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परिभाषा मुद्रा बाजार

परिभाषा मुद्रा बाजार
आज के इस अंक में आप लोगों को क्लास ट्वेल्थ के व्यवसायिक अध्ययन विषय के वित्तीय बाजार के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर देने जा रहे हैं ,जो आपके लिए बहुत ही उपयोगी होगा।

मुद्रा बाजार क्या है

मुद्रा बाजार वित्तीय बाजार का एक हिस्सा है यह छोटी अवधि के ऋण और नकदी की उधार होता है, जहां एक बाजार है। पैसे में अत्यधिक तरल और भी अल्पकालिक तरलता का आनंद उन है कि कारोबार कर रहे हैं कि वित्तीय साधनों बाजार।

यह बड़ा आकार संस्थानों और यहां तक ​​कि सरकारी निकायों को अपने अल्पकालिक वित्तीय आवश्यकताओं के साथ सौदा जहां जगह होना होता है। लघु अवधि के ऋण देने के लिए सिर्फ एक वर्ष के तहत कई दिनों के लिए पिछले है कि उन लोगों के हैं। मुद्रा बाजार के कारण भी उनके छोटे परिपक्वताओं ‘चलाने के लिए नकद निवेश बाजार के रूप में जाना जाता है।

मुद्रा बाजार ( Money Market ) किसे कहा जाता है ?

मुद्रा बाजार अल्पकालीन मौद्रिक सम्पत्तियों के क्रय-विक्रय का केन्द्र माना जाता है । ये मौद्रिक सम्पत्तियाँ एक वर्ष या इससे कम समय में परिपक्व होती हैं । मुद्रा बाजार एक गतिशील बाजार है जिसमें अल्पकालीन प्रतिभूतियों का लेन-देन किया जाता है । अपनी अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताओं के लिए व्यक्ति, फर्म, कम्पनी, निगम, सरकार, संस्थाएँ, कृषक सभी मुद्रा बाजार पर निर्भर होते हैं । मुद्रा बाजार की परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं -

[ 1 ] प्रो. क्राउचर ( Crowther ) के अनुसार, "मुद्रा बाजार एक सामुहिक नाम है जिसे विभिन्न फर्मों एवं संस्थाओं के लिए जो कि विभिन्न श्रेणियों की मुद्रा में व्यवहार करती हैं, प्रयोग किया जाता है ।"

[ 2 ] शेयर्स ( Sayers ) के अनुसार, "मुद्रा बाजार वह बाजार है जिसमें अल्पकालीन एवं प्रतिदिन के ऋणों का लेन-देन होता हैं ।

[ 3 ] सिपमैन ( Shipman ) के अनुसार, "मुद्रा बाजार वह केन्द्र है जहाँ अल्पकालीन पूँजी की माँग एवं पूर्ति के परस्पर समायोजन होता है ।"

[ 4 ] रिजर्व बैंक ( Reserve Bank ) के अनुसार, "मुद्रा बाजार अल्पकालीन मौद्रिक सम्पत्ति के क्रय-विक्रय का केन्द्र होता है । यह उधार लेने वालों की अल्पकालीन आवश्यकताओं को पूरा करता है तथा ऋणदाताओं को तरलता प्रदान करता है । यह वह स्थान होता है जहाँ पर वित्तीय एवं अन्य संस्थाओं और व्यक्तियों की अल्पकालीन विनियोग योग्य अतिरिक्त पूँजी को उधार चाहने वाली संस्थाओं, व्यक्तियों तथा सरकार द्वारा प्राप्त किया जाता है ।"

[ 5 ] प्रो. मेडन एवं नेऊलर ( Madden and Naoller ) के अनुसार, "मुद्रा बाजार वह यन्त्र है जिसके द्वारा अल्पकालीन ऋण लिये जाते हैं और जिसके द्वारा किसी राष्ट्र अथवा विश्व के वित्तीय व्यवहारों का निपटारा किया जाता है ।"

उपर्युक्त परिभाषाओं से मुद्रा बाजार के विषय में निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट हैं -

( 1 ) मुद्रा बाजार में अल्पकालीन लेन-देन होता हैं ।

( 2 ) अल्पकालीन लेन-देन 1 दिन से लेकर 1 वर्ष तक अवधि के होते हैं ।

( 3 ) मुद्रा बाजार में अल्पकालीन मौद्रिक परिसम्पत्तियाँ होती हैं । इसके अन्तगर्त व्यापारिक पत्र (CP), ट्रेजरी बिल, जमा प्रमाणपत्र, याचना या माँग मुद्रा ( Call Money ), सरकारी बिल, बैंक की स्वीकृतियाँ, अन्तर-बैंक ऋण, समपार्श्विक ऋण, पारस्परिक कोष, विनिमय बिल आदि को सम्मिलित किया जाता है । इन्हीं परिसम्पत्तियों का लेन-देन होता है ।

( 4 ) अल्पकालीन वित्त की माँग-पूर्ति में सन्तुलन स्थापित होता है ।

संक्षेप में, मुद्रा बाजार के विषय में यह कहा जाता है कि "मुद्रा बाजार वित्तीय परिसम्पत्तियों का थोक बाजार है जहाँ इनका लेन-देन अल्पकाल के लिए किया जाता है ।" इस लेन-देन में भागीदारी की संख्या सीमित रहती है ।

भारतीय मुद्रा बाजार की संरचना ( Composition of Indian Money Market ) :-

भारतीय मुद्रा बाजार संगठित एवं असंगठित दो भागों में विभाजित है । संगठित भाग के अन्तगर्त अनेक संस्थाएँ मुद्रा के लेन-देन में लगी हुई हैं । इन संस्थाओं के कार्यों, नीतियों, निर्णयों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं में परिपक्वता है जिसके कारण मुद्रा बाजार में सन्तुलन बना रहता है । संगठित क्षेत्रों में कार्य करने वाली संस्थाओं में रिजर्व बैंक, व्यापारिक बैंक, निजी बैंक, विकास बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ जिनमें सामान्य बीमा निगम, यू.टी.आई., वित्तीय निगम, प्रोविडेन्ट फण्ड आदि प्रमुख हैं । सहकारी बैंक का योगदान भी मुख्य हैं ।

भारतीय मुद्रा बाजार के असंगठित भाग के अन्तगर्त देशी बैंकर, महाजन या साहूकार आदि को सम्मिलित किया जाता है ।

भारतीय मुद्रा बाजार के दोष ( Defect of Indian Money Market ) :- भारतीय मुद्रा बाजार का विकास पर्याप्त नहीं हुआ है । इसके कई दोष हैं । आगे इन दोषों को बताया जा रहा है -

[ 1 ] गैर-संगठित क्षेत्र का महत्त्व ( Importance of Non-Organized Sector ) :- भारतीय मुद्रा बाजार संगठित एवं गैर-संगठित क्षेत्रों में विभाजित है, किन्तु गैर-संगठित क्षेत्र का महत्त्व अधिक है । इसमें साहूकार, महाजन, देशी बैंकर, व्यापारी, निजी वित्तीय कम्पनियाँ हैं जिन पर रिजर्व बैंक का कोई नियन्त्रण नहीं होता । इनके नियम व शर्तें नहीं हैं । इससे साख नियन्त्रण करने में कठिनाई होती है । मुद्रा बाजार में मौद्रिक नीतियों को लागू करना कठिन होता है ।

[ 2 ] बैंकिंग सुविधाओं का अभाव ( Lack of Banking Facilities ) :- भारतीय मुद्रा बाजार का बड़ा दोष यह है कि भारत में बैंकिंग सुविधाएँ पर्याप्त नहीं हैं । केवल शहरी क्षेत्रों में ये सुविधाएँ उपलब्ध हैं किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं के बराबर हैं । ग्रामीण बचतों को एकमात्र करना, उनका विनियोजन करना सम्भव नहीं है । इससे मुद्रा बाजार भी विकसित नहीं हो पाया है ।

[ 3 ] ब्याज दरों में अन्तर ( Difference in Interest Rate ) :- भारत में मुद्रा बाजार की सुदृढ़ता न होने से ब्याज दरों में अन्तर पाया जाता है । अलग-अलग क्षेत्रों में ब्याज की दरें अलग-अलग होती हैं । रिजर्व बैंक द्वारा घोषित ब्याज दरें केवल व्यापारिक बैंक एवं वित्तीय संस्थाओं तक ही सीमित हैं ।

[ 4 ] समन्वय की कमी ( Lack of Co-ordination ) :- भारतीय मुद्रा बाजार का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसके विभिन्न अंगों के बीच समन्वय की कमी है । विभिन्न व्यापारिक बैंक, वित्तीय संस्थाएँ एवं देशी बैंकर, साहूकार, महाजन आदि के बीच समन्वय है, कार्य की एकरूपता नहीं है, रिजर्व बैंक की नीतियों का पालन नहीं किया जाता, आपस में प्रतियोगिता चलती है । ब्याज दरों में भिन्नता पायी जाती है, रिज़र्व बैंक की घोषित ब्याज दरें निजी क्षेत्र की ब्याज दरों से भिन्न होती हैं । रिजर्व बैंक की ब्याज दरें व्यापारिक बैंकों पर लागू होती हैं ।

[ 5 ] मुद्रा बाजार में पूँजी की कमी ( Lack of Capital in Money Market ) :- मुद्रा बाजार में पूँजी की कमी हमेशा बनी रहती है । इसका प्रमुख कारण बचत में कमी, इससे विनियोग में कमी, इससे पूँजी में कमी-वह चक्र हमेशा चलता रहता है । भारत में बचतें बैंकों में जमा न करा के अनुत्पादक कार्यों में व्यय की जाती हैं । इन बचतों से सोना, चाँदी, भूमि, भवन आदि क्रय किया जाता है । पूँजी की कमी के कारण मुद्रा बाजार में वित्तीय आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पातीं और इसमें व्यापार एवं उद्योगों का विकास नहीं हो पाता ।

[ 6 ] साख संस्थाओं की कमी ( Lack of Credit Institutions ) :- भारतीय मुद्रा बाजार में साख प्रदान करने वाली संस्थाएँ बहुत कम हैं । कुछ प्रमुख संस्थाओं में यू.टी.आई., जीवन बीमा निगम, सामान्य बीमा निगम, व्यापारिक बैंक, वित्तीय संस्थाएँ आदि हैं । ये संस्थाएँ केवल शहरी एवं महानगरीय शहरों तक सीमित हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में साख-सुविधाएँ प्राप्त नहीं होतीं साख संस्थाओं में कमी के कारण मुद्रा बाजार विकसित नहीं हो पाता है ।

[ 7 ] संगठित बिल बाजार का अभाव ( Lack of Organized Bills Market ) :- भारतीय मुद्रा बाजार में संगठित बिल बाजार का स्थान सीमित है । भारत में बिलों द्वारा व्यापार करने की परम्परा नहीं है जबकि अन्य देशों में यह पूर्ण से विकसित हो चुका है । रिजर्व बैंक न इस दिशा में कुछ प्रयास किये हैं किन्तु वे पर्याप्त नहीं है । व्यापारिक बिलों के माध्यम से 90 दिनों की वित्त व्यवस्था की जाती है । इस अल्पकालीन वित्त व्यवस्था में भाग लेने वाली सभी परिभाषा मुद्रा बाजार प्रमुख संस्थाएँ व व्यापारिक बैंक आदि होते हैं । किन्तु बिल बाजार अविकसित अवस्था में है । इसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं - (1) व्यापारिक बिलों की गारण्टी न होना, (2) बिलों के आकार-प्रकार में अन्तर, (3) बिल बाजार के प्रति उपेक्षा, (4) बैंकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में अधिक विनियोग, (5) भारी स्टाम्प ड्यूटी लगाना, (6) बिलों द्वारा व्यापार का प्रचार-प्रसार न होना, (7) वित्त एवं बट्टा गृह, स्वीकृति गृह एवं ऐसी ही अन्य संस्थाओं का विकास न होना, (8) बिलों पर कटौती, पुनर्कटौती सुविधा का लाभ न उठाना ।

भारतीय बिल बाजार के साथ-साथ ट्रेजरी बिल बाजार, जमा प्रमाणपत्र, व्यापारिक पत्र, माँग मुद्रा बाजार, पुनर्खरीद नीलामी आदि के पिछड़ेपन के कारण भी मुद्रा बाजार विकसित नहीं हो पाया है । समाशोधन गृह की सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं ।

[ 8 ] मौसमी आवश्यकताएँ ( Seasonal Requirements ) :- मुद्रा बाजार कृषि क्षेत्रों, व्यापारिक क्षेत्रों एवं औद्योगिक क्षेत्रों की मुद्रा की आवश्यकताओं को पूरा परिभाषा मुद्रा बाजार करने में असमर्थ रहता है । अक्टूबर से अप्रैल तक का समय कृषि क्षेत्रों के लिए, व्यस्त काल माना जाता है क्योंकि फसलें, मण्डियों में पहुँचती हैं । उसके लिए मुद्रा की आवश्यकता पड़ती है । इसी प्रकार विभिन्न त्योहारों के कारण, विभिन्न करों के भुगतान के लिए, नकद भुगतान के लिए, वित्त की आवश्यकता पड़ती है । भारतीय मुद्रा बाजार अपने विभिन्न उपकरणों से भी वित्त की पूर्ति करने में असमर्थ रहता है । माँग मुद्रा बाजार में ब्याज दरें बढ़ जाती हैं और मुद्रा की माँग-पूर्ति के बीच असन्तुलन पैदा हो जाता है । इस तरह मुद्रा बाजार पर मौसमी उच्चावचन का प्रभाव पड़ता है ।

परिभाषा मुद्रा बाजार

मुद्रा बाजार

मुद्रा बाजार, इसलिए, वित्तीय बाजार के भीतर एक शाखा है जहां वित्तीय परिसंपत्तियों (जमा राशि का प्रमाण, वचन पत्र आदि) को अल्पावधि में बातचीत की जाती है। इसका उद्देश्य आर्थिक एजेंटों को उच्च स्तर की तरलता के साथ अपनी संपत्ति को प्रतिभूतियों में बदलने का विकल्प प्रदान करना है।

उदाहरण के लिए: "बहुराष्ट्रीय कंपनी वित्तपोषण प्राप्त करने के लिए मुद्रा बाजार में जाएगी", "स्थानीय अर्थव्यवस्था में मुद्रा बाजार बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है "

बैंक, बचत बैंक और सार्वजनिक प्रशासन मुख्य एजेंट हैं जो मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करते हैं। अन्य प्रतिभागी गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान हैं, जैसे बीमा कंपनियां।

मुद्रा बाजार में भागीदारी संपत्ति के जारीकर्ताओं के साथ या विशेष मध्यस्थों (जैसे दलाली फर्मों या बैंकों) के माध्यम से सीधे संबंध के माध्यम से हो सकती है। मुद्रा बाजार में निवेश करने के कारणों में सुरक्षा, उच्च तरलता और लचीलेपन का उल्लेख किया जा सकता है

मुद्रा बाजार में कारोबार की जाने वाली संपत्ति, फिर कम जोखिम और उच्च तरलता की विशेषता होती है । इस बाजार के भीतर, क्रेडिट और प्रतिभूतियों (प्राथमिक और माध्यमिक) के बीच अंतर करना संभव है; विवरण नीचे दिए गए हैं।

क्रेडिट मार्केट

मुद्रा बाजार

यह एक इंटरबैंक बाजार है, जिसमें बहुत कम अवधि और परिभाषा मुद्रा बाजार थोक परिचालन में एक बड़ी विशेषता है। पैसे जमा करने की बातचीत में न्यूनतम एक दिन, और अधिकतम एक साल का समय हो सकता है। यह वह बाजार है जिसमें MIBOR सेट किया गया है, एक ब्याज दर जिसे संदर्भ के रूप में उपयोग किया जाता है और मैड्रिड में इंटरबैंक बाजार से संबंधित है।

दूसरी ओर, क्रेडिट मार्केट भी REPO के संचालन से संबंधित है, जिसमें एक ऐसा समझौता होता है, जिसमें एक वित्तीय उपकरण (जो आमतौर पर ट्रेजरी बिल होता है) की बिक्री होती है, जिस विशिष्टता के साथ उसका विक्रेता मानता है एक तारीख और पहली लेनदेन के समय परिभाषित मूल्य पर इसे पुनर्खरीद करने की प्रतिबद्धता।

पहली नज़र में, प्रतिभूति बाजार को निम्नलिखित दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:परिभाषा मुद्रा बाजार

* प्राथमिक : एक निश्चित संगठन नहीं है। प्रतिभूतियों को जारी करने वाला व्यक्ति उन्हें विनिमय में संसाधन प्राप्त करने के लिए बेचता है;

* द्वितीयक : यह बदले में, स्टॉक एक्सचेंज (जिसमें प्रतिभूतियों के स्वामित्व को बहुत आसानी से बदलने की अनुमति देता है) और एनोटेट पब्लिक डेट मार्केट है, जो नीचे परिभाषित किया गया है।

एनोटेट पब्लिक डेट मार्केट

एनोटेट पब्लिक डेट मार्केट का संचालन टेलीफोन है, और इसका मुख्य कार्य सार्वजनिक ऋण की बातचीत है जिसे पुस्तक प्रविष्टियों और प्रतिभूतियों के माध्यम से दर्शाया जाता है जिसका जारीकरण सार्वजनिक निकायों, CCAA और अन्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के प्रभारी हैं जो उनके पास अर्थव्यवस्था और वित्त मंत्रालय से प्राधिकरण है।

यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि, इस मामले में, प्रतिभूतियों को भौतिक प्रारूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है, लेकिन स्टेट बैंक अकाउंट एनोटेशन सेंट्रल द्वारा बैंक ऑफ स्पेन की जिम्मेदारी के तहत बस बुक प्रविष्टियों को बनाया या प्रबंधित किया जाता है। यह जारी करने, परिशोधन करने और प्रतिभूतियों के कुल जारी करने पर ब्याज का भुगतान करने के लिए और पूरे बाजार के संगठन को आगे बढ़ाने के लिए भी जिम्मेदार है।

अंत में, इसके सदस्यों में खाताधारक और प्रबंधन संस्थाएं हैं; विशेषज्ञ एजेंट और निजी निवेशक इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते।

वित्तीय बाजार का परिभाषा एवं प्रकारों का विस्तृत वर्णन।

आज के इस अंक में आप लोगों को क्लास ट्वेल्थ के व्यवसायिक अध्ययन विषय के वित्तीय बाजार के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर देने जा रहे हैं ,जो आपके लिए बहुत ही उपयोगी होगा।

प्रश्न1,वित्तीय बाजार किसे कहते हैं?

वित्तीय बाजार बाजार का वह रूप होता है। जिसके अंतर्गत वित्तीय संपत्तियों को उत्पन्न किया जाता है एवं उसके विनिमय संबंधी कार्य किया जाता है, उसे वित्तीय बाजार कहते हैं।

प्रश्न2, वित्तीय संपत्ति किसे कहते हैं?

वित्तीय संपति का अभिप्राय वित्तीय प्रपत्र अथवा प्रतिभूतियों से होता है। जैसे अंश ,कमर्शियल पेपर, खजाना बिल इत्यादि।

प्रश्न3, वित्तीय बाजार के कार्य बताएं।

वित्तीय बाजार के मुख्य कार्य प्रकार हैं।

प्रश्न4 वित्तीय बाजार को कितने भागों में वर्गीकृत किया गया?

वित्तीय बाजार को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है।

प्रश्न 5, मुद्रा बाजार किसे कहते हैं?

वह बाजार जहां अल्पकालीन प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय किया जाता है ,उसे मुद्रा बाजार कहते हैं। इसके अंतर्गत उन सभी संगठनों एवं संस्थाओं को शामिल किया जाता है जो अल्पकालीन कोषों का प्रबंध एवं उपयोग करते हैं।

प्रश्न 6, मुद्रा बाजार की विशेषता बताएं।

मुद्रा बाजार की मुख्य विशेषता इस प्रकार हैं।

1 मुद्रा बाजार में अल्पकालीन प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय होता है।

2 इस बाजार में अत्यधिक तरलता पाई जाती है।

3 मुद्रा बाजार वित्तीय बाजार का प्रमुख अंग है।

4 मुद्रा बाजार के दो स्वरूप होते हैं संगठित एवं असंगठित मुद्रा बाजार।

5 मुद्रा बाजार अनेक उप बाजारों में विभक्त होते हैं।

प्रश्न 6, मुद्रा बाजार के प्रमुख प्रलेख कौन-कौन से हैं।

मुद्रा बाजार के प्रमुख प्रेलेख किस प्रकार हैं।

3 मांग मुद्रा अथवा अल्प सूचना ऋण

प्रश्न 7 पूंजी बाजार किसे कहते हैं की?

वित्तीय बाजार का वह प्रकार जिसके अंतर्गत दीर्घकालीन वित्तीय प्रतिभूतियों का विनिमय किया जाता है। उसे पूंजी बाजार कहते हैं।

प्रश्न 8, वित्तीय बाजार की विशेषता बताएं।

वित्तीय बाजार के मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं

1, दीर्घकालीन प्रतिभूतियों में व्यवहार।

2, बिचौलिए के माध्यम से कार्य करना।

3, वित्तीय बाजार का अंग।

4, पूंजी निर्माण में सहायक।

5, तरलता में सहायक।

प्रश्न 9 पूंजी बाजार को कितने भागों में बांटा गया है?

पूंजी बाजार को दो भागों में बांटा गया है।

प्रश्न 10, प्राथमिक बाजार किसे कहते हैं।

प्राथमिक बाजार बाजार का वह रूप होता है जिसमें दीर्घकालीन के लिए पूंजी एकत्रित करने के उद्देश्य से अंश, ऋण पत्र,बॉन्ड व अन्य प्रतिभूतियों को पहली बार बेचा जाता है उसे प्राथमिक बाजार कहते हैं।

प्रश्न 11 गौण बाजार किसे कहते हैं?

गौण बाजार बाजार का वह रूप होता है, जहां पूर्व निर्मित प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय होता है। यह एक निश्चित स्थान पर होता है। यह बाजार प्राथमिक बाजार के बाद आता है।

प्रश्न 12 प्राथमिक बाजार और गौण बाजार में अंतर बताएं?

प्राथमिक बाजार और गौण बाजार में मुख्य अंतर इस प्रकार है।

1 प्राथमिक बाजार बाजार का वह रूप होता है जिसमें नई निर्मित प्रतिभूतियों में व्यवहार होता है जबकि गौण बाजार मैं पहले से निर्मित प्रतिभूति का व्यवहार होता है।

2 प्राथमिक बाजार का कोई निश्चित स्थान नहीं होता है जबकि गौण बाजार का निश्चित अर्थात विशेष स्थान होता है।

3 प्राथमिक बाजार मैं निवेश दीर्घकालीन होता है जबकि गौण बाजार में अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा कभी-कभी दीर्घकालीन निवेश भी होता है।

वित्तीय बाजार का परिभाषा एवं प्रकारों का विस्तृत वर्णन।

आज के इस अंक में आप लोगों को क्लास ट्वेल्थ के व्यवसायिक अध्ययन विषय के वित्तीय बाजार के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर देने जा रहे हैं ,जो आपके लिए बहुत ही उपयोगी होगा।

प्रश्न1,वित्तीय बाजार किसे कहते हैं?

वित्तीय बाजार बाजार का वह रूप होता है। जिसके अंतर्गत वित्तीय संपत्तियों को उत्पन्न किया जाता है एवं उसके विनिमय संबंधी कार्य किया जाता है, उसे वित्तीय बाजार कहते हैं।

प्रश्न2, वित्तीय संपत्ति किसे कहते हैं?

वित्तीय संपति का अभिप्राय वित्तीय प्रपत्र अथवा प्रतिभूतियों से होता है। जैसे अंश ,कमर्शियल पेपर, खजाना बिल इत्यादि।

प्रश्न3, वित्तीय बाजार के कार्य बताएं।

वित्तीय बाजार के मुख्य कार्य प्रकार हैं।

प्रश्न4 वित्तीय बाजार को कितने भागों में वर्गीकृत किया गया?

वित्तीय बाजार को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है।

प्रश्न 5, मुद्रा बाजार किसे कहते हैं?

वह बाजार जहां अल्पकालीन प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय किया जाता है ,उसे मुद्रा बाजार कहते हैं। इसके अंतर्गत उन सभी संगठनों एवं संस्थाओं को शामिल किया जाता है जो अल्पकालीन कोषों का प्रबंध एवं उपयोग करते हैं।

प्रश्न 6, मुद्रा बाजार की विशेषता बताएं।

मुद्रा बाजार की मुख्य विशेषता इस प्रकार हैं।

1 मुद्रा बाजार में अल्पकालीन प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय होता है।

2 इस बाजार में अत्यधिक तरलता पाई जाती है।

3 मुद्रा बाजार वित्तीय बाजार का प्रमुख अंग है।

4 मुद्रा बाजार के दो स्वरूप होते हैं संगठित एवं असंगठित मुद्रा बाजार।

5 मुद्रा बाजार अनेक उप बाजारों में विभक्त होते हैं।

प्रश्न 6, मुद्रा बाजार के प्रमुख प्रलेख कौन-कौन से हैं।

मुद्रा बाजार के प्रमुख प्रेलेख किस प्रकार हैं।

3 मांग मुद्रा अथवा अल्प सूचना ऋण

प्रश्न 7 पूंजी बाजार किसे कहते हैं की?

वित्तीय बाजार का वह प्रकार जिसके अंतर्गत दीर्घकालीन वित्तीय प्रतिभूतियों का विनिमय किया जाता है। उसे पूंजी बाजार कहते हैं।

प्रश्न 8, वित्तीय बाजार की विशेषता बताएं।

वित्तीय बाजार के मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं

1, दीर्घकालीन प्रतिभूतियों में व्यवहार।

2, बिचौलिए के माध्यम से कार्य करना।

3, वित्तीय बाजार का अंग।

4, पूंजी निर्माण में सहायक।

5, तरलता में सहायक।

प्रश्न 9 पूंजी बाजार को कितने भागों में बांटा गया है?

पूंजी बाजार को दो भागों में बांटा गया है।

प्रश्न 10, प्राथमिक बाजार किसे कहते हैं।

प्राथमिक बाजार बाजार का वह रूप होता है जिसमें दीर्घकालीन के लिए पूंजी एकत्रित करने के उद्देश्य से अंश, ऋण पत्र,बॉन्ड व अन्य प्रतिभूतियों को पहली बार बेचा जाता है उसे प्राथमिक बाजार कहते हैं।

प्रश्न 11 परिभाषा मुद्रा बाजार गौण बाजार किसे कहते हैं?

गौण बाजार बाजार का वह रूप होता है, जहां पूर्व निर्मित प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय होता है। यह एक निश्चित स्थान पर होता है। यह बाजार प्राथमिक बाजार के बाद आता है।

प्रश्न 12 प्राथमिक बाजार और गौण बाजार में अंतर बताएं?

प्राथमिक बाजार और गौण बाजार में मुख्य अंतर इस प्रकार है।

1 प्राथमिक बाजार बाजार का वह रूप होता है जिसमें नई निर्मित प्रतिभूतियों में व्यवहार होता है जबकि गौण बाजार मैं पहले से निर्मित प्रतिभूति का व्यवहार होता है।

2 प्राथमिक बाजार का कोई निश्चित स्थान नहीं होता है जबकि गौण बाजार का निश्चित अर्थात विशेष स्थान होता है।

3 प्राथमिक बाजार मैं निवेश दीर्घकालीन होता है जबकि गौण बाजार में अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा कभी-कभी दीर्घकालीन निवेश भी होता है।

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