लाभ को अधिकतम करने के लिए

कीमत निर्धारण के उद्देश्य ( Objectives of Pricing ) क्या है ?
साधारणतया कीमत एवं कीमत निर्धारण को एक ही मान लिया जाता है । जबकि दोनों में मूलभूत भिन्नता होती है । कीमत उत्पाद के मूल्य का मौद्रिक माप होता है जबकि कीमत निर्धारण ऐसे मूल्य के निर्धारण की प्रक्रिया होती है । कीमत निर्धारण विपणन प्रबन्ध का वह कार्य होता है जिसमें वह उत्पाद मूल्य के सन्दर्भ में उत्पाद का मूल्य मुद्रा में व्यक्त करता है ताकि उपभोक्ता को विक्रय के लिए उत्पाद प्रस्तुत किया जा सके ।
स्टेन्टन का कथन है कि "प्रत्येक विपणन कार्य जिसमें कीमत निर्धारण भी सम्मिलित है, किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किया जाना चाहिए ।"
इससे यह स्पष्ट होता है कि विपननकर्त्ता द्वारा कीमत निर्धारण भी कुछ के उद्देश्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से कर सकती है । कीमत निर्धारण के अनेक उद्देश्यों को निम्न शीर्षकों में विश्लेषित किया जा सकता है :-
[ 1 ] लाभों को अधिकतम करना ( To Maximize Profits ) :- सभी व्यावसायिक संस्थायें लाभों को अधिकतम करने के उद्देश्य से कार्य करती हैं । इसके लिए वे ऐसी कीमत निर्धारित करती हैं कि उन्हें अधिकतम लाभार्जन हो । इसका आशय यह है कि कीमत निर्धारण का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य लाभों को अधिकतम करना होता है । फर्म की लाभार्जन की अधिकता की चाह वर्तमान में यद्यपि उचित नहीं मानी जाती, क्योंकि इससे कीमत वृद्धि, उपभोक्ता का शोषण एवं सामाजिक उत्तरदायित्वों की अनदेखी जैसी आशंकाएँ व्यक्त होती हैं । फिर भी फर्म उपलब्ध परिस्थितियों में लाभ को अधिकतम करने के उद्देश्य से ही कीमत निर्धारण का निर्णय करती है ।
[ 2 ] मूल्यों में स्थायित्व ( Price Stability ) :- अधिकांश फर्मों का उद्देश्य मूल्यों में स्थिरता बनाये रखना होता है ताकि उत्पाद के प्रति उपभोक्ताओं और क्रेताओं का विश्वास बना रहे । कीमत निर्धारण का यह उद्देश्य प्रायः सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना को लेकर अथवा क्रेताओं में फर्म की ख्याति स्थापित करना होता है । ऐसी फर्में बढ़ते हुए बाजार मूल्य के समय अपनी कीमतें स्थिर रखती हैं ।
[ 3 ] प्रतिस्पर्धा का सामना करना ( To Face Competition ) :- कीमत निर्धारण का यह एक सामान्य उद्देश्य होता है । प्रत्येक विपननकर्त्ता प्रतिस्पर्धी फर्म का सामना करने के लिए प्रतिस्पर्धी उत्पादों के मूल्यों को ध्यान में रखकर स्वयं के उत्पादों की कीमतें निर्धारित करता है । अनेक स्थितियों में मूल्य लागत से भी कम रखे जाते हैं । ऐसा सामान्यत: अति प्रतिस्पर्धी बाजार में प्रवेश के समय किया जाता है ।
[ 4 ] वांछित प्रत्याय का लक्ष्य ( To Achieve Target Return ) : - कई फर्में अपने विनियोग पर वांछित प्रत्याय को पहले ही निश्चित कर लेती हैं और फिर अपेक्षित लाभों के सन्दर्भ में कीमत निर्धारित करती हैं । इस प्रकार निर्धारण के उद्देश्य के अन्तगर्त फर्में अपनी सहमतियों एवं उत्पादन साधनों में किये गये कुल विनियोग के सन्दर्भ में लाभ का अनुपात निश्चित कर लेती हैं और फिर उसी के अनुसार उत्पाद मूल्य निर्धारित करती हैं ।
[ 5 ] बाजार अंश बनाए रखना अथवा उसमें वृद्धि करना ( To Maintain or Improve Ma rket Share ) :- अनेक व्यावसायिक फर्में अपने बाजार अंश का निर्धारण कर लेती हैं और उसे बनाये रखने के प्रयास के साथ-साथ उसमें वृद्धि के लिए प्रयत्नशील रहती हैं । अतः वह अपनी कीमत इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए करती है ।
[ 6 ] अस्तित्व की रक्षा ( Survival Object ) :- तीव्र प्रतियोगिता, अत्यधिक संवेदनशील बाजार आदि परिस्थितियों में कई बार फर्म कीमत निर्धारित अस्तित्व की रक्षा करने के उद्देश्य से करती है । इसमें मूल्य को निर्धारित करते समय फर्म की स्थायी एवं परिवर्तनशील लागतों को ध्यान में रखकर मूल्य तय किये जाते हैं ।
[ 7 ] मूल्य छवि ( Value Image ) :- ऐसी फर्म जो कम मूल्य वाली वस्तुओं के माध्यम से छवि बनाना चाहती है वे अपने उत्पादों का निम्न कीमत निर्धारण करती है । मूल्य छवि का उद्देश्य रखने वाले विपननकर्त्ता उत्पाद की कीमत अपनी लोकप्रियता का आधार बनाती है ।
[ 8 ] उत्पाद गुणवत्ता छवि ( Product Quality Image ) :- कोई भी फर्म अपने को उच्च गुणवत्ता उत्पाद नेता के रूप में स्थापित करने का उद्देश्य रख सकती है । इसके लिए फर्म ऊँची कीमत रखकर अपने उत्पादों को श्रेष्ठ बनाने पर बल देती है । साथ ही विज्ञापन एवं सम्वर्द्धन के माध्यम से ऊँची कीमत और गुणवत्ता के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करती है । उदाहरण के लिए "महँगा ही सही, मेरे बच्चों के लिए झंडू च्यवनप्राश, असली च्यवनप्राश" का विज्ञापन ।
[ 9 ] गैर-कीमत प्रतिस्पर्धा ( Non-Price Competition ) :- कीमत निर्धारण का एक उद्देश्य विपणन सम्मिश्र के अन्य तत्वों के आधार पर प्रतिस्पर्धा करना हो सकता है । फर्म ऐसी परिस्थिति में, श्रेष्ठ किस्म, डिजाइन, अच्छी विकर्योपरान्त सेवायें आदि योजनाओं के आधार पर प्रतिस्पर्धा कर सकती है । ऐसी परिस्थिति में कीमत को स्थायी कर वितरण, उत्पाद तथा सम्वर्द्धन के आधार पर प्रतिस्पर्धा कर सकती है ।
[ 10 ] विक्रय मात्रा में वृद्धि ( Increase in Sales Volume ) :- यह कीमत निर्धारण उद्देश्य एक निश्चित समयावधि में विक्रय मात्रा में एक निश्चित प्रतिशत वृद्धि में व्यक्त किया जा सकता है । प्रबन्धक विक्रय की मात्रा में वृद्धि करने के लिए कई प्रकार की छूटें दे सकती हैं । कई बार फर्म अल्पकाल में हानि उठाकर भी विक्रय में वृद्धि का प्रयास करते हैं ।
एक हवाई जहाज अधिकतम 200 यात्रियों को यात्रा करा सकता है। प्रत्येक प्रथम श्रेणी के टिकट पर Rs 1000 और सस्ते श्रेणी के टिकट पर Rs 600 का लाभ कमाया जा सकता है। - Mathematics (गणित)
एक हवाई जहाज अधिकतम 200 यात्रियों को यात्रा करा सकता है। प्रत्येक प्रथम श्रेणी के टिकट पर Rs 1000 और सस्ते श्रेणी के टिकट पर Rs 600 का लाभ कमाया जा सकता है। एयरलाइन कम लाभ को अधिकतम करने के लिए से कम 20 सीटें प्रथम श्रेणी के लिए आरक्षित करती है। तथापि प्रथम श्रेणी की अपेक्षा कम से कम 4 गुने यात्री सस्ती श्रेणी के टिकट से यात्रा करने को वरीयता देते हैं। ज्ञात कीजिए कि प्रत्येक के कितने-कितने टिकट बेचे जाएँ ताकि लाभ का अधिकतमीकरण हो? अधिकतम लाभ कितना है?
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बता दें कि एयरलाइन एग्जिक्यूटिव क्लास के एक्स टिकट और इकोनॉमी क्लास के वाई टिकट बेचती है। दी गई समस्या का गणितीय सूत्रीकरण इस प्रकार है। अधिकतम करें z = 1000x + 600y . (1)
बाधाओं द्वारा निर्धारित संभाव्य क्षेत्र इस प्रकार है।
संभाव्य क्षेत्र के कोने बिंदु A(20, 80), B(40, 160) और C(20, 180) हैं। इन कोने बिंदुओं पर z का मान इस प्रकार है।
Corner point | z = 1000x + 600y | |
A(20, 80) | 68000 | |
B(40, 160) | 136000 | → Maximum |
C(20, 180) | 128000 |
Z का अधिकतम मान 136000 पर (40, 160) है। इस प्रकार, कार्यकारी वर्ग के 40 टिकट और इकोनॉमी क्लास के 160 टिकट लाभ को अधिकतम करने के लिए बेचे जाने चाहिए और अधिकतम लाभ 136000 रुपये है।
अब तक फर्म के संतुलन के विश्लेषण में हमने यह मान्यता मानी थी कि उद्यमी अपने लाभ को सदैव अधिकतम करना चाहता है ऐसे ही उद्यमी को विवेकशील कहा गया था किंतु बॉमोल ने लाभ अधिकतम करने की मान्यता को चुनौती दी और बताया कि फर्म के लिए लाभ अधिकतम करना अंतिम उद्देश्य नहीं होता बल्कि फर्म का मुख्य प्रयास अपनी बिक्री को अधिकतम करना है।
दूसरे शब्दों में– बॉमोल के विचार में फर्म बिक्री को बढ़ा कर अपने कुल आगम को अधिकतम करने का प्रयास करती है। इसी कारण बॉमोल के लाभ अधिकतम करने की विचारधारा को आय अधिकतम सिद्धांत के रूप में भी जाना जाता है।
baumol model-बॉमोल की परिकल्पना में फर्म के लाभ उद्देश्य की पूर्ण उपेक्षा नहीं होती बल्कि यह कहा जा सकता है कि लाभ अधिकतमीकरण की तुलना में फर्म के लिए बिक्री अधिकतमीकरण अधिक महत्वपूर्ण है प्रो. बामोल अपनी बिक्री अधिकतमीकरण की परिकल्पना को अधिक युक्तिसंगत एवं यथार्थवादी बताते हैं उनके विचार में बिक्री अधिकतमीकरण में न्यूनतम लाभ प्राप्त होने की शर्त निहित है।
baumol model-प्रो. बामोल के विचार में उद्यमी सदैव अपनी बिक्री को बढ़ाने का प्रयत्न करता है किंतु उसके इस प्रयास में उसे एक न्यूनतम लाभ स्तर की प्राप्ति आवश्यक है ताकि वह उत्पादन क्रिया में क्रियाशील रह सके।
प्रो. बामोल उद्यमी के लिए इस न्यूनतम लाभ स्तर से अधिक की प्राप्ति की परिकल्पना नहीं करते तथा उनके विचार में इस लाभ स्तर की प्राप्ति को ध्यान में रखकर उद्यमी अपने कुल आगम को अधिकतम करने का प्रयास करता है इस न्यूनतम लाभ के स्तर में सदैव सभी फर्मों अथवा उद्योगों के लिए स्थिरता का होना आवश्यक नहीं है। यह लाभ स्तर भिन्न-भिन्न फर्मों के लिए भिन्न-भिन्न हो सकता है तथा आर्थिक समृद्धि और अवसाद की स्थितियों में न्यूनतम लाभ स्तर भी बदल जाता है।
इस प्रकार न्यूनतम लाभ स्तर को सामान्य रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता इस न्यूनतम लाभ स्तर के निर्धारण में अनेक तत्व महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं इनमें शेयरधारकों को दिया गया संतोषजनक लाभांश पुनर्विनियोग के लिए आवश्यक धनराशि वित्तीय सुरक्षा के लिए आवश्यक धनराशि आदि प्रमुख है।
बिक्री अधिकतम मॉडल: कीमत तथा उत्पादन निर्धारण
baumol model -द्वारा प्रस्तुत इस मॉडल की व्याख्या चित्र में की गई है चित्र में TR, TC तथा TP क्रमशः कुल आगम, कुल लागत तथा कुल लाभ को बताते हैं TR तथा TC वक्रों का अंतर विभिन्न उत्पादन स्तरों पर कुल लाभ(TP) को सूचित करता है। विभिन्न उत्पादन स्तरों पर कुल लाभ उस बिंदु पर TR एवं TC वक्रों के मध्य लंबवत दूरी द्वारा ज्ञात की जा सकती है।
उत्पादन की OX1मात्रा पर कुल लाभ (TP) अधिकतम है बिंदु R2 पर कुल आगम (TR) अधिकतम है जहां उत्पादन मात्रा OX3 है। OX3 उत्पादन मात्रा पर कुल लाभ KX3 के बराबर है जो उत्पादन मात्रा OX1 पर प्राप्त होने वाले कुल लाभ MX1 से कम है उत्पादन स्तर पर कुल लाभ की मात्रा कम होने पर भी प्राप्त कुल आगम (TR) अधिकतम है जिसे चित्र में R2X3 द्वारा दिखाया गया है।
लाभ को अधिकतम करने के लिए प्रो. बामोल के अनुसार फर्म OX3 उत्पादन स्तर पर उत्पादन करना चाहेगी क्योंकि इस उत्पादन स्तर पर अधिकतम कुल आगम के साथ-साथ कुल लाभ R2 X3 भी प्राप्त हो रहा है हम यह पहले स्पष्ट कर चुके हैं कि अपनी बिक्री या आगम को अधिकतम करने के साथ-साथ एक न्यूनतम लाभ स्तर भी प्राप्त करना चाहेगी यदि फर्म के लिए न्यूनतम आय स्तर OP (=XE) के बराबर हो तो फर्म लाभ को अधिकतम करने के लिए न्यूनतम स्तर प्राप्त करते हुए अधिकतम आगम OX उत्पादन स्तर पर प्राप्त कर पाएगी क्योंकि न्यूनतम लागत रेखा कुल वक्र TP को बिंदु E पर काटती है।
जो उत्पादन स्तर OX पर उपलब्ध है इस उत्पादन स्तर OX पर फर्म को कुल आगम R1X प्राप्त होगा जो कि अधिकतम कुल आगम R2X3 से कम है। किंतु न्यूनतम आय स्तर OP के साथ फर्म OX उत्पादन करते हुए अधिकतम आगम R1X ही प्राप्त कर सकती है। फर्म OX2 उत्पादन करके भी न्यूनतम लाभ स्तर को प्राप्त कर सकती है किंतु OX2 उत्पादन स्तर पर प्राप्त कुल आगम R3X2 है जो OX उत्पादन स्तर पर प्राप्त होने वाले कुल आगम R1X से कम है। अत: फर्म OX2 मात्रा का उत्पादन न करके OX मात्रा का उत्पादन करेगी जहां उसे न्यूनतम लाभ प्राप्ति के प्रतिबंध के साथ अधिकतम लाभ मिल रहा है उत्पादन मात्रा OX पर प्राप्त आगम R1X की सहायता से वस्तु की कीमत प्राप्त की जा सकती है।
स्पष्ट है कि OX उत्पादन स्तर पर कीमत स्तर OX1 उत्पादन स्तर की कीमत से कम है। इस प्रकार बामोल की बिक्री अधिकतम मॉडल में उत्पादन का स्तर तो बढ़ता है किंतु कीमत स्तर गिर जाता है।
प्रो. बॉमोल के मॉडल की श्रेष्ठता
1- जैसा कि हम पहले पढ़ चुके हैं कि (baumol model) लाभ अधिकतमीकरण उत्पादन, बिक्री अधिकतमीकरण उत्पादन से कम होगा तथा लाभ अधिकतमीकरण मूल्य बिक्री अधिकतमीकरण मूल्य से अधिक होता है।
2- लाभ अधिकतम करने वाली फर्म की तुलना में प्रो. बॉमोल की बिक्री अधिकतम (baumol model) करने वाली फर्म अधिक वास्तविक है क्योंकि बॉमोल की फर्म स्थिर लागत के परिवर्तन का ध्यान रखती है लाभ अधिकतम करने की परिकल्पना में यह मान्यता है कि स्थिर लागत का परिवर्तन, उत्पादन स्तर को प्रभावित नहीं करता किंतु प्रो. बॉमोल की परिकल्पना में यह मान्यता है कि यदि अल्पकाल में स्थिर लागत में वृद्धि की जाती है तो बिक्री अधिकतम करने वाली फर्म कीमत को बढ़ाकर उत्पादन को घटा देगी इस स्थिति की व्याख्या चित्र में की गई है चित्र में OP लाभ को अधिकतम करने के लिए न्यूनतम लाभ स्तर को बताता है जिसे PR रेखा द्वारा दिखाया गया है। आरंभिक कुल लाभ वक्र TP0 पर न्यूनतम लाभ स्तर प्राप्त करते हुए फर्म OQ0 उत्पादन की बिक्री करेगी।
अब यदि सरकार एक मुश्त कर के रूप में KT आकार का कर लगाती है जो फर्म के लिए स्थिर लागत की भांति होगा इसी स्थिर लागत के कारण फर्म का कुल लाभ वक्र TP1 हो जाता है जिस पर फर्म उसी न्यूनतम लाभ स्तर के साथ केवल OQ1 मात्रा की बिक्री कर रही है। कुल लाभ में परिवर्तन होने पर भी लाभ अधिकतमीकरण उत्पादन OQ पर ही स्थिर रहता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि बॉमोल की बिक्री अधिकतमीकरण की परिकल्पना वास्तविकता के अधिक निकट है।
3- प्रो. बॉमोल के अनुसार जब फर्में एक साथ एक से अधिक वस्तुओं का उत्पादन करती हैं तब बिक्री अधिकतम करने वाली फर्म कम लाभकारी आगतों तथा उत्पादनों को छोड़ सकती है जबकि लाभ अधिकतम करने वाली फर्म के लिए यह संभव नहीं।
4- लाभ अधिकतमीकरण की परिकल्पना में फर्म के व्यवहार को विवेकशील माना गया है जबकि वास्तविक व्यवहार में फर्म सदैव विवेकशील नहीं होती इसके विपरीत, बिक्री अधिकतम करने वाली फर्म सदैव न्यूनतम लाभ को प्राप्त करती हुई अपनी बिक्री को अधिकतम करने की चेष्टा के कारण संतोषजनक व्यवहार करती है।
प्रो. बॉमोल की परिकल्पना की आलोचना
1― अर्थशास्त्री रोजेनबर्ज ने प्रो. बॉमोल की परिकल्पना की न्यूनतम लाभ स्तर की मान्यता के आधार पर आलोचना की। उनके अनुसार न्यूनतम लाभ स्तर का निर्धारण एक कठिन कार्य है जिसके लिए कोई वैज्ञानिक आधार प्रो. बॉमोल ने प्रस्तुत नहीं किया।
2― प्रो. बॉमोल की परिकल्पना अल्पाधिकारी फर्मों की वास्तविक कीमत-निर्भरता की वास्तविकता की उपेक्षा करती है।
3― प्रो. फर्गुसन एवं प्रो. क्रैप्स की बिक्री अधिकतमीकरण परिकल्पना को लाभ अधिकतमीकरण सिद्धांत का एक विकल्प मानते हैं उनके विचार में, अनेक विकसित विकल्पों में से बॉमोल की परिकल्पना को एक बड़ा लाभ प्राप्त है। यह वास्तविकता एवं सत्याभास की दिशा में पुराने मॉडलों का संशोधन करता है, साथ ही यह सामान्य वैज्ञानिक विश्लेषण को भी संभव बनाता है।