगानिस्तान में सरकार की अनिश्चितता के कारण उसे यह अनुदान नहीं मिलेगा। इसीलिए वहां अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की परियोजनाओं को रोक दिया गया है। गेरी राइस ने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अफगानिस्तान में कठिन आर्थिक और मानवीय स्थिति को लेकर भी काफी चिंतित है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने अफगानिस्तान को ऋण देने पर भी रोक लगा दी है। उनके अलावा वित्तीय कार्रवाई कार्य बल ने भी अपने 39 सदस्य देशों से तालिबान की परिसंपत्तियों पर रोक लगाने को कहा है।