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इन्वेस्टिंग

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इस लेनदेन में मॉर्गन स्टैनली रियल एस्टेट इन्वेस्टिंग की इकाई व केएसएच इन्फ्रा के अन्य शेयरधारकों की वित्तीय सलाहकार एवेंडस कैपिटल थी। इन्वेस्टिंग ई-कॉमर्स आदि की बढ़त को देखते हुए कई वैश्विक फर्म वेयरहाउसिंग के क्षेत्र में बड़ा दांव लगा रही है।

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पिछली सीरीज से 34 शेयर फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस सेग्मेंट से बाहर हो गए हैं। इनमें कई शेयर ऐसे भी थे, जिनके बाहर होने पर आश्चर्य जताया गया। CNBC-आवाज़ आज उन 34 शेयरों को एक बार फिर रीविजिट कर रहा है। यहां जानेंगे कि इनमें से किन शेयरों में निवेश किया जा सकता है। किन शेयरों से दूर रहने में ही समझदारी है। आपको यह भी जानकारी दी जायेगी कि अगर इनमें से किसी शेयर में आपकी पोजिशन हैं तो अब क्या करना चाहिए। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए CNBC-आवाज़ के साथ टार्गेट इन्वेस्टिंग के फाउंडर समीर इन्वेस्टिंग कालरा और SMC ग्लोबल के सीनियर टेक्निकल एनालिस्ट मुदित गोयल जुड़ गये हैं।

पिछली सीरीज में F&O से 34 शेयर बाहर हुए हैं। सिर्फ 5 शेयरों ने पॉजिटिव रिटर्न दिया। फ्यूचर ब्राइट में 28 जून से Can Fin Homes ने 10 प्रतिशत, IDFC ने 2.7 प्रतिशत, South Indian Bank ने 2.3 प्रतिशत, BEML ने 1 प्रतिशत और इन्वेस्टिंग Tata Comm ने 0.8 प्रतिशत रिटर्न दिया है।

मैपलट्री लॉजिस्टिक्स ट्रस्ट ने खरीदी लॉजिस्टिक्स फर्म

सिंगापुर मेंं सूचीबद्ध मैपलट्री लॉजिस्टिक्स ट्रस्ट (एमएलटी) ने मॉर्गन स्टैनली रियल एस्टेट इन्वेस्टिंग की इकाई से लॉजिस्टिक्स फर्म केएसएच इन्फ्रा की इन्वेस्टिंग खरीद 455 करोड़ रुपये मेंं की है। केएसएच इन्फ्रा के पास पुणे में वेयरहाउसिंग परिसंपत्तियों का स्वामित्व है।

इस लेनदेन से मैपलट्री लॉजिस्टिक्स ट्रस्ट ने भारत के लॉजिस्टिक्स बाजार में प्रवेश कर लिया है। पुणे में दो वेयरहाउसिंग व इंडस्ट्रियल लॉजिस्टिक्स पाक्र्स का कुल क्षेत्रफल करीब 10 लाख वर्गफुट है और उसे ब्लूचिप मल्टीनैशनल को पट्टे पर दिया गया है।

मॉर्गन स्टैनली रियल एस्टेट इनवेस्टिंग ने साल 2019 में केएसएच इन्फ्रा की बहुलांश हिस्सेदारी करीब 350 करोड़ रुपये में खरीदी थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल सिंगापुर की रियल एस्टेट ऐसेट मैनेजर मैपलट्री इन्वेस्टमेंट्स ने चाकण में 12 लाख वर्गफुट वेयरहाउस का एक हिस्सा 5 करोड़ डॉलर में खरीदा।

SMART INVESTING : क्या है निवेश का स्मार्ट इन्वेस्टिंग तरीका, कैसे मिल सकता है आपको बेहतर रिटर्न

SMART INVESTING : क्या है निवेश का स्मार्ट तरीका, कैसे मिल सकता है आपको बेहतर रिटर्न

स्मार्ट इनवेस्टर जानते हैं कि बाजार को लेकर किसी भी तरह की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती.

SMART INVESTING : बाजार में निवेश करते समय निवेशकों की सबसे बड़ी चिंता ज्यादा रिटर्न का पीछा करने में शामिल जोखिमों को लेकर होती है. स्मार्ट इनवेस्टर अच्छी तरह जानते हैं कि बाजार को लेकर किसी भी तरह की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. छोटी अवधि में किसी भी निवेश पर फायदा या नुकसान हो सकता है लेकिन ज्यादा रिटर्न की चाहने वाले निवेशक लंबी अवधि तक निवेश करना पसंद करते हैं. अक्सर बाजार में टाइम इन द मार्केट (Time in the market) और टाइमिंग द मार्केट (Timing the market) को लेकर बहस होती रहती है. कई निवेशक निवेश करते समय किसी स्टॉक के भविष्य के बाजार मूल्य का अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं. इसमें जोखिम काफी ज्यादा होता है. निवेश की इस रणनीति को ही टाइमिंग द मार्केट कहते हैं. इसके उलट, कई निवेशक लंबी अवधि के लिए निवेश करते हैं. ऐसे निवेशक यह अनुमान लगाने की कोशिश किए बिना स्टॉक खरीदते हैं कि बाजार में कब तेजी या मंदी होगी. निवेश की इस रणनीति को टाइम इन द मार्केट कहा जाता है. अब सवाल यह है कि दोनों में बेहतर रणनीति क्या है.

टाइमिंग द मार्केट

टाइमिंग द मार्केट का मतलब यह है कि एक निवेशक स्टॉक के भविष्य के शेयर की कीमत का अनुमान लगाने की इन्वेस्टिंग कोशिश कर रहा है. हालांकि यह तरीका सोचने में अच्छा लगता है कि कम कीमत पर खरीदो और कीमत ज्यादा होने पर बेच दो. लेकिन इस तरीके में जोखिम काफी ज्यादा होता है. हो सकता है कि किसी दिन आपकी ‘किस्मत’ अच्छी हो और आपको इस रणनीति से ज्यादा रिटर्न मिल जाए, पर इस रणनीति की सबसे बड़ी कमजोरी ‘किस्मत’ ही है. किसी दिन ऐसा भी हो सकता है कि आपकी किस्मत अच्छी ना हो ओर आपको काफी ज्यादा नुकसान हो जाए. स्टॉक मार्केट में भविष्य के बारे में किसी भी तरह का अनुमान नहीं लगाया जा सकता. स्टॉक की कीमतें तेजी के साथ बदलती हैं, इसका मतलब यह है कि आपका अनुमान हमेशा सटीक नहीं इन्वेस्टिंग इन्वेस्टिंग हो सकता. अगर आपको कोई भी वित्तीय सलाहकार इस रणनीति के इन्वेस्टिंग साथ निवेश की सलाह देता है तो आपको सचेत हो जाना चाहिए. टाइमिंग द मार्केट में कई बार आपको बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है. अगर आप ब्रोकर की मदद ले रहे हैं तो इन्वेस्टिंग बार-बार ट्रेडिंग करने से ब्रोकरेज कमीशन की लागत बढ़ जाती है. जितना अधिक स्टॉक खरीदा और बेचा जाता है, उतना ही ज्यादा कमीशन ब्रोकर कमाता है. इसमें सबसे बुरी बात यह है कि इस कमीशन का भुगतान निवेशक को ही करना होता है, भले ही उसे बाजार में नुकसान उठाना पड़ रहा हो.

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Coffee Can Investing Kya Hota Hai | Hindi me

आज हम Coffee Can Investing के बारे में बात करेंगे। कॉफ़ी कैन के बारे में सुनकर लगता है कि कॉफ़ी कैन का इन्वेस्टिंग से क्या लेना-देना है। बहुत सालों पहले यूएसए में जब शेयर्स फिजिकल फॉर्मेट में ख़रीदे-बेचे जाते थे तब बहुत सारे लोग शेयर्स खरीद लेते थे इन्वेस्टिंग और उसे कॉफ़ी कैन में छुपा कर रख देते थे। कई बारे तो वे लोग यह भी भूल जाते थे कि उन्होंने कोई शेयर भी ख़रीदा है और पाँच-दस सालों के बाद जब उन्हें वो शेयर्स मिल जाता था तब उन्हें बेचने पर ज्यादातर समय अच्छा प्रॉफिट होता था। साथ ही उन्हें यह भी पता चलता था कि अगर उन्हें इन शेयर्स के बारे में पहले याद आता तो वे उन्हें पहले ही बेच देते तथा उनसे प्रॉफिट का बड़ा हिस्सा छूट जाता। लेकिन शेयर्स खरीदकर भूल जाने की वजह से वो इन्हें लॉन्ग टर्म के लिए होल्ड कर जाते थे। इस बात का अवलोकन करते हुए पोर्टफोलियो मैनेजर रोबर्ट कर्बी ने इसे Coffee Can Investing नाम का टर्म निकल दिया जिसका मतलब होता है- खरीदो और भूल जाओ।

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